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कुमाऊं की बेटी जो बाद में बन गई मादर-ए-पाकिस्तान

-आयरीन रूथ पंत के रूप में पैदा हुई राना लियाकत अली खां की आज जयंती
PEN POINT, देहरादून। विभाजन के बाद नया नया बना था पाकिस्तान। जहां के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान हुए तो पाकिस्तान की फर्स्ट लेडी होने का मौका मिला उनकी शरीक-ए-हयात राना लियाकत अली को। पढ़कर अजीब लगेगा कि राना लियाकत अली खान कुमाऊं के अल्मोड़ा में पंत परिवार में पैदा हुई पली बढ़ी थी। कुमाऊं में आयरीन रूथ पंत बाद में लियाकत अली खान से निकाह के बाद राना लियाकत अली बन गई।
आज राना लियाकत अली पूर्व में आयरीन रूथ पंत की जयंती है। आज से 118 साल पहले 13 फ़रवरी 1905 को अल्मोड़ा में डेनियल पंत के घर आयरीन रूथ का जन्म हुया। आयरीन पंत एक ऐसे कुमांऊनी ब्राह्मण परिवार से थीं जिसने धर्मान्तरण कर ईसाई धर्म स्वीकार लिया था। आयरीन पंत के दादा तारादत्त पंत ने 1874 में ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। तारादत्त पंत एक जाने-माने वैद्य थे और ऊंची धोती के कुलीन ब्राह्मण भी। एक उच्चकुलीन ब्राह्मण के ईसाई धर्म में जाने से अल्मोड़ा में कोहराम मच गया। ब्राह्मण समुदाय ने तारादत्त पंत और उसके परिवार को मृत घोषित कर उनका श्राद्ध तक कर डाला।

आयरीन पंत की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई अल्मोड़ा और नैनीताल में हुई और उसके बाद उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए वे लखनऊ चली गयीं। लखनऊ के इसाबेल थोबर्न कॉलेज से आयरीन ने अर्थशास्त्र और अध्यात्मिक अध्ययन की डिग्री ली। एमए की क्लास में वे अकेली लड़की थीं। 1927 में वे लड़की होने के बावजूद साइकिल चलाया करती थीं, जो उस दौर में बहुत दुर्लभ था. लड़के उनको परेशान करने के लिए उनकी साइकिल की हवा निकाल देते थे।

चंदा जुटाने के दौरान हुई लियाकत अली से मुलाकात
लखनऊ में जब आयरीन अपनी डिग्री पूरी कर रही थीं तभी बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में आ गया। कई अन्य छात्रों के साथ आयरीन बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए नाटकों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये पैसा इकठ्ठा करने की मुहीम में जुट गयीं। इसी दौरान, सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए फंड जुटाने की गरज से आयरीन पंत टिकट बेचने के लिए लखनऊ विधानसभा पहुंची जहां उनकी मुलाकात लियाक़त से हुई। लियाक़त अली खाँ इसलिए टिकट नहीं खरीदना चाहते थे कि कार्यक्रम में साथ आने के लिए उनके पास कोई नहीं है, तब आयरीन ने उनसे कहा कि अगर वे अकेले ही रहे तो वे कार्यक्रम में लियाक़त अली के साथ बैठ जाएँगी। इस तरह दोनों की पहली मुलाक़ात हुई।
लखनऊ से पढ़ाई करने के बाद आयरीन दिल्‍ली के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज में प्रोफ़ेसर बन गयीं। इसी दौरान लियाक़त खाँ को उत्तर प्रदेश विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया। आयरीन ने इस मौके पर लियाक़त खाँ को बधाई संदेश भेजा। संदेशों का यह आदान प्रदान जल्दी मेल मुलाकातों में तब्दील हो गया। और चाय कॉफी पर होने वाली मुलाकात इश्क में बदल गई।

पहले से शादीशुदा थे लियाकत
लियाक़त अली खाँ पहले से ही शादीशुदा थे। लेकिन आयरीन रूथ पंत के उस दौर में इतने खुलेपन और आत्मविश्वास के लियाकत अली खान कायल हो गये और शादीशुदा होने के बावजूद वह आरयीन के साथ शादी करने का मन बना चुके थे। आखिरकार 16 अप्रेल 1933 को आयरीन और लियाक़त विवाह बंधन में बंध गए। लियाकत उम्र में आयरीन कुल 10 साल बड़े थे। लियाकत से निकाह के बाद आयरीन ने इस्लाम धर्म क़बूल कर लिया और उनका नया नाम गुल-ए-राना रखा गया। विभाजन के बाद राना लियाकत अपने परिवार के साथ कराची चली गई। वहां पहले प्रधानमंत्री के रूप में लियाकत अली खान ने शपथ ली तो इस लिहाज से राना पकिस्तान की मादर-ए-वतन (फर्स्ट लेडी) बन गई। उन्हें मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर भी जगह दी गयी।

लियाकत की हत्‍या के बाद भी पाकिस्‍तान नहीं छोड़ा
चार साल बाद ही जब 16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी में एक सभा को संबोधित करने के दौरान जब लियाक़त अली खाँ की हत्या कर दी गयी। यह माना जाने लगा कि इसके बाद राना लियाकत हिंदुस्तान लौट जाएगी लेकिन उन्होंने पाकिस्तान में रहना ही चुना। बाद में उन्हें हॉलेंड और इटली में पाकिस्तान का राजदूत बनाकर भेजा गया। हॉलैंड की रानी की उनसे दोस्ती हो गई तो हॉलैंड ने उन्हें अपना सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘औरेंज अवॉर्ड’ भी दिया।
महिला अधिकारों के लिए लिया लोहा राना लियाकत ने अपना आखिरी वक्त पाकिस्तान में गुजारा। वह महिला अधिकारों के लिए लगातार संघर्षरत रही तो कट्टरवाद के खिलाफ भी आवाज बुलंद करती रही। उन्होंने जियाउल हक़ के खिलाफ भी मोर्चा लिया. जब भुट्टो को फांसी दी गयी तो राना ने सैन्य तानाशाही के खिलाफ अभियान और तेज कर दिया। उन्होंने ज़ियाउल हक़ द्वारा इस्लामिक कानून लागू किये जाने के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।
मादर ए वतन का खिताब मिला
राना लियाकत ने भरपूर जीवन जिया। आयरीन पंत ने अपने 86 वर्ष के जीवन का आधा हिस्सा भारत और आधा पकिस्तान में बिताया। उन्होंने इतिहास बनते देखा और इस प्रक्रिया में भी शामिल रहीं. आइरीन को पाकिस्तान में मादर-ए-वतन का खिताब मिला। जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें काबिना मंत्री बनाया और वह सिंध की गवर्नर और कराची यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर भी बनी। इसके अलावा वह नीदरलैंड, इटली, ट्यूनिशिया में पाकिस्तान की राजदूत रहीं।  उन्हें 1978 में संयुक्त राष्ट्र ने ह्यूमन राइट्स के लिए सम्मानित किया।

मंडुए की रोटी, गहत की दाल थी पसंद

86 वर्ष की उम्र में 30 जून 1990 को उन्होंने आखिरी सांस ली। पाकिस्तान जाने के बाद वह तीन मर्तबा हिंदुस्तान आई लेकिन कभी अल्मोड़ा नहीं लौट सकी लेकिन अल्मोड़ा उनमें और अल्मोड़ा में वह हमेशा जिंदा रही। उनकी जीवनी लिखने वाली दीपा अग्रवाल बताती हैं, “उनको कुमाऊं में खाई जाने वाली मड़ुआ की रोटी, चावल के साथ गहत की दाल और दाड़िम (जंगली अनार की चटनी) हमेशा पसंद रही। पाकिस्तान जाने के बाद भी उनके ग़रारे भारत में ही सिलते थे। एक बार उन्होंने अपने भाई नॉरमन को उनके जन्मदिन पर भेजे टेलिग्राम में लिखा था, आई मिस अल्मोड़ा.“

 

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