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भारतीय अंतरिक्ष अभियान की यात्रा : जमीं से फ़लक तक

PEN POINT : भारत ने 15 अगस्त 1947 को आजाद होने के बाद से अब तक अपने अंतरिक्ष सफर को शानदार तरीके से आगे बढ़ाया है। भारतीय अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत साइकिल व बैलगाड़ी से होते हुए आज मंगल और चाँद तक पहुँच गई है। अब भारत अंतरिक्ष में बड़े मिशन भेजने की तैयारी में जुटा हुआ है। लेकिन यह यात्रा आज जहा पहुंची है उसे देख कर उसके संघर्ष के दिनों को जाने बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। यह यात्रा बेहद कठिन थी।

जब देश आज़ाद हुआ, तब देश के हालात बेहद विपरीत थे, हमारे पास खाने तक के लाले पड़े हुए थे, देश की जरूरत के लिए पर्याप्त अनाज तक नहीं था, ऐसे में अंतरिक्ष की कल्पना करना बहुत दूर की बात थी। लेकिन देश के तत्कालीन नेतृत्व ने इन चुनौतियों के साथ आगे बढ़ने का साहस दिखाया और सभी चुनौतियों से निपटते हुए आगे बढ़ने का निश्चय किया। इसीका परिणाम रहा कि आखिरकार साल 1962 में वह वक्त आया जब जब भारत ने अपना अंतरिक्ष का सफर तय करने का साहसिक निर्णय लिया। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना की। साल 1969 में इस इन्‍कोस्‍पार ने ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) का स्वरुप ले लिया। आज इसरो विश्व की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है। इसरो ने दुनिया के बीच अपनी पहचान स्थापित करने में जो सफर तय किया वो बेहद पथरीला और संघर्ष भरा रहा। लेकिन तमाम बाधाओं को किनारे करते हुए हमारा यह संस्थान आज दुनियाभर में अपनी खास पहचान और प्रभाव रखता है।

गौरतलब है कि 1962 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की स्थापना के साथ ही, इसने अनुसंधित रॉकेट का प्रक्षेपण शुरू कर दिया, जिसमें भूमध्य रेखा की समीपता हमारे वैज्ञानिकों के लिए वरदान साबित हुई। ये सभी नव-स्थापित थुंबा भू-मध्यीय रॉकेट अनुसंधान केन्द्र से प्रक्षेपित किए गए, जो कि दक्षिण केरल में तिरुवंतपुरम के पास स्थित हैं।

शुरूआती चरण में परमाणु उर्जा विभाग के तहत इन्कोस्पार कार्यक्रम से 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन किया गया, जो कि प्रारम्भ में अंतरिक्ष मिशन के तहत काम करता रहा और बाद में इसकी सफलता को देखते हुए बभारत सरकार ने जून, 1972 में, अंतरिक्ष विभाग की स्थापना कर दी।

भारतीय अंतरिक्ष मिशन के लिए विक्रम अंबालाल साराभाई ऐसे प्रमुख वैज्ञानिक साबित हुए जिहोने इस मिशन को पूरी शिद्दत से आगेबढ़ाने में अपना जीवन खफा दिया। साराभाई ने 86 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे और 40 संस्थान खोले। इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन 1966 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया। आज भारत अंतिरिक्ष विज्ञान कि दुनिया में जिस मुकाम पर खड़ा है उसका सबसे ज्यादा श्रेय डॉ॰ विक्रम साराभाई को जाता है।

भारत का ISRO का गगनयान मिशन पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन है। यह गगनयान एक भारतीय चालित कक्षीय अंतरिक्ष यान है, जो देश के मानव अंतरिक्ष यान कार्यक्रम की नींव के रूप में शुरू किया गया। बता दें कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का मूल उद्देश्य देश हित में अंतरिक्ष तकनीक और उसके अनुप्रयोगों का विकास करना है। देश कि यह संस्था अपन इस कार्यक्रम में लगातार आगे बढ़ रही है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अब तक करीब 116 अंतरिक्ष यान मिशन, 86 लॉन्च मिशन किए हैं और आदित्य, गगनयान और एमओएम 2 सहित कई मिशनों की योजना बनाई गयी है। साल 1984 में, भारतीय वायु सेना के पायलट राकेश शर्मा अंतरिक्ष यात्रा करने वाले पहले भारतीय बनकर इतिहास रचा था। आज ISRO अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) भारत निर्मित और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा संचालित एक नियोजित अंतरिक्ष स्टेशन है। अंतरिक्ष स्टेशन का वजन 20 टन बताया गया है यह पृथ्वी से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर एक कक्षा बनाए रखने के लिए है, जहां अंतरिक्ष यात्री 15-20 दिनों तक रह सकते हैं।

दुनिया भर से अंतरिक्ष में अब तक कुल छोड़े गए उपग्रहों की संख्या अनुमानत: 4230 है। जिसमें से 3000 के करीब काम नहीं कर रहे हैं। भारत अब तक 118 उपग्रह प्रक्षेपित कर चुका है। दुनिया के कुल 12 देशों के पास प्रक्षेपण क्षमता है। उनमें से भारत प्रमुख देशों में सुमार है।

भारत ने सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) डेटा प्राप्त करने के लिए भारती स्टेशन, अंटार्कटिका में पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों के लिए अत्याधुनिक उन्नत ग्राउंड स्टेशन की स्थापना की है।

गगनयान: गगनयान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की पहल है। गगनयान कार्यक्रम का उद्देश्य एक भारतीय प्रक्षेपण यान पर मनुष्यों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की क्षमता प्रदर्शित करना है। चंद्रमा पर भारतीय अंतरिक्ष मिशन का नाम चंद्रयान है। चंद्रयान-1 चंद्रयान कार्यक्रम के तहत पहली भारतीय चंद्र जांच थी। इसे अगस्त 2009 तक संचालित किया गया था।

नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर अब तक दुनिया भर के 239 अंतरिक्ष यात्री जा चुके हैं। दुनियाभर के 19 देशों से गए ये अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी से करीब 410 किमी की ऊंचाई पर स्थित स्पेस स्टेशन पर समय बिता चुके हैं।

भारतीय मूल कि कल्पना चावला अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और एयरोस्पेस इंजीनियर थीं, जो अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला थीं। उन्होंने पहली बार 1997 में एक मिशन विशेषज्ञ और प्राथमिक रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में स्पेस शटल कोलंबिया में उड़ान भरी थी।
जबकि टेक्सास, अमेरिका के ऊपर स्पेस शटल कोलंबिया में चंद्रमा पर उतरने वाले भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों या व्योमनॉट्स तक पहुँचाने में किसी भी भारतीय को कही से भी अभी तक मौक़ा नहीं मिल पाया है। आशा है जल्द यह मौक़ा और मिशन भी जल्द भारत या भारतीय हासिल करने में सफल होगा।

बता दें कि भारत कि अंतरिक्ष यात्रा सतत जारी है और आगे बढ़ रही है। आज अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए लॉन्चर या लॉन्च व्हीकल का उपयोग किया जाता है। भारत के पास तीन सक्रिय परिचालन लॉन्च वाहन हैं: पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Mk-III (LVM3)।

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