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PEN POINT: मनीष सिसोदिया ईमादार या भ्रष्ट ?

PEN POINT: मनीष सिसोदिया का जन्म 5 जनवरी 1972 को उत्तर प्रदेश के हापुड़ के एक साधारण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव के स्कूल से की थी। इसके बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली में पूरी की। उन्होंने पत्रकारिता में भारतीय विद्या भवन से डिप्लोमा किय।

बतौर पत्रकार अपने करियर की शुरुआत की..

मनीष सिसोदिया ने अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में की थी। ऑल इंडिया रेडियो के कार्यक्रम ‘जीरो ऑवर’ को होस्ट किया था। इसके बाद उन्होंने एक निजी टीवी चैनल में भी काम किया। लेकिन पत्रकारिता में उनका मन ज्यादा नहीं लगा। उन्होंने कुछ अलग रास्ता चुनने का मन बनाया। चूंकि वो एक बेहद ही सामान्य परिवार से आए थे तो उन्होंने आम लोगों के लिए काम करने का मन बनाया था।

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केजरीवाल से मुलाकात और अन्ना आंदोलन

सिसोदिया की केजरीवाल से मुलाकात 1998 में हुई थी। इसी दौरान उन्होंने एक्टिविजम की तरफ का भी रुख किया था। सिसोदिया ‘कबीर’ नाम का एक एनजीओ भी चलाते थे। 2011 में सिसोदिया अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के भी हिस्सा बने थे। इसी आंदोलन में जन लोकपाल बिल की मांग उठी थी। सिसोदिया आप के संस्थापक सदस्य थे। उन्हें पार्टी के राजनीतक समिति का सदस्य बनाया गया था। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में सिसोदिया पटपड़गंज से चुनाव लड़ा था। उन्होंने बीजेपी के नकुल भारद्वाज को हराया था। 2015 के में भी सिसोदिया को पटपड़गंज से जीत मिली थी। उन्होंने विनोद कुमार बिन्नी को मात दी थी। इस जीत के बाद केजरीवाल सीएम और सिसोदिया डेप्युटी सीएम बने थे। 2020 के विधानसभा चुनाव में सिसोदिया ने पटपड़गंज से बीजेपी उम्मीदवार रविंदर सिंह नेगी को 3 हजार वोटों से हराया था। सिसोदिया के पास सर्विस, महिला और बाल विकास, कला, संस्कृति, एजुकेशन, फाइनेंस, योजना, भूमि और भवन, विजिलेंस जैसे विभाग हैं।

2006 में छोड़ी पत्रकारिता

सिसोदिया ने 2006 में पत्रकारिता का करियर को छोड़ दिया। उन्होंने अरविंद केजरीवाल, के साथ ‘पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की। इन्होंने फिर ‘परिवर्तन’ एनजीओ को भी बनाया। 2013 में दिल्ली में सरकार बनाने से पहले सिसोदिया और केजरीवाल इसी एनजीओ के जरिए काम करते थे। इसके जरिए दोनों शख्स राशन, बिजली बिल और सूचना का अधिकार के लिए काम करते थे। इसके जरिए ही ये दोनों नेता अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़े। फिर आम आदमी पार्टी की स्थापना हुई। इसके बाद दिल्ली में आप का राज भी शुरू हुआ।

मनीष एक सामाजिक कार्यकर्ता

मनीष सिसोदिया सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं। वह कबीर और परिवर्तन नामक सामाजिक संस्था का संचालन करते रहे हैं। सिसोदिया सक्रिय आरटीआई (सूचना का अधिकार अधिनियम) कार्यकर्ता रहे हैं। वे ‘कबीर’ नामक गैर-सरकारी संस्था चलाते हैं तथा अरविन्द केजरीवाल के साथ ‘सार्वजनिक हित अनुसन्धान फाउण्डेशन’ (Public Cause Research Foundation) नामक गैर सरकारी संगठन के सह-संस्थापक भी हैं। वे ‘अपना पन्ना’ नामक हिन्दी मासिक पत्र के सम्पादक हैं। वे अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के प्रमुख सदस्य रहे। किन्तु बाद में जब अरविंद केजरीवाल ने आन्दोलन छोड़ राजनीति में आने का निश्चय किया तो मनीष ने उनका साथ दिया।

अन्ना आंदोलन में सक्रिय रहे मनीष सिसोदिया

मनीष सिसोदिया सूचना का अधिकार अधिनियम पारित करने के संघर्ष में सक्रिय रहे और जन लोकपाल आंदोलन की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह अरविंद केजरीवाल के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक हैं। उन्होंने दिल्ली में मोहल्ला सभाओं के लिए जागरुकता पैदा करने और संचालन करने के लिए उनके साथ काम किया। अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में काफी सक्रिय रहे।

राजनीति में पदार्पण

मनीष सिसोदिया 26 नवम्बर 2012 को स्थापित आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। उन्हें पार्टी ने 2013 के दिल्ली विधान सभा चुनाव के लिए पटपड़गंज विधान सभा क्षेत्र का उम्मीदवार बनाय। इस चुनाव में वे उन्होंने जीत हासिल की।

सिसोदिया दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के सबसे भरोसेमंद सहयोगी के तौर पर उभरे थे। जब पहली बार केजरीवाल को अपने डेप्युटी की जिम्मेदारी देने का वक्त आया तो उन्होंने सिसोदिया को ही सबसे पहले चुना। 13 में पहली बार सिसोदिया बने विधायक

अन्ना आन्दोलन के बाद जब अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला किया तो सिसोदिया भी उनके साथ आ गए। वह 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में नकुल भारद्वाज को 11,476 वोटों से हराकर आम आदमी पार्टी के विधायक बने थे। 2015 के चुनाव में पटपड़गंज विधानसभा सीट से एक बार फिर से मनीष सिसोदिया विधायक बने और 2020 में वह दिल्ली की पटपड़गंज विधान सभा सीट से फिर विजयी हुए, इस बार उन्होंने रविंदर सिंह को 3000 से अधिक मतों से हराया।

2015 से दिल्ली के डिप्टी सीएम पद रहे

मनीष सिसोदिया दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार में 2015 से ही डिप्टी सीएम के पद पर रहे। इस दौरान उनके पास शिक्षा मंत्रालय भी उनके पास ही रहा। शिक्षा मंत्री के रूप मनीष सिसोदिया द्वारा किए गए कामों को आम आदमी पार्टी ने शिक्षा मॉडल के रूप में पेश किया।

शिक्षा के क्षेत्र में कार्य 
मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के शिक्षा मंत्री के रूप में दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में कुछ सुधार किया है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पत्नी मेलानिया ट्रम्प ने अपने भारत दौरे के दौरान दिली के स्कूलों का विशेष दौरा किया था। शिक्षा के क्षेत्र में सिसोदिया के काम की कई बड़े मंचों पर प्रशंसा होती रही है। दिल्ली राज्य सरकार के स्कूलों के रिजल्ट में भी बड़ा सुधार सामने आया है।

आम आदमी पार्टी (AAP) के दूसरे सबसे ताकतवर नेता मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) की गिरफ्तारी के बाद आप और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के तलवारें खिंच गई हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने दिल्ली शराब घोटाला (Delhi Liquor Scam Case) में सिसोदिया को रविवार को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी आक्रोशित है। आप केंद्र सरकार पर विरोधियों की आवाज दबाने का आरोप लगा रही है। बहरहाल सिसोदिया की गिरफ्तारी के पीछे वजह जो भी है लेकिन एक साधारण परिवार में जन्मे सिसोदिया की कहानी कम दिलचस्प नहीं है। अरविंद केजरीवाल से मुलाकात से लेकर अन्ना हजारे के आंदोलन और आप की स्थापना तक सिसोदिया सबके केंद्र में रहे हैं।

बतौर पत्रकार करियर शुरू करने वाले सिसोदिया दिल्ली की राजनीति में शीर्ष तक पहुंचे हैं। सिसोदिया दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के बेहद खास नेता में शुमार किए जाते हैं ।

इस वजह से हुई थी सिसोदिया की गिरफ्तारी 

दिल्ली सरकार द्वारा लाई गई नई आबकारी नीति के जरिए सिसोदिया पर लाइसेंसधारकों को अनुचित लाभ देने के आरोप लगे हैं। आरोप है कि इस नीति के तहत लाइसेंस शुल्क माफ या कम कर दिया गया था या सक्षम अधिकारी प्राधिकारी की मंजूरी के बिना एल-1 लाइसेंस बढ़ाया गया था।

कोरोना महामारी के कारण 28 दिसंबर 2021 से 27 जनवरी 2022 तक निविदा लाइसेंस शुल्क पर छूट की अनुमति दी गई थी। इसकी वजह से सरकारी खजाने को 144.36 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। उपराज्यपाल की सिफारिश सीबीआई ने केस दर्ज किया। सीबीआई के केस में मनीष सिसोदिया को आबकारी नीति के कथित घोटाले में मुख्य आरोपित बनाया गया। रविवार को मामले में 8 घंटे की लंबी पूछताछ के बाद सीबीआई ने मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया और मंगलवार यानी 28 फरवरी को सिसोदिया ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

तिहाड़ में ही ED ने किया था गिरफ्तार

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुवार को दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) को दिल्ली के आबकारी नीति के कथित घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया है। ईडी ने सिसोदिया से दिल्ली के तिहाड़ जेल में करीब 8 घंटे की पूछताछ की।

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इससे पहले CBI ने किया था अरेस्ट

बता दें कि इससे पहले सीबीआई ने मनीष सिसोदिया को 26 फरवरी को लंबी पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया था। सिसोदिया ने सीबीआई की गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जहां से उन्हें राहत नहीं मिली थी। इसके बाद मनीष सिसोदिया ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

ईडी ने सिसोदिया से तिहाड़ जेल में की पूछताछ

मनीष सिसोदिया दिल्ली की आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार के सिलसिले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद न्यायिक हिरासत में दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद थे, जहां पर गुरुवार को ईडी ने दिल्ली के आबकारी नीति मामले में उनसे करीब 8 घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया है।

मनीष सिसोदिया वर्तमान दिल्ली सरकार में मंत्री एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री थे, उनके पास शिक्षा, उच्च शिक्षा, जन निर्माण विभाग (पी डब्ल्यू डी), शहरी विकास, स्थानीय निकाय, भूमि एवं भवन तथा रेवेन्यू विभाग थे, वे दिल्ली विधानसभा की पटपड़गंज सीट से विधायक हैं। वे आम आदमी पार्टी के राजनेता हैं।

देश में चर्चाओं में है ईडी की कार्रवाइयां

देश में इस समय प्रवर्तन निदेशालय (ED के छापे और उसके राजनीतिक दुरुपयोग की खूब चर्चा हो रही है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार जांच एजेंसियों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने में कर रही है। इस बीच धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) 2002 के विभिन्न पहलुओं को चुनौती देते हुए कई आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में लगभग 250 याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाओं ने ईडी की तलाशी, जब्ती और कुर्की की शक्तियों, आरोपियों पर बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी और उनके खिलाफ सबूत के तौर पर ईडी को दिए गए बयानों की वैधता पर सवाल उठाया, जो कि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ईडी अधिकारी पुलिस अधिकारी हैं।

याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पास गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और जब्ती की शक्ति है और धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) 2002 के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है।

याचिकाकर्ताओं ने एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) की तर्ज पर प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) की एक प्रति प्रदान करने के अधिकार का भी दावा किया, जो वर्तमान में प्रदान नहीं की गई है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चूंकि पीएमएलए के तहत अपराध के लिए अधिकतम जेल की अवधि सात साल है, इसलिए इसे गंभीर अपराध नहीं कहा जा सकता है और इस तरह जमानत देने की शर्तों को आसान बनाया जाना चाहिए।

मनी लॉन्ड्रिंग की परिभाषा पर, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि पीएमएलए की धारा 3, जिसमें कहा गया है कि कोई भी “अवैध आय से जुड़ी किसी भी प्रक्रिया या गतिविधि में शामिल है और इसे बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करता है” को शामिल के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। अपराध की आय से जुड़ी किसी भी प्रक्रिया या गतिविधि में या इसे बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करना। अदालत ने कहा, इसका मतलब यह है कि अवैध आय को छुपाना, कब्जा करना, अधिग्रहण या उपयोग करना भी मनी लॉन्ड्रिंग के समान होगा।

ईसीआईआर दिए जाने के अधिकार पर, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक प्राथमिकी के विपरीत, एक ईसीआईआर ईडी का एक आंतरिक दस्तावेज है और इसलिए, इसे आरोपी के साथ साझा करने की आवश्यकता नहीं है। एससी ने कहा कि “यह पर्याप्त है, अगर गिरफ्तारी के समय ईडी, इस तरह की गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करता है” हालांकि उसने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि जब आरोपी को अदालत में पेश किया जाता है, तो उसके पास रिकॉर्ड मांगने की शक्ति होती है। यह देखने के लिए कि क्या निरंतर कारावास वारंट है।

ईडी के सामने किए गए एक स्वीकारोक्ति की अवैधता पर, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि ईडी के अधिकारी पुलिस नहीं हैं, आत्म-दोषारोपण के खिलाफ नियम लागू नहीं होता है क्योंकि गलत जानकारी देने के लिए जुर्माना या गिरफ्तारी की सजा का इस्तेमाल एक के रूप में नहीं किया जा सकता है। बयान देने की मजबूरी इसने यह भी माना कि सबूत का उल्टा बोझ – बेगुनाही के सबूत का बोझ आरोपी पर है – क्योंकि इसका पीएमएलए में प्रावधान है।

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