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अतीक हत्याकांड के सियासी मायने ?

PEN POINT, POLITICAL DESK: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मजबूत कानून व्यवस्था वाली छवि उनकी सबसे बड़ी यूएसपी मानी जाती है। आम जनमानस योगी को लेकर गाहे-बगाहे उनकी इस क्षमता को लेकर चाह कर भी नजरअंदाज नहीं कर पाता है। यूपी का राजनीतिक इतिहास बेहद रक्त रंजित रहा है। यहाँ हमेशा से ही सियासत को बाहुबलियों, गुंडों और माफियाओं की सह-मात के इर्द-गिर्द घूमते हुए देखा गया है।

यूपी में 2017 में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी तो बसपा और सपा का दशकों पुराना सियासी किला ढह गया। ऐसे में किसी ने दूर-दूर तक नहीं सोचा था कि यूपी की सत्ता के शीर्ष पर गोरखपुर से लगातार चार बार के सांसद और गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ काबिज होंगे। इस तरह बीजेपी की अंदरूनी सियासत से पार पाकर वे यूपी के मुख्यमंत्री बने। क्यों और कैसे ? इससे जुड़े हुए कई राजनीतिक किस्से कहानियां सुनने और पढ़ने को मिल जाती हैं। लेकिन असल सच्चाई क्या है ? इसका अंदाजा योगी के अंदाज से सियासत के जानकार आसानी से लगा लेते है।

सत्ता संभालने के बाद योगी के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती थी, उससे वे बहुत करीब से व्यक्तिगत तौर पर वाकिफ थे। ये चुनौती थी, अपराध से सराबोर उत्तर प्रदेश के आम लोगों के मन से अपराधियों का भय ख़त्म करना। योगी ने इसी दिशा में बढ़ने का निर्णय लिया और उत्तर प्रदेश की जमीन से अपराधियों के सफाये का काम शुरू कर दिया। यूपी पुलिस को दशकों बाद पुलिसिंग करने की याद दिलाई। काम-काज का रवैया बदला और सैकड़ों की संख्यां में बदमाशों के एनकाउंटर किये गए। इस दौरान योगी आदित्यनाथ की छवि यूपी के हर तबके में कड़क और शांति व्यवस्था बनाने वाले नेता के तौर पर उभर कर सामने आने लगी। पहले ही दिन से इसका सन्देश लोगों में जाना शुरू हो गया था।

छोटे-मोटे गुंडे मवाली टाइप बदमाशों की लोगों से लूट खसोट, छीना-झपटी, रंगदारी, छोटे व्यापरियों से अवैध वसूली के मामलों में कमी देखने को मिली, तो चौक चौराहों पर इसकी चर्चा देखने-सुनने को मिलने लगी। विकास के मामले में यूपी बीमारू राज्यों में शामिल रहा है, हालाँकि इस राज्य ने देश को बड़े-बड़े नेता दिए, सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए। लेकिन बावजूद इसके यहाँ कानून व्यवस्था हमेशा ख़राब ही बनी रही। इस दिशा में किसी भी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसी वजह से देश का ये सबसे बड़ा प्रदेश अपराधियों की नर्सरी बनता चला गया। इसकी पहचान व तार बड़े-बड़े गुंडों, माफियाओं और आतंकियों से जुड़ती चली गयी।

योगी के सामने उत्तर प्रदेश को विकास के रास्ते पर लाने के लिए पहली जरूरत, वहां भय मुक्त समाज बनाना था। ऐसा लगता है कि वे जानते थे कि यूपी में विकास की सारी संभावनाएं है। यहाँ बढ़ती गुंडागर्दी ने इस राज्य को बहुत पीछे धकेल दिया है। लिहाजा सबसे पहले इसी दिशा में बढ़ने का सीएम योगी आदित्यनाथ ने फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने बेहद सख्त लाइन पकड़ी और पुलिस प्रशासन के इकबाल को बुलंद करने के लिए ब्लू प्रिंट तैयार किया। जिसका असर ये हुआ कि पुलिस अधिकारीयों को गुंडों से निपटने के लिए, जो कुछ भी जरूरी कदम हो सकते थे, वो उठाने के निर्देश दिए गए।

नतीजतन उत्तर प्रदेश में बदमाशों और पुलिस के बीच मुठभेड़ के मामलों में एकाएक तेजी देखने को मिली, सत्ता से तीन पांच के रिश्ते रखने वाले बदमाशों का सफाया होता चला गया या वो यूपी की जमीन छोड़ कर कहीं शरणागत हो गए। इस बात का सन्देश और असर देश के इस सबसे बड़े सूबे में लोगों को अपने आसपास महसूस हो रहा था। आम आदमी देर शाम तक घर गांवों और शहर की सड़कों पर बिना डरे सहमें गुजरने लगा। ऐसा नहीं है कि यूपी पूरी तरह अपराध मुक्त हो गया है। लेकिन एक बड़ी राहत इस प्रदेश में लोगों को मिली है, इसमें कोई दो राय नहीं।

इसका असर ये हुआ कि योगी कि छवि से देश के अन्य प्रदेशों में उनकी कार्यशैली की खबरों ने उन्हें देशव्यापी नेता के तौर पर उभारने का काम किया। लोग उन्हें सुनने और देखने के लिए उत्सुक होते चले जा रहे थे। उनकी बढ़ती छवि और लोकप्रियता बीजेपी और देश के तमाम अन्य महत्वाकांक्षी राजनेताओं को असहज कर रही थी। ये मानने में किसी भी सियासी समझ रखने वाले को कहाँ और कैसे इंकार हो सकता है।

इस बीच 2022 के चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की सियासत में कई तरह के प्रयोग बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व व मोदी और अमित शाह की जोड़ी की तरफ से किये गए। लेकिन योगी ने अपनी महीन सियासी समझ और यूपी की जनता की नब्ज को पकड़ने में अब तक महारत हासिल कर ली थी। उन्हें हलके में लेने और किनारे लगाने के भरसक प्रयास हुए, लेकिन वो इन सबसे पार पाकर अपने अलहदा अंदाज में आगे बढ़ते गए और यूपी के लिए निर्णय लेते गए।

परिणाम स्वरुप उत्तर प्रदेश में 2022 के विधान सभा चुनाव में एक बार फिर योगी के नेतृत्व पर वहां की जनता ने अपनी मजबूत मोहर लगा दी और उन्हें इतिहास रचने का मौक़ा दे दिया। इस तरह योगी लगातार दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता बन गए। वहीँ दूसरी तरफ देश में कई तरह की परेशानियां सर उठा रही है। विपक्षी पार्टियां मोदी और अमित शाह की नीतियों पर सवाल उठा रहे है। विपक्ष के तमाम नेताओं को अलग-अलग मामलों में जेल भेजा जा रहा है। ईडी और सीबीआई की कार्यप्रणली पर विपक्ष हमलावर है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर अडानी ग्रुप सहित कई अन्य गुजराती पृष्ठभूमि वाले कारोबारियों और भगोड़ों के साथ करीबी रिश्ते होने के आरोप लग रहे है। जिस पर मोदी सरकार की चुप्पी अपने आप सवाल पैदा करती है। देश में महंगाई बेरोजगारी बड़ी समस्या बन कर खड़ी हो चुकी है। लेकिन सरकार का कुशल और मजबूत मीडिया मैनेजमेंट विपक्ष के हर दांव पर पानी फेर दे रहा है।

ऐसे में 2024 में लोक सभा के चुनाव होने हैं। इससे पहले कई राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं और यूपी और उत्तराखंड में निकाय के चुनाव इसी साल होने हैं। इससे पहले बीजेपी और और विपक्ष हर सियासी लड़ाई के लिए अपनी घोषित और अघोषित तैयारियों में जुट गयी है।

इस बीच बीते सप्ताह के आखिरी दिनों में एक डिजिटल न्यूज़ प्लेटफार्म पर जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक का एक विस्फोटक इंटरव्यू प्रसारित हुआ, जिसने देश की सियासत में उबाल ला दिया। सत्यपाल मालिक ने 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले पुलवामा हमले में मारे गए 40 सीआरपीएफ जवानों की शहादत को मोदी सरकार की असफलता बताया और उन पर बहुत गंभीर आरोप लगाए। वहीँ दूसरी तरफ कर्नाटक में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की हालत पतली बताई जा रही है। अगर वहां बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी तो इसका सीधा असर मोदी के नेतृत्व पर सवाल खड़े करेगा।

20 24 के चुनाव के लिए योगी के नाम की चर्चाएं बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर हो रही हैं। लेकिन बीजेपी में अमित शाह को मोदी का उत्तराधिकारी समझने वालों का भी एक धड़ा है। हालाँकि अभी आम चुनाव होने में करीब एक साल का समय बचा है। इस दौरान देश और दुनिया में सियासत किस ओर करवट बदलेगी ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है। बहरहाल अभी जो चर्चाएं हैं उसके हिसाब से मोदी खुद को ही अगले चुनाव में बतौर PM कैंडिडेट बनाए रखना चाहते हैं। उनकी हर कोशिश खुद को चुनाव और सत्ता के सबसे शक्तिशाली पद के केंद्र में रखने की है।

अब आते हैं वापस यूपी की सियासात और देश के भविष्य की राजनीति की दिशा पर पड़ने वाले उसके संभावित असर पर 

बीते हफ्ते में यूपी और दिल्ली की सियासत में बड़ी गर्मी देखी गयी। देश की जनता इस वक्त अडानी काण्ड, पुलवामा घटना के पीछे के रहस्योद्घाटन, अतीक अहमद और उसके भाई की अचानक पुलिस कस्टडी में हुई जघन्य हत्या और उसके बेटे की पुलिस एनकाउंटर में हुई मौत के मुद्दे को देख कर उलझ गयी है। इन मुद्दों ने सियासत को गरम कर दिया है। योगी सरकार पर सियासी हमले तेज हो गए हैं, कानून व्यस्था पर सवाल उठ रहे हैं, जो योगी की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। वहीँ जानकार बताते हैं कि योगी ने तत्परता से अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या के बाद प्रदेश में धारा 144 लगाकर किसी बड़ी अनहोनी को रोकने का फैसला लेकर बड़ी साजिश को नाकाम कर दिया है।

कानून के जानकार और यूपी पुलिस के कई पूर्व आईपीएस अफसरों का मानना है कि इससे प्रदेश में दंगे होने की स्थिति पैदा हो सकती थी। लेकिन सीएम ने समय रहते कानून व्यवस्था बनाने के नजरिये से जो निर्णय लिया वो उनकी कुशल सियासी समझ और प्रशासक होने का प्रमाण है। हालाँकि अतीक अहमद की पुलिस अभिरक्षा में हुई हत्या के तार की कहानी जो यूपी पुलिस बता रही है, वह अभी किसी के गले नहीं उतर रही है। तीन नौजवान हत्यारों ने जिस दुस्साहस और कुशलता से इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया, उससे नहीं लगता कि वह उस कहानी से मेल खाता है, जो पुलिस उनके हवाले से बताने का दावा कर रही है। इस हत्याकांड के तार सियासत के बड़े बड़े दिग्गजों से जुड़े हुए हो सकते हैं।

योगी सरकार की पुलिस इन कनेक्शनों तक कभी पहुँच भी पाएगी कि नहीं, यह कहना बेहद मुश्किल है। क्योंकि कुख्यात माफिया पूर्व विधायक और सांसद अतीक अहमद के यूपी और देश के कई सियासी लोगों से घोषित और अघोषित रिश्ते रहे हैं। सरकार ने उसकी संभावित संपत्ति का आंकलन करीब 11 हजार करोड़ लगाया है। ऐसे में हो सकता है कि उसकी सम्पत्तियों का दायरा इससे ज्यादा हो और उसमें राजनेताओं की हिस्सेदारी शामिल हो, ऐसे में उस पर चल रहे मुकदमों और सुनवाई में उनके नाम उजागर होने का खतरा पैदा होना स्वाभाविक था। कयास लगाए जा सकते हैं कि अपने सियासी सफर के लिए खतरा बनते देख अतीक अहमद की ह्त्या की साजिश रची गयी हो। क्योंकि ह्त्या के बेख़ौफ़ तरीके और वहां ड्यूटी पर मौजूद पुलिस की भूमिका से कई सवाल पैदा हो रहे हैं। ऐसे में सियासी गलियों से लेकर पूरे देश में कयासों का बाजार गरम है कि इस घटना के सियासी फायदे किसके हक़ में जाएंगे। क्योंकि ये दुस्साहसिक घटना सामान्य मर्डर की बजाय विशुद्ध रूप से सियासी ह्त्या नजर आ आरही है।

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