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आज की तारीख : जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चली थी पहली गोली

1857 के संग्राम में आज के ही दिन मंगल पाँडे ने लेफ़्टिनेंट बो पर चलाई पहली गोली, कलकत्ता से शुरू हुआ 1857 का गदर
PEN POINT, DEHRADUN : भारत के ज्यादातर हिस्से अंग्रेजी सेना के कब्जे में आ चुके थे, 1757 को प्लासी के युद्ध के बाद भारत में अंग्रेजी सेना मजबूत हो चुकी थी, लिहाजा देश की ज्यादातर रिसायतों, शासकों ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ एक विद्रोह छेड़ने का फैसला किया, तारीख मुकर्रर की गई 10 मई 1857, सब कुछ योजना के हिसाब से चल था लेकिन मार्च महीने की 29 तारीख को कलकत्ता के कुछ 25 किमी दूर बैरकपुर की सैनिक छावनी में एक सैनिक ने अंग्रेजी सेना पर गोली चलाकर विद्रोह की शुरूआत कर दी। अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल आज के ही दिन 29 मार्च 1857 को कलकत्ता के बैरकपुर की उस छावनी से शुरू हो चुका था जहां अंग्रेजों ने सबसे ज्यादा भारतीय सैनिक तैनात किए थे, और जो छावनी अमूमन देश की सबसे शांत सैनिक छावनी मानी जाती रही थी।
1856 तक अंग्रेजी सेना ब्राउन बीज नाम की बंदूक का इस्तेमाल किया करते थे, लेकिन 1856 में सेना में इनफील्ड पी 53 रायफलों का प्रयोग किया जाने लगा। इस बंदूक को लोड करने से पहले कारतूस को दांत से काटना पड़ता था। भारतीय सिपाहियों के बीच ये अफवाह फैल गई कि इन राइफ़लों में इस्तेमाल किए जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है।भारतीय सैनिकों के बीच ये आम राय भी बन गई थी कि अंग्रेज़ो ने ऐसा जानबूझ कर भारतीय सैनिकों को नीचा दिखाने के लिए किया है।
अछूत ने बताई यह खबर
इतिहासकारों के मुताबिक एक बार एक निम्न जाति के खलासी ने एक ब्राह्मण सिपाही के लोटे से पानी पीने की इच्छा प्रकट की। उस ब्राह्मण सिपाही ने ये कहते हुए उसे पानी पिलवाने से इंकार कर दिया कि इससे उसका लोटा दूषित हो जाएगा। इस पर उस निम्न जाति के व्यक्ति ने व्यंग्यात्मक जवाब दिया, जल्द ही तुम्हारी जाति का अस्तित्व ही नहीं रहेगा क्योंकि तुम्हें सुअर और गाय की चर्बी से बने कारतूसों को काटना पड़ेगा। जल्द ही ये ख़बर आग की तरह फैल गई कि सरकार उनकी जाति और धर्म को भृष्ट करने पर आमादा है।

सबसे पहली गोली मंगल पांडे ने चलाई
मंगल पांडे 22 वर्ष की आयु में 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल की सेना में शामिल हुए थे। 29 मार्च 1857 को शाम 5 बज कर 10 मिनट, दिन था रविवार। कारतूसों से जुड़ी खबर से बौखलाए मंगलपांडे ने बाहर निकलकर हंगामा करना शुरू कर दिया। जैसे ही मंगल पांडे ने हंगामा शुरू किया परेड ग्राउंड पर लेफ़्टिनेंट बी एच बो पहुंच गए। मंगल पांडे ने देखते ही उन पर गोली चलाई जो उनके घोड़े के पैर पर लगी। घोड़ा गिर गया और धराशाई बो ने खड़े होते हुए मंगल पांडे पर गोली चलाई जो उन्हें नहीं लगी। बो के पीछे सार्जेंट मेजर हिउसन भी आ गए। हालात देखते हुए हिउसन और बो दोनों ने अपनी अपनी तलवारें निकाल लीं। उनके पास तलवारों के अलावा उनकी पिस्टल भी थीं। मंगल पांडे ने बो और हिउसन दोनों पर अपनी तलवार से हमला किया। वहाँ मौजूद सभी भारतीय सैनिक ये तमाशा देखते रहे उनमें से कोई भी अंग्रेज़ अफ़सरों की मदद के लिए नहीं आया सिवाए शेख़ पलटू के. उसने मंगल पाँडे की कमर को पीछे से पकड़ लिया.। नतीजा ये हुआ कि दोनों अंग्रेज़ अफ़सर बच निकलने में कामयाब हो गए। मंगल पांडे गिरफ्तार कर दिए गए। मुकदमे के दौरान मंगल पाँडे ने स्वीकार किया कि इस पूरे मामले में उनका कोई साथी नहीं था। इस सवाल पर कि क्या आप गोली चलाते समय नशे में थे मंगल ने कहा कि वो पिछले कुछ समय से भाँग और अफ़ीम का सेवन करते रहे हैं। गोरे अफसर पर हमला करने की सजा के तौर पर सिपाही नंबर 1446 मंगल पांडे को इसके लिए मौत की सज़ा सुनाई गई और 8 अप्रैल, 1857 को सुबह साढ़े पाँच बजे उनके सैनिक साथियों के सामने उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया। पहले मंगल की फाँसी की तारीख़ 18 अप्रैल निर्धारित की गई थी लेकिन अंग्रेज़ो को लगा कि कहीं ये विद्रोह दूसरे इलाकों में न फैल जाए इसलिए उन्होंने मंगल को दस दिन पहले ही फाँसी पर लटका दिया. 1857 के विद्रोह में जान देने वाले मंगल पांडे पहले भारतीय थे।

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