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अब राज्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करेंगे भगत ‘दा’

पहले शेष जीवन अध्ययन और चिंतन में बिताने के लिए राजभवन छोड़ा, फिर किया दावा कि गांव में रहकर बाकी जीवन जीयेंगे
PEN POINT, Dehradun –  महाराष्ट्र राजभवन से विदाई लेने से पहले भगत सिंह कोश्यारी ने दावा किया था कि वह शेष जीवन अध्ययन और चिंतन में बितायेंगे। राज्य में पहुंचने के बाद उनके आवास पर नेताओं की हलचत बढ़ने लगी तो उनकी ओर से बयान आया कि वह गांव जाकर शेष जीवन जीना चाहते हैं लेकिन कार्यकर्ता छोड़ नहीं रहे। लेकिन, अब भगत ‘दा’ ने राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की धुन छेड़ दी है। मुंबई वापसी के बाद से ही राज्य में सर्वाधिक चर्चा का विषय बन चुके 80 वर्षीय भगत सिंह कोश्यारी के हर बयान, हर कदम पर इन दिनों राज्य की राजनीति में रूचि रखने वाले लोग नजर टिकाए बैठे हैं।
शुक्रवार को महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल और इन दिनों राज्य की राजनीति में चर्चा का केंद्र बने भगत सिंह कोश्यारी ने आखिरकार मुंबई से लौटने के सप्ताह भर बाद मीडिया से बातचीत की। प्रेस क्लब में आयोजित इस प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में भगत सिंह कोश्यारी ने साफ किया कि वह अब सक्रिय राजनीति में तो नहीं लौटेंगे लेकिन राज्यहित में काम करते रहेंगे और राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करूंगा। हालांकि, महाराष्ट्र राजभवन छोड़ने से पहले भगत सिंह कोश्यारी ने दावा किया था कि वह अब बाकी जीवन अध्ययन और चिंतन में बिताना चाहते हैं, देहरादून पहुंचे तो दावा किया कि शेष जीवन बागेश्वर स्थित अपने मूल गांव में बिताएंगे। लेकिन इस दौरान उनका डिफेंस कॉलोनी स्थित किराए का आवास राज्य के छोटे बड़े नेताओं के लिए हाजिरी लगाने की महत्वपूर्ण जगह बन गई। महाराष्ट्र राजभवन से देहरादून लौटने के बाद से ही डिफेंस कॉलोनी स्थित आवास में शायद ही कोई दिन या घड़ी गुजरी हो जब राज्य में भाजपा से जुड़े हर छोटे बड़े नेता कार्यकर्ता ने यहां आकर भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात न की हो। असल में बीते सप्ताह भर से भगत सिंह कोश्यारी राज्य की राजनीति के शक्ति केंद्र बनकर उभर रहे थे। यहां तक कि राज्य सरकार की आंखों की किरकिरी बन चुके बेरोजगार संगठन आंदोलन के नेतृत्व कर रहे युवा बेरोजगार नेताओं से भगत सिंह कोश्यारी की मेल मुलाकात भी खूब चर्चाओं में रही।
भगत सिंह कोश्यारी का कद राज्य की राजनीति में बहुत बड़ा है, राज्य की भाजपा सरकार व संगठन में उनकी बड़ी साख है। यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी भी उनके राजनीतिक शिष्य माने जाते है। 2022 में भाजपा की प्रचंड बहुमत के साथ वापसी के बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट नहीं बचा सके तो बताया गया कि कोश्यारी हठ के कारण ही हाईकमान को हारने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री का पद सौंपना पड़ा। वहीं, अपने समर्थकों के बीच भगत सिंह कोश्यारी की साख एक अच्छे गुरू की है जो अपने राजनैतिक शिष्यों की सुध लेने के साथ ही उनके हितों के लिए हद से गुजरने से भी परहेज नहीं करते।
ऐसे में उनके उत्तराखंड वापसी के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे कि देहरादून आकर भगत सिंह कोश्यारी शांत तो नहीं बैठेंगे बल्कि राज्य की सत्ता के समांतर ही एक नया शक्ति का केंद्र साबित होंगे। बीते सप्ताह भर में ऐसा होता हुआ भी लगा।
बीते शुक्रवार को जब वह मीडिया से रूबरू हुए तो वही बाते दोहराई जो वह कहते आ रहे हैं। हांलाकि, भगत सिंह कोश्यारी के कद और इतिहास को देखते हुए उनके शांति पूर्वक बैठने की बात को कोई पचा नहीं पा रहा है।

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