जनसंख्या नियंत्रण की जिम्मेदारी महिलाओं पर
– उत्तराखंड में परिवार नियोजन कार्यक्रम में पुरूष नहीं आते आगे, महिलाओं के हिस्से परिवार नियोजन
PEN POINT, DEHRADUN : क्या आप जानते हैं कि भारत दुनिया का पहला इकलौता देश था जिसने देश की आबादी को नियंत्रित करने के लिए आजादी के पांच साल बाद यानि 1952 में ही परिवार नियोजन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया था। कार्यक्रम को शुरू होने के सात दशक बाद भी देश की आबादी को नियंत्रित नहीं किया जा सका। हाल ही में आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। परिवार नियोजन को लेकर तमाम भ्रांतियों के बीच परिवार नियोजन की जिम्मेदारी फिलहाल महिलाओं के ही जिम्मे है। उत्तराखंड राज्य के आंकड़ों की माने तो परिवार नियोजन के लिए महिलाओं के मुकाबले केवल 2 फीसदी पुरूष ही आगे आए।
उत्तराखंड में परिवार नियोजन की जिम्मेदारी भी महिलाओं के हिस्से ही है। 2022-23 में प्रदेश भर में करीब 10766 महिलाओं ने नसबंदी करवाई तो परिवार नियोजन के लिए नसंबदी के लिए केवल 210 पुरूष ही सामने आए। हालांकि, बीते साल करीब 1,39,613 प्रसव अस्पतालों में हुए जो प्रदेश भर में हुए कुल प्रसवों का 76 फीसदी है। इस लिहाज से देखा जाए तो कुल हुए प्रसवों के मुकाबले दस फीसदी से भी कम लोगों ने परिवार नियोजन का विकल्प चुना। हालांकि, बीते साल परिवार नियोजन के लिए कॉपरटी का विकल्प चुनने वाली महिलाओं की संख्या नसबंदी करवाने महिलाओं के तीन गुना ज्यादा रही। इस दौरान परिवार नियोजन के लिए कॉपर टी का विकल्प 33966 महिलाओं ने चुना।
राज्य में परिवार नियोजन की धीमी रफ्तार राज्य में जनसंख्या नियंत्रण की राह का रोड़ा बना हुआ है तिस पर पुरूषों की विभिन्न भ्रांतियों के चलते परिवार नियोजन के लिए नसबंदी न चुनने का फैसला भी राज्य में जनसंख्या नियंत्रण को चलाए जा रहे अभियानों की सफलता में राह का रोड़ा बना हुआ है।
जिला अस्पतालों में नहीं नसबंदी की व्यवस्था
राज्य के सीमांत जिला अस्पतालों में नसबंदी की फिलहाल व्यवस्था नहीं है। सिर्फ सिजेरियन प्रसव के दौरान नसंबदी की व्यवस्था लेकिन बिना सिजेरियन के प्रसवों के लिए फिलहाल नसबंदी की व्यवस्था नहीं है। जिला अस्पताल उत्तरकाशी में स्त्री रोग विशेषज्ञ की तैनाती होने के बाद सिजेरियन प्रसव के दौरान नसबंदी करवाने की व्यवस्था तो है लेकिन इसके अलावा सामान्य तरीके से होने वाले प्रसव के दौरान महिलाओं के नसबंदी की व्यवस्था नहीं है तो साथ ही पुरूषों के लिए भी नसबंदी के कैंप लंबे समय से आयोजित नहीं हो सके हैं। यही हाल राज्य के अन्य जिला अस्पतालों का भी है।