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जयंती विशेष: देश का निर्वाचित पहला दलित सांसद जिसे ट्रेन की सीट पर तक नहीं बैठने दिया गया

– सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहले आम चुनाव में बिहार के भागलपुर पूर्णिया सीट से सांसद चुने गए थे किराय मूसहर, जमींदारों के खेतों में हर चलाकर करते थे गुजर बसर
PEN POINT, DEHRADUN : देश की आजादी के बाद पहले आम चुनाव में बिहार की भागलपुर पूर्णिया सीट से निर्वाचित एक सांसद लोकसभा सत्र के लिए ट्रैन से दिल्ली के लिए रवाना होता है। फटे पुराने कपड़ों वाले इस सांसद की गरीबी का आलम यह था कि दिल्ली जाने के लिए भी कार्यकर्ताओं ने चंदा कर ट्रैन का टिकट करवाकर एक सीट आरक्षित की। ट्रैन में चढ़ा तो साथ यात्रा कर रहे कथित सवर्णों को इस नीच जात के व्यक्ति का ट्रैन की आरक्षित श्रेणी में सफर करना उनके वजूद को चुनौती देने जैसे लगा तो उसे सीट पर बैठने नहीं दिया गया। पहली निर्वाचित संसद का यह निर्वाचित सांसद अगले डेढ़ दिन का सफर ट्रैन के फर्श पर बैठकर पूरा करता है। देश के पहले निर्वाचित दलित सांसद किराय मुसहर की आज 102वीं जयंती है।

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देश के पहले आम चुनाव में यूं तो कांग्रेस को बहुमत मिला था। कांग्रेस को 499 सीटों में से 364 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन 12 सीटें जीतकर सोशलिस्ट पार्टी तीसरे नंबर पर रही थी। इसी सोशलिस्ट पार्टी के डॉ. राममनोहर लोहिया ने चुनाव में बिहार की भागलपुर पूर्णिया सीट से किराय मूसहर को प्रत्याशी बनाया। सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े किराय मूसहर जमींदारों के खेतों पर हल चलाकर अपना व परिवार का गुजर बसर करता था। चुनाव के लिए तैयारी में जुटे डॉ. राममनोहर लोहिया ने जब किराय मूसहर को जब प्रत्याशी घोषित किया तो उनकी पार्टी ही उनके इस फैसले के खिलाफ थी लेकिन वह लोहिया अपने फैसले पर अडिग थे। किराय मूसहर जब जमींदार बीपी मंडल के खेतों में हल चला रहे थे तो किसी ने आकर उन्हें सूचना दी कि डॉ. लोहिया ने उन्हें सोशलिस्ट पार्टी से प्रत्याशी बनाया है, वह हड़बड़ा कर डॉ. लोहिया के पास पहुंचे और कहने लगे कि अगर वह चुनाव राजनीति के चक्कर में पड़े तो घर कैसे चलाएंगे उनके बीबी बच्चे भूखे मर जाएंगे और उन्हें वोट कौन देगा। सामाजिक समानता के पक्षधर डॉ. लोहिया ने जवाब दिया कि फैसला हो चुका है और इसे बदला नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि वर्षों की गुलामी के बाद देश में पहला चुनाव हो रहा है और समाजवाद के नाम पर हम तुम्हारी बलि लेने आए हैं। लोहिया ने किराय मूसहर को समझााया कि अगर चुनाव तुम्हारी जीत होती है तो वंचितों को राजनीति में भागीदारी का यह संदेश बिहार के जरिए पूरे देश में जाएगा और दलित वंचितों को प्रेरित करने का काम करेगा।
काफी मनोव्वल कर किराय मूसहर चुनाव लड़ने को राजी हुए और जीत भी दर्ज की। इसके बाद जब सांसद बनकर दिल्ली में सदन की कार्यवाही में शामिल होने की बारी आई तो किराय मूसहर के पास इतने भर भी पैसे न थे कि वह ट्रैन से दिल्ली जा सके तो सोशलिस्ट पार्टी कार्यकर्ताओं ने चंदा कर उनके लिए आरक्षित श्रेणी का टिकट उपलब्ध करवाया। पहली बार ट्रैन में चढ़ने वाले किराय मूसहर को ट्रैन में अपने बगल में खड़ा देख सवर्णों ने नाक भौंह सिकोड़ ली। यूं तो निर्वाचित सांसद के तौर पर किराय मूसहर अपनी यह यात्रा कर रहे थे लेकिन जातिगत भेदभाव और जातीय श्रेष्ठता से भरी बोगी में उनके लिए यह यात्रा करना आसान न था। कटाक्ष होने लगे तो वह सीट पर बैठने की हिम्मत न जुटा सके और अगले डेढ़ दिन की यात्रा ट्रैन के फर्श पर बैठकर पूरी की। दिल्ली पहुंचकर सदन की कार्यवाही में शामिल हुए। नाममात्र के पढ़े लिखे किराय मूसहर सदन में दलित वंचित वर्ग के प्रतिनिधित्व का प्रतीक भी थे।
ग्रामीण पृष्ठभूमि से और समाज के सबसे निचले वर्ग से आने वाले किराय मूसहर सदन में बेहद किनारे बैठा करते थे। खुद को समेटे किनारे बैठने वाले किराय मूसहर पर एक दफा सदन में देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की नजर गई तो उन्होंने उनसे क्षेत्र की समस्या के बारे में पूछा ताकि सरकार उनके क्षेत्र में लोगों के लिए कुछ कर सके। हिंदी बिल्कुल न जानने वाले किराय मूसहर ने अपनी बोली में भी बताया कि कोसी नदी में हर साल बाढ़ में लोग अपनी जमीन और घर गंवा रहे हैं। बताया जाता है कि इससे ही प्रेरित होकर नेहरू ने कोसी परियोजना का निर्माण करवाया था।
हालांकि, किराय मूसहर को लंबी उम्र नहीं मिली और किराय मूसहर को लंबी जिंदगी तो नहीं मिली और वह 1965 में लंबी बीमारी के बाद चल बसे लेकिन वह दलित राजनीति के लिए प्रतीक पुरूष जरूर साबित हुए।

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