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मजदूर दिवस : श्रमिकों की हक की आवाज बुलंद करने का दिन !

PEN POINT:  1889 में मार्क्सवादी इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस ने एक महान अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन के लिए एक प्रस्ताव अपनाया। जिसमें उन्होंने मांग की कि श्रमिकों को दिन में 8 घंटे से अधिक काम नहीं करना चाहिए। इसके बाद यह एक वार्षिक आयोजन बन गया और 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

भारत समेत दुनिया के लगभग 80 मुल्कों में यह दिवस पहली मई (आज) को मनाया जाता है। मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से हर साल एक मई का दिन मजदूरों को समर्पित होता है। इसे लेबर डे, श्रमिक दिवस, मजदूर दिवस, मई डे के नाम से जाना जाता है। मजदूर दिवस ना केवल श्रमिकों को सम्मान देने के लिए होता है बल्कि इस दिन मजदूरों के हक के प्रति आवाज भी उठाई जाती है। जिससे कि उन्हें समान अधिकार मिल सके। हालांकि 19 नवंबर 2020 को अधिसूचित इस मसौदे में साप्ताहिक कार्य घंटे को 48 घंटे पर बरकरार रखा गया है। मौजूदा प्रवाधानों के तहत आठ घंटे के कार्यदिवस में कार्य सप्ताह छह दिन का होता है तथा एक दिन अवकाश का होता है।

एन एम लोखंडे भारत में श्रमिक आंदोलन को संगठित करने वाले पहले नेता थे। उनका जन्म 1848 में ठाणे में हुआ था। ब्रिटिश भारत में श्रमिक आंदोलन के आयोजन में नारायण मेघाजी अग्रणी व्यक्ति थे। लोखंडे को भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के जनक के रूप में प्रशंसित किया गया है। अर्थशास्त्र में चार तरह के श्रम कुशल, अकुशल, अर्ध-कुशल और पेशेवर माने जाते हैं। ये चार प्रकार के श्रम मिलकर सक्रिय श्रम शक्ति का निर्माण करते हैं। इनमें प्रवासी श्रमिक, आकस्मिक मजदूर, ठेका मजदूर, और खेतिहर मजदूर शामिल हैं। आपने अकसर सुना और पढ़ा होगा ‘श्रम’ ही सफलता का मूल मंत्र है। बता दें कि लगातार परिश्रम ही किसी व्यक्ति, जाति या देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता-व्यक्ति की कर्म भावना ही उसे महान अथवा क्षुद्र बना देती है। संसार में अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ मनुष्य ने अपनी श्रमशीलता के बल पर सफलता के शिखर को छुआ है। सामान्य समझ के तौर पर माना जाए तो, मुख्य श्रमिक वह व्यक्ति होता है, जो वर्ष में कम से कम 183 दिन या छह महीने काम करता है। श्रमिकों को उनके काम के आधार पर मुख्यतः मुख्य श्रमिकों और सीमांत श्रमिकों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। जो मजदूर सालभर में ज्यादा से ज्यादा दिनों में काम करते हैं, उन्हें मुख्य श्रमिक कहा जाता है। भारत एशिया में सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी श्रम लागत प्रदान करता है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर का न्यूनतम वेतन लगभग INR 178 (US$2.16) प्रति दिन है , जो INR 5340 (लगभग US$65) प्रति माह है। यह संख्या एक फ्लोर-लेवल वेज है – और वेज रेट भौगोलिक क्षेत्रों और अन्य मानदंडों के आधार पर अलग-अलग होगा।

भारत में, केंद्र सरकार ने लगभग 44 श्रम-संबंधी कानून बनाए हैं, जिनमें से 29 को चार नए श्रम संहिताओं में शामिल किया गया है। आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त स्रोतों से प्राप्त विकास के के विश्व बैंक डाटा के अनुसार, 2021 में भारत में कुल श्रम शक्ति 507704840 बताई गई। भारत – श्रम बल, कुल – वास्तविक मूल्य, ऐतिहासिक डेटा, पूर्वानुमान और अनुमान 2023 के अप्रैल को विश्व बैंक से प्राप्त किए गए थे।

रिक्शा चालक, मोची, दर्जी, बुनकर, लोहार शारीरिक श्रम के उदाहरण हैं। शिक्षक, लेखाकार, डॉक्टर, प्रबंधक आदि मानसिक श्रम की श्रेणी में आते हैं। बता दें कि फिलहाल मजदूरों के लिए काम करने के घंटे के तौर पर स्टैंडर्ड नियम 8 घंटे काम का है। इसी के आधार पर कर्मचारी की सैलरी तय होती है। गौरतलब है कि 2019 में सरकार ने नया वेतन कोड (New Wage Code) पास किया था, जिसमें कामकाजी घंटों (working hours) को लेकर कहा गया कि ये 8 घंटे या 12 घंटे किया गया।

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