मनरेगा : कहानी दुनिया की सबसे कल्याणकारी योजना की
-आज के ही दिन 17 साल पहले देश के 200 जिलों में लागू की गई 100 दिन काम के गारंटी की योजना
-11 हजार करोड़ रूपये के बजट शुरू हुई यह योजना 2022 में 1 लाख करोड़ तक पहुंची
पंकज कुशवाल, देहरादून।
याद कीजिए जब 2020 में कोरोना संकट के दौरान करोड़ों प्रवासी मजदूर वापस गांव को लौटे तो उनके सामने रोजी रोटी का संकट था। अचानक नौकरी गंवाने के बाद इन लोगों के भविष्य अंधकार में था। आनन फानन में लोगों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा के स्वीकृत बजट के अतिरिक्त 25 हजार करोड़ रूपये और जारी किए। लोगों को गांव में ही रोजगार मिलने लगा तो बड़ी आबादी ने राहत की सांस ली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पूर्व में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) जैसे काम देने की सुनिश्चितता वाले इस कानून की वजह से आज हर साल देश के 11 करोड़ से अधिक परिवारों को उनके गांव घर के पास ही काम मिल पा रहा है। इस महत्वकांक्षी योजना को विश्व बैंक तक दुनिया की सबसे बड़ी जनकल्याण की योजना बता चुका है।
सालभर रोजगार की गारंटी
आज के ही दिन 2 फरवरी 2006 यानि 17 साल पहले, केंद्र में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने देश के 200 जिलों में एक ऐसी योजना लागू की जिसका उद्देश्य प्रत्येक बेरोजगार को साल भर में कम से कम सौ दिन का रोजगार देना था। साल 2004 में एनडीए गठनबंधन को हराकर केंद्र में सरकार बना चुकी कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए ने सरकार गठन के बाद ही एक ऐसी योजना पर विचार करना शुरू कर दिया था जिसमें ग्रामीण इलाकों में ग्रामीणों को सालभर में रोजगार की गारंटी दी जा सके।
जब श्रम मंत्रालय ने पीछे खींचे हाथ
यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय सलाहकार समिति का गठन कर इस योजना को अमल में लाने पर काम करना शुरू कर दिया। देश भर से सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों, नौकरशाहों को इस समिति से जोड़ा गया, न्यूनतम रोजगार गारंटी योजना का शुरूआती ढांचा बनाने की जिम्मेदारी श्रम मंत्रालय को सौंपी गई, लेकिन योजना के आकार और इसके अंतर्गत लाभांवित होने वाली आबादी और चुनौतियों को देखते हुए श्रम मंत्रालय ने इस काम से हाथ पीछे खींच दिए. तो यह जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्रालय को मिली. तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने कमान अपने हाथ में लेते हुए इस योजना को साकार रूप देने पर काम शुरू कर दिया।
फिजूलखर्ची भी बताया गया
देश की आधी से अधिक आबादी को सीधे तौर पर लाभांवित करने वाली इस योजना को लेकर कई बड़े नेता, अर्थशास्त्री एकमत नहीं थे। सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों द्वारा तैयार मसौदे को लेकर इसे कई अर्थशास्त्री व राजनीतिक दलों के नेता फिजूलखर्ची करार देने लगे। हालांकि, तत्कालीन केंद्र सरकार इस योजना का खाका तैयार कर चुकी थी और इसे हर हाल में लागू करना चाहती थी। लिहाजा, तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री को इस योजना का विरोध कर रहे नेताओं और अर्थशास्त्रियों को मनाने का भी जिम्मा सौंपा गया।
दोनों सदनों में हुई पास
आखिरकार 23 अगस्त 2005 को लोकसभा में पास होने और 24 अगस्त 2005 में राज्यसभा में पास होने के बाद दुनिया के सबसे बड़े कल्याणकारी योजना को 5 सितंबर 2005 को कानून के रूप में लागू कर दिया गया। इसके ठीक छह महीने बाद 2 फरवरी 2006 को इसे देश के 200 जनपदों में शुरू कर दिया गया। सालभर में सौ दिनों के काम की गारंटी के साथ ही इस योजना में काम न मिलने पर बेरोजगारी भत्ते के भुगतान का भी प्रावधान है। बीते वित्त वर्ष में ही भारत में करीब साढ़े 11 करोड़ परिवारों को मनरेगा योजना के तहत रोजगार मिला।
वयस्क युवाओं को रोजगार का कानूनी अधिकार
मनरेगा एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम है। वर्तमान में इस कार्यक्रम में पूर्णरूप से शहरों की श्रेणी में आने वाले कुछ ज़िलों को छोड़कर देश के सभी ज़िले शामिल हैं। मनरेगा के तहत मिलने वाले वेतन के निर्धारण का अधिकार केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास है। जनवरी 2009 से केंद्र सरकार सभी राज्यों के लिये अधिसूचित की गई मनरेगा मज़दूरी दरों को प्रतिवर्ष संशोधित करती है। पूर्व की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों के वयस्क युवाओं को रोज़गार का कानूनी अधिकार प्रदान किया गया है। प्रावधान के मुताबिक, मनरेगा लाभार्थियों में एक-तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है। साथ ही विकलांग एवं अकेली महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। मनरेगा के तहत मज़दूरी का भुगतान न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य में खेतिहर मज़दूरों के लिये निर्दिष्ट मज़दूरी के अनुसार ही किया जाता है, जब तक कि केंद्र सरकार मज़दूरी दर को अधिसूचित नहीं करती और यह 60 रुपए प्रतिदिन से कम नहीं हो सकती। प्रावधान के अनुसार, आवेदन जमा करने के 15 दिनों के भीतर या जिस दिन से काम की मांग की जाती है, आवेदक को रोज़गार प्रदान किया जाएगा।