जानिये कैसे सांसों के जरिए हमारे फेफड़ों में पहुंच रहा है प्लास्टिक
Pen Point (Health Desk): रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक का बढ़ता चलन सेहत पर भारी पड़ सकता है। इंडस्ट्री और घरेलू सामान में प्लास्टिक की मौजूदगी और उसके असर पर एक अध्ययन सामने आया है। जिसके मुताबिक हमारे चारों ओर अवा में प्लास्टिक के महीन कणों की भरमार है, जो लगातार बढ़ती जा रही है। इन कणों को माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं जो सांस के जरिए हमारे फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं।
दुनिया के छह विश्वविद्यालयों ने पहली बार माइक्रोप्लास्टिक और उसके खतरों पर शोध किया है। 13 जून को यह शोध फिजिक्स ऑफ फ्लुइड़स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ। जिसमें बताया गया है कि पूरी दुनिया में जमीन, पानी और हवा में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है। हवा में इसका घनत्व तेजी से बढ़ रहा है। कल कारखानों से लेकर प्लास्टिक प्रोडक्ट और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं टायरों के घिसने आदि के कारण कई सौ टन माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण में फैल रहा है।
सबसे पहले साल 2022 में इंसानी श्वसन तंत्र में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई थी। ये कण 1.6 से 1.5 माइक्रॉन आकार के थे। जिनकी आकृति गोल, बेलनाकार और चपटी पाई गई थी।
उल्लेखनीय है कि इंसानी खून में भी माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए जा चुके हैं। वहीं एक नवजात की गर्भनाल में भी शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक के कण होने की पुष्टि की है। तब अध्ययन में पाया गया था कि यह सांस संबधी गंभीर बीमारियों का काराण् बन सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक में जहरीले और दूषित तत्व शामिल होते हैं। जिसके कारण यह ज्यादा घातक हो जाते हैं। रिसर्च में कहा गया है कि मनुष्य सांस और भोजन के जरिए इतना प्लास्टिक निगलता है कि एक हफ्ते में जमा किये जाने पर इसका आकार एक क्रेडिट कार्ड के जितना हो जाएगा।
खाने और पानी के साथ ही हवा में बढ़ते माइक्रोप्लास्टिक को लेकर डब्लूएचओ भी चिंता जता चुका है। इससे सांस संबंधी रोगों की रोकथाम के तरीके भी प्रभावित हो सकते हैं। सांस के जरिए भी मानव टिश्यू तक प्लास्टिक के कण पहुंच रहे हैं। जिन मामलों में श्वसन तंत्र में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है, वहां श्वसन तंत्र के विभिन्न हिससे प्रभावित मिले हैं। सांस के वायुमार्ग का कोई भी हिस्सा से इससे ब्लॉक हो सकता है।
सांस संबधी तकलीफों की रोकथाम के लिए यह अध्ययन महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वहीं प्लास्टिक के विकल्प तलाशने की ओर भी इशारा करता है। हालांकि रिसर्च में यह नहीं बताया गया है कि यह मानव स्वास्थ्य को और किस तरह और कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन इस शोध ने प्लास्टिक के उपयोग और उससे जुड़े स्वास्थ्य मामलों में शोध की राह खोल दी है।