जान का दुश्मन साबित हो रहा ‘गुलदार’
– उत्तराखंड में दो दशकों में हर महीने औसत दो लोग हो रहे गुलदार का शिकार
– अब तक पांच सौ से अधिक लोगां ने गंवाई है गुलदार के हमले में जान
PEN POINT, DEHRADUN : बीते शनिवार को उत्तरकाशी जनपद के चिन्यालीसौड़ प्रखंड के मणी गांव में एक आंगनबाड़ी कार्यकत्री 32 वर्षीय महिला काम के बाद मवेशियों के लिए चारा लेने गांव से कुछ दूरी पर गई थी, वहां घात लगाकर बैठे गुलदार ने हमला कर महिला को मौत के घाट उतार दिया। करीब 10 दिन पहले 7 मई को देहरादून के सहसपुर क्षेत्र में घर के आंगन में दोस्तों के साथ खेल रहे चार वर्षीय बच्चे को गुलदार झपटा मारकर आम के बाग में ले गया, अगले दिन बच्चे का अधखाया शव आम के बाग में मिला। सप्ताह भर के भीतर ही राज्य के अलग अलग जिलों में गुलदार के हमलें में दो लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। राज्य गठन के 23 साल में शायद ही कोई महीना बीता हो जब राज्य में कहीं न कहीं कोई व्यक्ति वन्य जीवों का शिकार न बना हो। अकेले गुलदार ही राज्य गठन के बाद अब तक पांच सौ से अधिक लोगां को अपना शिकार बना चुका है।
राज्य गठन के बाद अब तक औसतन हर महीने दो लोग गुलदार का शिकार बन रहे हैं। 23 सालों में राज्य भर के अलग अलग हिस्सों में गुलदार के हमले में 500 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। 2022 तक ही राज्य भर में करीब 498 लोगों की मौत गुलदार के हमले में हुई थी। पहाड़ी क्षेत्र हो, या मैदानी दोनों इलाकों में गुलदार ‘आंतक’ का पर्याय बन चुके हैं। हाल ही में बीते 13 मई को उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ मणी गांव में हुए गुलदार के हमले में महिला की मौत के बाद पूरे इलाके में डर पसरा पड़ा है। स्कूल नहीं खुल पा रहे, अंधेरा होने से पहले ही पूरा इलाका खामोशी ओढ़ ले रहा है। महिलाएं भय के मारे जंगलों में मवेशियों के लिए चारा लेने नहीं जा पा रही, बच्चे बाहर खेलने जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही, बाजार से गांव तक पैदल आने वाले मर्द भी गुट बनाकर ही बाहर निकलने की हिम्मत कर पा रहे हैं। पूरे इलाके में एक अघोषित कर्फ्यू सा माहौल है। जब तक गुलदार वन विभाग द्वारा पकड़ नहीं लिया जाता लोगां के मन में घर कर गया यह डर जाएगा नहीं। यह पहली बार नहीं है जब किसी पहाड़ी इलाके में इस तरह कर्फ्यू सा माहौल है। हर महीने ही राज्य के अलग अलग हिस्से इस तरह के डरावने अनुभव से दो चार होते रहते हैं।
गुलदार पहाड़ के लिए ‘आतंक’ का पर्याय बन चुके हैं। जंगलों में खाने की कमी, नाखून और दांतों के टूट जाने, बढ़ती उम्र के कारण गुलदार के लिए इंसानों को निशाना बनाना ही पेट भरने का इकलौता कारण रह जाता है। ऐसे में उसका पहला आसान शिकार बच्चे और महिला होते हैं। ऐसे में जलावन की लकड़ियों, मवेशियों के चारे के लिए अपने दिन का ज्यादातर हिस्सा जंगल में बिताने वाली महिलाओं पर गुलदार का हमला ‘जानलेवा’ साबित हो जाता है।
इन दो दशकों के दौरान हमला कर आम लोगों को मौत के घाट उतारने वाले 76 गुलदारों को आदमखोर घोषित कर मारा जा चुका है। तो सैकड़ों गुलदारों को पिंजरे में पकड़कर चिड़ियाघरों या अन्य जगहों पर छोड़ा गया है।
हाथी और भालू भी जान के दुश्मन
राज्य का 71 फीसदी भूभाग वनों ढका है। लिहाजा, यहां अलग अलग प्रजातियों के जंगली जानवरों की तादात भी अच्छी खासी है। ऐसे में सिर्फ गुलदार ही नहीं बल्कि अन्य जानवर भी राज्य वासियों की जान के दुश्मन साबित होते रहते हैं। राज्य गठन से लेकर अब 207 लोगों ने हाथी के हमले में अपनी जान गंवाई हैं जबकि 60 लोगों की मौत का कारण भालू का हमला रहा। वहीं, 187 लोगों का निधन इन सवा दो दशकों में सांप के काटने से हुआ। जबकि, 36 लोगों की मौत अन्य जंगली जानवरों के हमले से हुई। कुल जमा देखे तो राज्य गठन के बाद करीब एक हजार से अधिक लोगां ने अपनी जान वन्यजीव-मानव संघर्ष में गंवाई है।