करंट की परवाह नहीं केदारनाथ वन प्रभाग को, पेड़ों से गुजर रही 66 केवी की लाइन
Pen Point Dehradun : केदारनाथ वन प्रभाग को करंट की परवाह नहीं, चमोली में हुए हादसे से वन विभाग सबक नहीं ले रहा है। केदारनाथ वन प्रभाग में बिजली के तारों की लॉपिंग चौपिंग पर विभाग कई शर्तें थोप दी हैं। जिससे विद्युत पारेषण लाइन की देखरेख करने वाले कर्मचारियों के लिए यह काम करना लगभग मुश्किल हो गया है। जबकि केदारनाथ वन प्रभाग के अलावा कहीं भी ऐसे हालात नहीं है, और अन्य जगहों पर यह काम शुरू भी कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि बरसात के दौरान वन क्षेत्र से गुजरने वाली विद्युत लाइनं की हर साल लॉपिंग चौपिंग की जाती है। जिसके तहत पेड़ों की उन टहनियों को काटा जाता है जिनसे ये लाइन छू रही हो, ताकि लाइन पर चल रहे करंट के फैलने के खतरे और दुर्घटना से बचा जा सके।
बीती 21 मार्च को अधिशासी अभियंता पिटकुल की ओर से केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग से वन क्षेत्र के दायरे में रही विद्युत पारेषण लाइन के लिए पेड़ों की लॉपिंग चौपिंग की अनुमति मांगी गई थी। जिसमें 132 केवी श्रीनगर सिमली और 66 केवी श्रीनगर जोशीमठ की विद्युत लाइन शामिल हैं। पत्र के जरिए वन विभाग को यह भी बताया गया कि इन लाइनों में कुछ डेंजर जोन है, जहां कई बार विद्युत आपूर्ति बाधित हो जाती है। वन विभाग की ओर से विद्युत लाइन की जद में आ रहे पेड़ों का सर्वे करवाया जिसमें पिटकुल के प्रतिनिधि भी शामिल थे। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 66 केवी लाइन पर चीड़ के हरे पेड़ों की 360 शाखाएं बाधक बन रही हैं। यह रिपोर्ट मई के पहले हफ़ते में ही आ गई थी। इसी माह सात जुलाई को वन्य जीव प्रभाग की ओर भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के प्रतिबंधों का हवाला देते हुए अनुमति दी गई। जिसमें सात शर्तें जारी की गई। अब इन शर्तों को लेकर पिटकुल के कर्मचारी पशोपेश में हैं। जबकि रूद्रप्रयाग समेत अन्यवन प्रभागों में महज चार सामान्य शर्तों के साथ अनुमति दी गई है। ऐसे में 66 केवी लोड वाली इस लाइन पर खतरा लगातार बना हुआ है।
पिटकुल के कर्मचारियों के मुताबिक यह विद्युत लाइन यात्रा और अन्य दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। अगर लॉपिंग चौपिंग नहीं की गई तो इस पर पेड़ों की टहनियों के जरिए करंट फैलने का खतरा बना रहेगा। जिससे ना सिर्फ मानवीय बल्कि वनस्पति और वन्य जीवों का भी नुकसान हो सकता है। लेकिन विभाग की ओर से जो अनुमति जारी की गई है, वह काम करने के लिहाज से व्यावहारिक नहीं है।
वन विभाग को लेकर बिजली से जुडे़ महकमों का अनुभव बेहतर नहीं हैं। नाम ना छापने की शर्त पर यूपीसीएल के अफसर कहते हैं कि, हमारे स्टाफ और वन विभाग के स्टाफ का कई बार टकराव हो जाता है। एक टहनी काटने पर ही उन्हें जेल भेजने की धमकी दे दी जाती है। जबकि जंगलों के बीच गुजरने वाली बिजली की लाइनों की देख रेख बेहद जरूरी है। इससे वन संपदा भी सुरक्षित रहती है, ऐसा ना होने पर पहला नुकसान वन संपदा को ही होता है।
टेलीग्राफ ऐक्ट की शक्तियों का सहारा
भारतीय टेलीग्राफ ऐक्ट 1885 के तहत अब यूपीसीएल, यूजेवीएनएल और पिटकुल भी अपनी विद्युत वितरण और पारेषण लाइनों का रख रखाव सकेंगे। इसके साथ ही नए संयंत्र स्थापित करने के लिए ऐक्ट द्वारा प्रदत्त शक्तियों का भी उायोग कर सकेंगे। बीते माह 26 जून को उत्तराखंड शासन से इसकी अधिसूचना जारी हो गई है। जिसमें सरकारी टेलीग्राफ के अनुरक्षण और रख रखाव को लेकर जैसी शक्तियां तार प्राधिकारी को हैं, वही शक्तियां यूपीसीएल, यूजेवीएनएल और पिटकुल को प्रदान की गई हैं। फिलहाल इस अधिसूचना का गजट नोटिफिकेशन जारी होने का इंतजार किया जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे विद्युत लाइनों के रखरखाव को लेकर वन विभाग की ओर से आने वाली अड़चनें दूर जा जाएंगी।
इस बाबत केदार नाथ वन्य जीव प्रभाग के डीएफओ इंद्र सिंह नेगी से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका। संपर्क होते ही उनका पक्ष भी अपडेट किया जाएगा।