मूल निवास महारैली: सवाल सरकार से, सरकार पर हमले से परहेज
–देहरादून में रविवार को मूल निवास कानून की मांग को लेकर उमड़े जनसैलाब में वक्ताओं ने सरकार पर हमले से किया परहेज
Pen Point, (Pankaj Kushwal) : रविवार की सुबह, परेड ग्राउंड के समीप कनक चौक और विकास भवन के बीच लगातार लोगों का हुजूम उमड़ रहा है। क्योंकि, परेड ग्राउंड की दूसरी ओर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भाजपा का मोदी है ना नाम से एक रैली और जनसभा का आयोजन किया गया था। लिहाजा, किसी भी संभावित टकराव को रोकने के लिए ऐस्ले हॉल, कनक चौक और विकास भवन से होकर गुजरने वालों रास्तों पर भारी पुलिस बल तैनात था। साथ ही बेरिकेड लगाकर यह भी सुनिश्चित किया गया था कि हर आवाजाही पुलिस के नियंत्रण में ही हो सके।
दून क्लब के ठीक सामने मूल निवास कानून की मांग के समर्थन में लोगों का हुजूम उमड़ रहा था। शुरूआती दौर तक राजनीतिक पार्टियों के झंडे गायब थे और पहाड़ के अलग अलग हिस्सों से आए लोग मूल निवास, भू कानून के समर्थन में हाथों में तख्तियां लिए चहलकमदी कर रहे थे। मंच तो था नहीं लेकिन एक माइक लगाकर एक अस्थाई मंच सा तैयार किया गया था। जिसमें औपचारिक तौर पर वक्ता तो नहीं बुलाए जा रहे थे लेकिन जिसकी माइक तक पहुंच होती वह अपने विचार रखता। वक्ताओं में अधिकतर सामाजिक मुद्दों पर मुखर रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता थे जो सुबह से ही मूल निवास भू कानून की मांग के साथ ही जनगीत भी गाए जा रहे थे। परेड ग्राउंड के भीतर जनसभा की अनुमति नहीं थी तो दून क्लब और परेड ग्राउंड के गेट के बीच सड़क पर ही लगातार भीड़ जुट रही थी। कार्यक्रम में औपचारिकता जैसा कुछ नहीं था तो लोग जनसमूह के रूप में आते, मूल निवास और सख्त भू कानून के समर्थन में नारे लगाते।
दिसंबर की यह सर्द सुबह लोगों के जमावड़े और भीड़ से उठते नारों की वजह से उमस भरी सी महसूस होने लगी थी। उसी दौरान यूकेडी के झंडों के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की आमद कार्यक्रम स्थल पर होती है लेकिन भीड़ को ज्यादा फर्क पड़ता नहीं। कुछ देर के लिए राजनीतिक मौजूदगी के तौर पर सिर्फ उत्तराखण्ड क्रांति दल यानि यूकेडी के ही झंडे इस आयोजन में अपनी मौजूदगी दिखाते हैं। हालांकि, कार्यक्रम को कांग्रेस का भी समर्थन था लेकिन कांग्रेस ने पार्टी के झंडों को इस महारैली से दूर रखा। तभी माईक पर कांग्रेस प्रवक्ता गरीमा दसौनी की आवाज गूंजने लगती है। वह जैसे ही कहती है कि राज्य मूल निवास कानून मांग रहा है लेकिन सरकार यूसीसी कानून का ख्वाब दिखाकर राज्यवासियों की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रही है। राज्य सरकार के खिलाफ अब तक हुए उद्बोधन में यह पहला सीधा हमला था। गरिमा दौसानी के भाषण के इस हिस्से से उस अस्थाई मंचनुमा जगह पर मौजूद लोगों के बीच हलचल बढ़ गई और उनसे माइक वापस ले लिया गया। इसके बाद फिर मूल निवास, राज्य आंदोलन, भू कानून पर ही भाषण होने लगे।
ज्यादातर वक्ता एक सुर में ही राज्य में भू कानून न होने से बाहरी राज्यों के लोगों की ओर से वैध अवैध तरीके से जमीनें खरीद स्थानीय लोगों को भूमिहीन बनाने का आरोप लगा रहे थे तो मूल निवास के स्थान पर स्थाई निवास की व्यवस्था होने से बाहरी राज्यों के लोगों पर उत्तराखंड के मूल निवासियों के हक हकूकों पर डाका डालने का आरोप लगाया जा रहा था। तकरीबन दो घंटे हुजूम यहां डटा रहा और मंच से जनगीतों के साथ हर वक्ता भू कानून और मूल निवास पर अपने विचार तो रख रहा था लेकिन राज्य सरकार और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर सीधा हमला करने से सब बचते नजर आए। वक्ताओं की ओर से राज्य सरकार पर नरमी दिखाने का असर ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसरों पर भी दिख रहा था। सुबह से ही स्थितियों को बिगड़ने की आशंकाओं के साथ दौड़ भाग कर रहे अफसरों के चेहरे पर राहत साफ देखी जा सकती थी। शायद उन्हें भी यकीन हो चुका था कि कुछ ही दूरी पर भाजपा के ‘मोदी है ना’ कार्यक्रम के साथ टकराव वाली जिस स्थिति की आशंका से यह घिरे थे उसकी संभावनाएं तो फिलहाल दिख नहीं रही है।
मूल निवास के समर्थन में उमड़े इस हुजूम में शायद ही कोई आयु वर्ग का व्यक्ति शामिल न रहा हो। बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक यहां मूल निवास और सख्त भू कानून के समर्थन के लिए पहुंचा था। दो ढाई घंटे तक परेड ग्राउंड के समीप सरकार से मूल निवास कानून को 26 जनवरी 1950 से लागू करने और सख्त भू कानून बनाने की मांग के साथ जनगीतों और नारों के साथ महारैली निकल पड़ी। रैली को तहसील के समीप शहीद स्थल पर खत्म होना था और शुरू होने से लेकर समापन स्थल के बीच की दूरी किमी भर की भी नहीं है। रैली में उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए पुलिस ने रैली के गुजरने वाले मार्गों को वाहनों की आवाजाही के लिहाज से फ्रीज कर दिया था लिहाजा रैली कुछ ही देरी में अपने समापन स्थल पर भी पहुंच गई। लेकिन करीब तीन सवा तीन घंटे तक मूल निवास को लागू करने और सख्त भू कानून की मांग के नारे तो उछले लेकिन सरकार और मुख्यमंत्री पर तीखे वार करने से महारैली में शामिल लोग बचते रहे।