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क्रांतिकारी विद्रोह कर मंगल पांडे ने किया था जंगे आजादी का आगाज

आज ही के दिन हुई थी 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडे की शहादत, फिरंगी फौज के सामने विद्रोह खड़ा कर आजादी की अलख जगाई थी
PEN POINT DEHRADUN : जब आजादी के इतिहास की बात हो तो 1857 की विद्रोही क्रान्ति और मंगल पांडे का जिक्र होना लाजिमी हो जाता है। कैसे इस विद्रोह ने स्वाधीनता की लड़ाई को आक्रामक बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यही वजह है कि आज हम मंगल पाण्डे को उनकी कुर्वानी के दिन के रूप में याद कर रहे हैं।

1857 से सेना में नई एन्फील्ड राइफल का प्रयोग शुरू हुआ, बताया जाता है कि इन रायफलों में लगने वाले कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग होता था।

ऐसे में, ईस्ट इंडिया कंपनी की पश्चिम बंगाल में बैरकपुर में तैनात 19वीं नेटिव इन्फैंट्री के सिपाहियों ने एनफील्ड राइफलों का उपयोग करने से मना कर दिया, क्योंकि रायफलों में चर्बी लगे इन कारतूस को लोड करने से पहले दॉंतों से काटना पड़ता था। अब तक यह बात सेना के सिपाहियों के बीच पहुंच चुकी थी और बड़ी चर्चा का विषय बन चुकी थी कि कारतूसों में गायों या सूअरों की चर्बी लगी हुई थी। जो हिन्दू और मुस्लिम सिपाहियों को बड़ी नागवार गुजरी।

यहीं से भारतीय मूल के हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों के अंदर क्रोध बढ़ने लगा। अपनी आस्था को आघात पहुंचते देख सैनिकों में विद्रोह की चिंगारी फूट पड़ी। इतने में एक बेहद युवा और बहादुर हिम्मती सैनिक ने मन में कुछ ठान लिया था। इस सिपाही का नाम मंगल पांडे था। वे पैदल ब्रिटिश सेना के सिपाही नंबर 1446 थे।

पाण्डे ने चर्बी लगे कारतूस का इस्तेमाल करने से साफ मना कर दिया। यही नहीं मारो फिरंगी को नारे के साथ उन्होंने अंग्रेजों पर हमला तक कर दिया। इस हमले के बाद पाण्डे ने खुद को गोली मारकर घायल तक कर दिया। लेकिन इसके बाद भी उनकी गिरफ्तारी कर ली गई ओर कोर्ट मार्शल कर दिया गया। पाण्डे पर मुकद्मा चलाया गया।

पाण्डे पर ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (बीएनआई) की 34वीं रेजीमेंट में सिपाही रहते हुए ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला करने के आरोप लगाये गये। जिसमें स्वतंत्रता सेनानी, मंगल पांडे पर 29 मार्च, 1857 को कलकत्ता में दो ब्रिटिश अधिकारियों – ह्यूसन और बाउ को मौत के घाट उतारने और ब्रिटिश फौज के खिलाफ विद्रोह करने के आरोप में मौत की सजा का ऐलान किया गया।

उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी देनी तय की गई, लेकिन देश में विद्रोह के बढ़ने और हालत बिगड़ने की आशंका के चलते अंग्रेजों ने गुपचुप तरीके से 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को ही मंगल पांडे को फांसी के फंदे पर लटका दिया। इसी के साथ विद्रोही और स्वतंत्रता संग्राम के इस रण बांकुरेे का नाम भारत की आजादी के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया। स्वतंत्रता सेनानी, मंगल पांडे 1857 के विद्रोह के पहले शहीद थे और उन्होंने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई।

1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था।

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