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जोशीमठ : 47 साल पहले मिला था अलर्ट, पर हुक्मरानों ने शहर को मलबे में तब्दील होने दिया

– जोशीमठ में फिलहाल की जा रही ड्रिलिंग में जमीन के नीचे 45 मीटर तक भी कठोर चट्टान नहीं मिली, शहर बीते साल से ही भारी भू-धंसाव की चपेट में, सैकड़ों आवासीय भवन रहने लायक नहीं
– 47 साल पहले तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर की अध्यक्षता में 18 सदस्यीय समिति ने जोशीमठ के बारे में सरकार को किया था आगाह, शहर पर निर्माण का बोझ न बढ़ाने का दिया था सुझाव
PEN POINT, DEHRADUN : भू-धंसाव की वजह से देश दुनिया की खबरों में साल भर से छाए जोशीमठ में हाल ही में लोक निर्माण विभाग की ओर से भार क्षमता का पता लगाने के लिए भूमि में किए गए ड्रिलिंग सर्वे में भी जोशीमठ के 45 मीटर नीचे भी कठोर चट्टान नहीं मिल सकी है, जिससे इस बात की तस्दीक भी हो गई है कि जोशीमठ शहर मलबे के ढेर पर बसा वह कस्बा है जो बेतरतीब अनियोजित निर्माण के भार को उठाने में समक्ष नहीं है। फिलहाल, लोक निर्माण विभाग नीदरलैंड की फुगरो कंपनी से जियो टेक्निकल ड्रिलिंग सर्वे करावा रहा है। औली रोड पर कंपनी ने 45 मीटर से अधिक तक ड्रिल कर लिया, लेकिन अभी तक उन्हें कठोर चट्टान (हार्ड रॉक) नहीं मिल पाई है। जबकि, विभाग की योजना हार्ड रॉक नहीं मिलने पर 80 मीटर तक ड्रिल करने की है। बीते रविवार तक 45 मीटर तक ड्रिल पूरी हो चुकी है। हार्ड रॉक मिलने के बाद पांच मीटर और ड्रिल होगी, जिसके सैंपल लिए जाएंगे। हार्ड रॉक नहीं मिलने पर 80 मीटर तक खुदाई के बाद ही सैंपल एकत्रित किया जाएगा। हालांकि, जोशीमठ में भारी भू-धंसाव के बाद राज्य सरकार की आंखें खुली तो जोशीमठ शहर की भार क्षमता के लिए नए सिरे से कदम उठाए जाने लगे लेकिन 47 साल पहले तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त की रिपोर्ट को नकार कर जोशीमठ में अनियंत्रित अनियोजित निर्माण कार्यों को होने दिया गया जिसका खामियाजा आज जोशीमठ नगर उठा रहा है।

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सामरिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण जोशीमठ नगर बीते साल भर से ज्यादा समय से भू-धंसाव की वजह से अपने वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। उत्तराखंड के गढ़वाल के पैनखंडा परगना में समुद्र की सतह से 6107 फीट की ऊँचाई पर, धौली और विष्णुगंगा के संगम से आधा किलोमीटर दूर डेढ़ हजार साल पुराने जोशीमठ की उत्पत्ति की कहानी आदि शंकराचार्य से जुड़ी है। आदि शंकराचार्य को जोशीमठ में दिव्य ज्ञान मिला तो उनकी आठवीं-नवीं शताब्दियों जिनकी हिमालयी यात्राओं ने उत्तराखंड के धार्मिक भूगोल को व्यापक रूप से बदल दिया था।—————————————————————————————————47 साल पहले तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर की अध्यक्षता में 18 सदस्यीय समिति ने जोशीमठ के बारे में सरकार को किया था आगाह, शहर पर निर्माण का बोझ न बढ़ाने का दिया था सुझाव —————————————————————————————————70 के दशक में जोशीमठ शहर के भूस्खलन और डूबने की वजहों को जानने के लिए तत्कालीन गढ़वाल मंडल आयुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी ने 7 मई, 1976 की अपनी रिपोर्ट पेश की थी. इसमें साफ गया था कि जोशीमठ में भारी निर्माण कार्यों, ढलानों पर कृषि, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है। इसे बदतर हालातों से बचने के लिए बारिश के पानी के रिसाव को रोकने के लिए इसकी निकासी के लिए पक्का निर्माण, सही तरीके का सीवेज सिस्टम और मिट्टी का कटाव को रोकने के लिए नदी के किनारों पर सीमेंट ब्लॉक बनाने के सुझाव दिए गए थे।

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समिति ने रिपोर्ट सरकार को सौंपी लेकिन सरकार ने इस पूरी महत्वपूर्ण रिपोर्ट की अनदेखी कर जोशीमठ में विनाश की पटकथा लिखने के लिए लोगों को खुली छूट दे दी। मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जो भूभर्गीय तौर पर बिल्कुल भी स्थिर नहीं है। बार-बार होने वाले भूस्खलन पर रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके संभावित कारणों में हिलवॉश हो सकता है। हिलवॉश, कटाव की एक प्रक्रिया है जिसमें सतह पर ढीली पड़ी तलछटको बारिश का पानी बहा ले जाता है. इसके अलावा खेती वाली जमीन की लोकेशन, हिमनदी सामग्री के साथ पुराने भूस्खलन के मलबे पर बसावट, अपक्षय और धाराओं से मिट्टी का कटाव भी लैंडस्लाइड के बार-बार होने की वजह बनते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इसके साथ ही अलकनंदा और धौलीगंगा नदी की धाराओं से हो रहा कटाव भी भूस्खलन लाने में अहम भूमिका निभा रहा है। बारिश और बर्फ पिघलने के कारण हिलवॉश और पानी का रिसाव होता है। रिपोर्ट बताती है कि 1962 के बाद इस इलाके में भारी निर्माण परियोजनाएं शुरू की गईं, लेकिन पानी की निकासी के लिए सही तरीका नहीं अपनाया गया। इस वजह से जमीन के अंदर पानी का रिसाव होता रहा जो आखिरकार भूस्खलन यानी लैंडस्लाइड की वजह बना।

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जोशीमठ में एक सदी में किस तरह बेतरतीब निर्माण और आबादी का दबाब बढ़ा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जबकि, गढ़वाल हिमालय का गजेटियर लिखने वाले अंग्रेज आईसीएस अफसर एचजी वॉल्टन गेजेटियर में जोशीमठ शहर की आबादी साल 1900 में केवल 468 थी, इस आबादी में ज्यादातर लोग बदरीनाथ धाम के पुजारी, कर्मचारी व भारत तिब्बत व्यापार से जुड़े व्यापारी थी जो सिर्फ सर्दियों के दौरान ही यहां निवास करते थे और ग्रीष्मकाल में उपरी इलाकों में चले जाते थे। लेकिन, इन सौ सालों में ही जोशीमठ की आबादी 468 से बढ़कर पचास हजार पार कर चुकी है। जबकि, वॉल्टन ने 1910 के जोशीमठ का जिक्र करते हुए लिखा है कि जोशीमठ थोड़े से मकानों, रैनबसेरों, मंदिरों और चौरस पत्थरों से बनाए गए नगर चौक वाला एक अधसोया-सा कस्बा है। लेकिन, मौजूदा दौर में जोशीमठ में चार हजार से अधिक इमारतों का निर्माण हो चुका है। चमोली जिला प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक ढाई वर्ग किलोमीटर में फैले जोशीमठ इलाके में लगभग 3,900 घर और 400 व्यावसायिक भवन हैं।

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