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‘मीडिया और सोशल मीडिया ने हमें अपराधी बना दिया, जबकि हम पीड़ित थे’

– पुरोला में 15 को प्रस्तावित महापंचायत के चलते धारा 144 लागू, पुलिस के फ्लैग मार्च से खौफ में दिखे स्थानीय निवासी
– अपहरण के प्रयास की घटना के बाद स्थानीय लोग चाह रहे थे बाहरी व्यवसायियों का वेरिफिकेशन, पर सोशल मीडिया ने इसे हिंदु मुस्लिम मुद्दे में बदल दिया

PEN POINT, PUROLA : देहरादून से करीब 150 किमी दूर स्थित पुरोला बाजार में बुधवार को सन्नाटा पसरा था, 15 जून को प्रस्तावित महापंचायत को देखते हुए प्रशासन ने यहां धारा 144 लागू की है लेकिन कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए और किसी भी संभावित टकराव को टालने के लिए प्रदेश भर से पुलिस फोर्स पुरोला नाम के इस छोटे से कस्बे में जमा हुई है। शाम को 4 बजे जब सैकड़ों पुलिसकर्मियों का दस्ता बाजार में फ्लैग मार्च करते हुए गुजरता है तो बाजार में दुकानदारों, खरीददारी करने आए लोगों के बुझे चेहरे साफ देखे जा सकते हैं। पहली बार पुरोला में इस तरह पुलिस का जमावड़ा देख कई लोग पुलिस के इस फ्लैग मार्च को मोबाइल में रेकार्ड कर रहे हैं, इसी बीच देश के कई बड़े न्यूज चैनलों के पत्रकार भी लगातार पुलिस फ्लैग मार्च के साथ कदमताल करते हुए लाइव रिपोर्टिंग में जुटे है। पखवाड़े भर पहले तक पूरे देश समेत विदेशों के लिए अनजान सा यह छोटा पहाड़ी कस्बा इन दिनों सुर्खियों में है। स्थानीय लोगों, व्यवसायियों से बात करों तो कहते हैं कि मीडिया ने बात का बतंगड़ बना दिया। हमनें तो बस यहां व्यापार कर रहे बाहरी व्यापारियों के वेरिफिकेशन की मांग करने और उनका इतिहास खंगालने की मांग की थी लेकिन मीडिया की रिपोर्टिंग और सोशल मीडिया पर लव जिहाद के खिलाफ धर्म युद्ध का नाम देकर हमें अपराधी ही बना दिया जबकि अपराध करने का इतिहास उनका रहा है कि जो यहां बाहर से व्यापार करने के लिए आए और अपराधों को अंजाम देकर गायब हो गये।
पुरोला में पखवाड़े भर पहले बाजार में रजाई भरने का काम करने वाला एक मुस्लिम युवक और अन्य दुकान चलाने वाले एक हिंदु युवक को पुलिस ने एक नाबालिग लड़की के साथ पकड़ा। दोनों पर आरोप है कि दोनों युवक लड़की को भगा कर लेकर जा रहे थे। मामले को लेकर स्थानीय व्यापारियों और निवासियों ने भारी विरोध प्रदर्शन किया और बाहरी इलाकों से यहां व्यवसाय चलाने वाले व्यवसायियों के व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद करवा दिए। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि पहले बाहर से आए प्रत्येक व्यक्ति का वेरिफिकेशन हो। इसी बीच कुछ उत्साही युवाओं ने इसे बीते लंबे समय से क्षेत्र में बाहरी मुस्लिम युवाओं द्वारा स्थानीय युवतियों के साथ प्रेम संबंध रखने, उन्हें बहला फुसलाकर भगा ले जाने का नारा बुलंद करते हुए लव जिहाद से जोड़ दिया। लिहाजा, प्रदर्शन के दौरान कुछ युवाओं द्वारा मुस्लिम व्यवसायियों के दुकानों के बोर्ड तोड़े गए। खौफ की जद में आए मुस्लिमों ने भी दुकानें नहीं खोली तो जिन मुस्लिम व्यवसायियों के पास बाहर दुकान खोलने का विकल्प था उन्होंने यहां आनन फानन में दुकानें खाली कर पलायन कर लिया। पुरोला में इस घटना को लेकर हुए प्रदर्शन को सोशल मीडिया पर लव जिहाद के खिलाफ पहाड़ का धर्म युद्ध के नाम से बाहर बैठे लोगों ने खूब प्रचारित प्रसारित किया। पुरोला निवासी 28 वर्षीय विवेक नेगी बताते हैं कि यह हमारा अपना मामला था और हम मांग कर रहे थे कि जो यहां व्यापार कर रहा है उसका वेरिफिकेशन हो लेकिन सोशल मीडिया पर इसे सांप्रदायिक रंग दिया गया और पूरे देश में हमारी इस स्थानीय समस्या को हिंदू मुस्लिम का रूप दे दिया गया। विवेक बताते हैं कि हम पीड़ित थे क्योंकि हमारे यहां से महिलाओं, लड़कियों को बाहरी व्यापारी बहला फुसला कर भगा कर ले जाते हैं, उनका यौन उत्पीड़न करते हैं हमारा विरोध उसके खिलाफ था लेकिन सोशल मीडिया ने उसे अलग रंग दे दिया।
पुरोला में दो दशक से अधिक समय से सक्रिय पत्रकारिता कर रहे राधेकृष्ण उनियाल बताते हैं कि नबालिग का अपरण का मामला गंभीर था लेकिन पुलिस ने तत्परता से कार्रवाई की और आरोपियों को जेल भेजा, स्थानीय लोगों की अपनी और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता भी वाजिब थी लेकिन राष्ट्रीय मीडिया ने इसे हिंदुओं का मुस्लिमों पर अत्याचार का रंग दे दिया और इसने पुरोला और पुरोला निवासियों को बेहद कट्टर और सांप्रदायिक का तमगा दे दिया। वह बताते हैं कि पुरोला में कुछ मुस्लिम व्यवसायियों का वजूद चार दशक पुराना है यानि कि राज्य बनने से भी बीस साल पहले से, वह यहां की लोक संस्कृति में घुल मिल चुके थे और स्थानीय हितों और लोगों की भावनाओं का ख्याल रखा करते थे लेकिन हां कुछ सालों से बाहरी इलाकों से बड़ी संख्या में मजदूरों, मैकेनिक समेत छोटे छोटे व्यवसाय के लिए एक समुदाय विशेष के लोग पुरोला पहुंचे हैं जिसके चलते कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती है जिससे स्थानीय लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है लेकिन इसके बावजूद कभी टकराव की स्थिति नहीं आई।
यूं तो 15 जून को होने वाली महापंचायत का एलान स्थानीय ग्राम प्रधानों और व्यापार मंडल ने किया था लेकिन इसमें बेहद सांप्रदायिक संगठनों और नफरती बयानों के मशहूर लोगां के शामिल होने के बाद स्थानीय लोगों ने इस महापंचायत से हटने का फैसला लिया। स्थानीय व्यवसायी अंकित बताते हैं कि यह महापंचायत मुस्लिमों के खिलाफ नहीं थी बल्कि बाहर से आए हर व्यक्ति के वेरिफिकेशन करवाने, बाहरी व्यक्तियों की संख्या पर नियंत्रण, अपनी बहू बेटियों की सुरक्षा के लिए प्रयास से संबंधित थी, यह पुरोला की आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित करवाने के संबंध में थी लेकिन अब इसका जिस तरह से प्रचार किया गया उसके बाद यहां पुलिस की इतनी बड़ी संख्या देखकर निराशा होती है।
पुरोला में नाबालिग को भगाकर ले जाने के प्रयास वाली घटना के बाद मुस्लिम व्यापारियों ने अपनी दुकानें नहीं खोली है, बुधवार को जब पुलिस का जमावड़ा पुरोला में लगा था तो पुरोला बाजार की आधे से अधिक दुकानें बंद थी। स्थानीय व्यापारियों को डर था कि कहीं पुलिस की मौजूदगी में कोई बड़ी अनहोनी न हो जाए। स्थानीय निवासी रमेश बताते हैं कि हमनें मुस्लिमों को कभी नहीं कहा कि वह दुकान न खोले लेकिन वह नहीं खोल रहे हैं तो हमें अपराधी बताया जा रहा है।
हालांकि, पहनावे के आधार पर कहा जाए तो पुरोला बाजार में दोपहर के वक्त कुछ मुस्लिम घूमते भी दिखे जो रोजमर्रा का सामान खरीदने आए थे। बातचीत की कोशिश की गई तो उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया।

 

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