मां, बेटा और स्कूटर : जानिए मां की सेवा के इस खास सफर को
Pen Point, Dehradun: बेंगलुरू में एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर टीम लीडर डी कृष्ण कुमार की जिंदगी काफी व्यस्त थी। 2015 में उनके पिता का निधन हुआ तो मैसूर के बोगांदी गांव से उन्होंने मां को अपने पास ही बेंगलूरू बुला लिया। एक बार फिर वे अपनी कंपनी को कॉरपोरेट सेवा देने में व्यस्त हो गए। लेकिन 2018 में एक रोज उन्होंने अपनी मां से बात की तो उन्हें पता चला कि मां सिर्फ चूल्हा चौके में ही खप रही है। वो बाहर की दुनिया से पूरी तरह अनजान है। उसी वक्त उनके मन को मां की सेवा का विचार सूझा और उन्होंने मातृ सेवा संकल्प मुहिम शूरू कर दी। करियर के पीक पर उन्होंने कॉरपोरेट नौकरी छोड़ दी। संकल्प भी ऐसा कि कृष्ण कुमार ने शादी तक नहीं की। लगता है कि खुद को मां की सेवा में होम करते हुए वे अपने बारे में सब कुछ भुला चुके हैं। डी कृष्ण कुमार की इस मुहिम का मकसद मां को भारत भर में घुमाना था। जिसके लिए उन्होंने साधन पिता के 20 साल पुराना स्कूटर। जिसके पीछे वजह थी कि सफर में मां और उनके साथ पिता की याद भी जुड़ी रहे।
सत्तर हजार किमी से ज्यादा दूरी तय
इस तरह 16 जनवरी 2018 को शुरू हुआ मातृ सेवा संकल्प का सफर अब तक सत्तर हजार तीन सौ किमी की दूरी तय कर चुका है। इस दौरान वे भारत के सभी राज्यों समेत नेपाल, भूटान और म्यांमार भी हो आए हैं। इस यात्रा का ना तो कोई लक्ष्य होता है और ना ही निश्चित दूरी। कृष्ण कुमार बताते हैं कि तेरह साल की नौकरी के दौरान अर्जित जमा पूंजी से ही यात्रा का खर्च चल रहा है। सफर आसान बनाना है तो सामान कम रखिये वाले फलसफे के साथ यह यात्रा जारी है। एक स्कूटर के अलावा जरूरी सामान के लिए एक बैग पानी की बोतल और टूटी स्क्रीन का एक मोबाइल ही उनका सामान है।
डी कृष्ण कुमार बताते हैं कि यात्रा के लिए कोई बड़ी योजना नहीं होती, ना तो भोजन की चिंता करते हैं और ना ही अगले ठिकाने की। आम तौर पर वे धार्मिक मठ या आश्रमों में ही रूकते हैं जहां भोजन निशुक्ल मिल जाता है।
यात्रा में हम दो नहीं तीन लोग !
अपने संकल्प को लेकर उनका कहना है कि यह पूरी तरह से मां और पिता का समर्पित है। मेरी मां ने दस लोगों के परिवार के लिये खुद को पूरी तरह झोंक रखा था। इस कदर की उन्होंने बाहर की दुनिया क्या मैसूर में गांव के पास का मंदिर भी नहीं देखा था। इससे मुझे बहुत हैरानी हुई और फिर मैंने मां को देश में जहां तक हो सकता है घुमाने का फैसला करते हुए नौकरी से इस्तीफा दे दिया। पिता के स्कूटर को यात्रा के लिए इसलिये चुना ताकि उनके भी होने का अहसास साथ रहे, इसीलिए मुझे लगता है कि यात्रा में हम दो नहीं तीन लोग हैं।
बेटे ने मेरा जीवन सार्थक कर दिया
सफर में पैट्रोल खर्च की बाबत पूछने पर कृष्ण कुमार कहते हैं कि इस बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं, अगर ऐसा सोचूंगा तो जो संकल्प लिया है उसका भाव खत्म हो जाएगा।
दूसरी ओर, कृष्ण कुमार की मां चुडा रत्नम्मा की आंखों में चमक है। एक रोज पहले ही वे बेटे के साथ बदरीनाथ के दर्शन करके आई हैं। 2018 तक उन्होंने घर से बाहर कुछ भी नहीं देखा था लेकिन पिछले पांच सालों में उन्होंने खूब सारी जगहें देख ली हैं।
बेटे की बलाएं लेते हुए कहती हैं- इस जन्म में ऐसा बेटा मिलना मुश्किल है, मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा बेटा मिला। जिसने मुझे पूरे भारत के मंदिर दिखा दिए हैं और पवित्र नदियों में स्नान करवाकर मेरा जन्म सार्थक कर दिया है। मैं चाहती हूं कि सभी बच्चे अपने मां बाप की ऐसी ही सेवा करें, अगर बहुत समय नहीं दे सकते तो कुछ देर उनके साथ जरूर बिताएं।