रोमांच के शौकीनों के लिए आज भी पहेली है कालिंदी पास ट्रैक
Pen point, Dehradun : गंगोत्री से गोमुख होते हुए कालिंदी पास ट्रैक बद्रीनाथ तक जाता है। रोमांच और साहस के शौकीनों के बीच यह ट्रैक काफी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि जिसके पास पर्वतारोहण का अनुभव हो वही इस ट्रैक को ठीक से कर सकता है। पंद्रह दिन के इस दुरूह सफर को पूरा किये बिना कई दल वापस लौट जाते हैं। जबकि विकट का साहस और समझदारी के साथ कुछ ट्रैकिंग दल सफल हो जाते हैं।
बीते दिनों कालिंदी पास ट्रैक पर निकले एक ट्रैकिंग दल के फंसे होने की खबर आ रही है। बताया जा रहा कि इसके गाइड की मौत हो गई है। हालांकि उत्तरकाशी आपदा प्रबंधन केंद्र से मिली जानकारी के मुताबिक यह दल वापस लौट आया है। भारी बर्फबारी के चलते दल आगे नहीं बढ़ सका और सुरक्षित ठिकाने पर रूका था। हालांकि गाइड का शव अभी वहीं है और उसके लिए सेना के हैलीकॉप्टर का इंतजाम करने की कोशिशें जारी हैं। कालिंदी पास ग्लेशियर पर पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। गाइड के रास्ता भटकने या फिर मौत हो जाने से पूरे दल के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। बर्फीले बीहड़ से होकर गुजरने वाला इस ट्रैक में कई खतरनाक जगहें हैं। जहां अचानक मौसम बदलने से नजरों का भ्रम होने लगता है। वहीं उंचाई से बर्फ के दरकने का अंदेशा लगातार बना रहता है।
हाई अल्टीट़यूड ट्रैकिंग संचालित करने वाले विष्णु सेमवाल बताते हैं कि कालिंदी पास ट्रैक काफी उंचाई से होकर गुजरता है। समुद्रतल से पांच हजार मीटर से ज्यादा उंचाई वाले इलाके में ट्रैकिंग आसान काम नहीं है। यहां के लिए ट्रैकर्स को पर्वतारोहण का बुनियादी अनुभव तो होना ही चाहिए।
ऐवरेस्ट चढ़ चुके विष्णु खुद भी कई बार कालिंदी पास ट्रैक को पूरा कर चुके हैं। उनका कहना है कि इस ट्रैक फंसे हुए ट्रैकर्स को उन्होंने रेस्क्यू भी किया है। जिनमें अधिकांश मामलों में या तो गाइड घायल हो गया था या फिर वह दुर्घटना की चपेट में आ गया। गाइड के अलावा स्थानीय पोर्टर भी काफी मददगार साबित होते हैं। लेकिन मुख्य भूमिका गाइड की होती है, अगर गाइड अनुभवी और सही सलामत नहीं है तो टीम के भटकने की पूरी संभावना है। मौसम बदलने के साथ कोहरा आ सकता है। जिससे चलते हुए दल के हर सदस्य को अलग अलग तरीके से नजरों का भ्रम हो सकता है। ऐसे में टीम बिखर गई तो हालात हर किसी के लिए विकट हो जाते हैं।
भटकने पर क्या करें
जाहिर है कि ऐसे बर्फीले बीहड़ में भटकने से बड़ा हादसा होना लगभग तय होता है। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रशिक्षक दशरथ रावत के मुताबिक ऐसे हालात आने पर टीम को सुरक्षित जगह देखते हुए रूक जाना चाहिए। मदद का इंतजार किया जाना चाहिए। इन जगहों पर सेटेलाइट फोन कारगर साबित हो सकता है। जिसका इस्तेमाल कर सही सूचना प्रशासन तक पहुंचनी चाहिए। ऐसे हालात में टीम के सभी सदस्यों का साथ रहना जरूरी है। रावत सुझाव देते हैं कि ट्रैकिंग दलों को अपने साथ अनुभवी और कुशल गाइड रखने चाहिए, जिससे उनका सफर पूरा हा सके।
ग्लेशियर और तीखी ढलानों का रास्ता
कालिंदी पास ट्रैक का बड़ा हिस्सा गंगोत्री नेशनल पार्क में आता है। हर साल मई में इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है। उत्तरकाशी से इस ट्रैक पर जाने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम से परमिट जारी किया जाता है। गंगोत्री धाम के बाद गोमुख, तपोवन और सीता ग्लेशियर से आगे यह ट्रैक घस्तोली होते हुए माणा तक जाता है। ग्लेशियरों और हिमखंडों के साथ ही तीखी ढलानों की इस ट्रैक पर भरमार हैं। बताया जाता है कि इस उच्च हिमालयी इलाके में पहले साधू संत भी गंगोत्री से बद्रीनाथ पहुंचते थे।