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पेशावर कांड : जब गढ़वाली ने किया अपने लोगों पर गोली चलाने से मना

– आज के ही दिन चंद्र सिंह गढ़वाली ने अंग्रेजी हुकूमत का आदेश मानने से किया मना, 1857 के बाद पहला सैनिक विद्रोह
PEN POINT, DEHRADUN : आज के दिन करीब 93 साल पहले अंग्रेजी शासन के खिलाफ पूरा देश उबल रहा था। आजादी की लड़ाई में देश का हर उम्र, धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र के लोग आगे बढ़कर भाग ले रहे थे। देश नमक कानून के खिलाफ सत्याग्रह कर रहा था। नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा जा रहा था। पेशावर में ही भी आज के ही दिन 93 साल पहले लोग नमक कानून तोड़ने के लिए सड़क पर उतर आए थे।  अंग्रेजी शासन के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन चल रहे थे। 23 अप्रैल 1930 का दिन था, पेशवार में सत्याग्रह के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा थे। बड़े बड़े कड़ाहों में नमक बना रहे थे। एक अंग्रेज अधिकारी ने अपनी मोटरसाइकिल उस भीड़ में घुसा दी। कई लोग घायल हो गये, लोगों ने गुस्से में अंग्रेज की मोटरसाइकिल को आग लगा दी।
मोटरसाइकिल पर लगी आग से गुस्साए अंग्रेज अफसर ने वहां तैनात 2/18 रायल गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों को आदेश दिया ‘गढ़वाली थ्री राउंड फायर’। पर उधर हवलदार मेजर चंद्रसिंह की आवाज आई ‘गढ़वाली सीज फायर’। सिपाहियों ने चंद्रसिंह के हुक्म की तालीम की और अपनी राइफलें नीचे कर दी।
1857 के बाद यह पहला मौका था जब अंग्रेजी शासन को सैनिक विद्रोह का सामना करना पड़ रहा था फर्क पर इतना था कि 1857 में सैनिकों ने बंदूकें उठाकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह किया था, लेकिन 1930 को सैनिकों ने बंदूके नीचे करके हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर देशवासियों का साथ दिया था।
इस विद्रोह का नायक था चंद्रसिंह गढ़वाली और विद्रोह करने वाले थे विद्रोह करने वाले 2/18 रॉयल गढ़वाल राइफल्स के सैनिक।
पेशावर में 23 अप्रैल 1930 को विशाल जुलूस निकला था। इसमें बच्चे, बूढ़े, जवान, महिलाएं सभी ने हिस्सा लिया था। अंग्रेजों का खून खौल रहा था। इसलिये 2/18 रायल गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों को प्रदर्शनकारियों पर नियंत्रण पाने के लिये भेजा गया। इसकी एक टुकड़ी काबुली फाटक के पास निहत्थे सत्याग्रहियों के आगे खड़ी थी। अंग्रेज कमांडर रिकेट के आदेश पर इन सभी प्रदर्शनकारियों को घेर लिया गया और गढ़वाली सैनिकों को जुलूस को तितर-बितर करने के लिये कहा गया।

प्रदर्शनकारी नहीं हटे तो कमांडर का धैर्य जवाब दे गया और उसने आदेश दिया गढ़वालीज ओपन फायर और फिर एक आवाज आई गढ़वाली सीज फायर। पूरी गढ़वाली बटालियन ने चन्द्र सिंह के आदेश का पालन किया, जिस पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। हालांकि, अंग्रेज सैनिकों ने बाद में पठानी आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसायी। उससे पहले गढ़वाली सैनिकों से उनके हथियार ले लिये गये।

चंद्र सिंह गढ़वाली सहित इन सैनिकों को नौकरी से निकाल दिया गया और उन्हें कड़ी सजा दी गयी लेकिन उन्होंने खुशी-खुशी इसे स्वीकार किया। बैरिस्टर मुकुंदी लाल के प्रयासों से इन सैनिकों को मृत्यु दंड की सजा नहीं मिली लेकिन उन्हें जेल जाना पड़ा था। इस दौरान चन्द्र सिंह गढ़वाली और अन्य जवानों की सारी संपति जब्त कर ली गई। चंद्र सिंह गढ़वाली को 14 साल की सजा सुनाई गई और उन्हें एटबाबाद जेल भेज दिया। हालांकि, 11 साल बाद 1941 को उन्हें जेल से मुक्त कर दिया। उसके बाद वह आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए।

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