पुण्यतिथि : आजादी की जंग में अंग्रेजों को छकाने वाली कल्पना
महान स्वतंत्रता सैनानी कल्पना दत्त 14 साल की उम्र में कूद गई थी आजादी के आंदोलन में-1979 में उनकी बहादुरी का सम्मान करते हुए दिया गया था वीर महिला का खिताब
PEN POINT देहरादून। साल 2010 में खेले हम जी जान से नाम की हिंदी फिल्म रीलिज हुई थी। फिल्म में मशहूर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने कल्पना दत्त नाम की स्वतंत्रता सेनानी महिला का किरदार निभाया था। जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह में जुटी थी और वेश बदलकर अंग्रेजों की नाक के नीचे से निकल जाती थी। आज उस बहादुर क्रांतिकारी कल्पना दत्त की 28वीं पुण्यतिथि है। पेन प्वाइंट आज महान स्वतंत्रता सैनानी कल्पना दत्त को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रहा है।
कल्पना दत्त का जन्म 27 जुलाई 1913 को बांग्लादेश के चिट्टगौंग (चटगांव) के श्रीपुर गांव में हुआ था। चटगांव से ही प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। उनके अंदर भी देश को आजाद कराने की ललक उठने लगी। 14 साल की उम्र से ही कल्पना दत्त ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे वीर क्रांतिकारियों से संपर्क बनाना शुरू कर दिया था। हाईस्कूल परीक्षा पास करने के बाद कल्पना दत्त कलकत्ता आ गया और आगे की पढ़ाई शुरू कर दी। देश की आजादी के संघर्ष में खुद को झोंकने को तैयार कल्पना दत्त ने आजादी की जंग लड़ रहे क्रांतिकारियों के साथ उठना बैठना शुरू कर दिया। कॉलेज में ही उनकी बीना दास और प्रीतिलता वड्डेदार जैसी मशहूर क्रांतिकारियों से हुई. जो आजादी के लिए सक्रिय भूमिका निभा रही थीं। 18 अप्रैल 1930 को क्रांतिकारियों ने ‘चटगांव शस्त्रागार लूट’ को अंजाम दिया। जिसके बाद कल्पना कलकत्ता से से वापस अपने गांव चटगांव आ गईं। वो स्वतंत्रता सेनानी सूर्यसेन के संपर्क में थीं, और चटगांव आकर कल्पना उनके ‘इंडियन रिपब्लिकन आर्मी’ में शामिल हो गई। चटगांव लूट में शामिल कई क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था लेकिन कल्पना की इस लूट में भूमिका नहीं थी तो गिरफ्तारी से बच गई लेकिन अंग्रेजों की नजरों में वह आ चुकी थी।
अदालत में बम धमाके की योजना
साथी क्रांतिकारियों को अंग्रेजों की जेल से बाहर निकालने के लिए कल्पना दत्त ने ऐसा बड़ा कदम उठाने का फैसला लिया जिसकी उस दौर में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कल्पना दत्त ने अपने साथी क्रांतिकारियों को जेल से छुड़ाने के लिए लड़के के भेष में अदालत में बम धमाका करने की योजना बनाई। आगे गिरफ्तार साथियों को जेल से रिहा कराने के लिए अदालत को बम से उड़ाने की योजना बनाई। जिसमें कल्पना दत्त के साथ उनकी साथी प्रीतिलता जैसी महिला क्रांतिकारी भी शामिल थीं। सितंबर 1931 को कल्पना ने अपने साथियों के साथ हमला करने की एक तारीख मुकर्रर की। कल्पना ने लड़के के वेशभूषा में इस योजना को अंजाम देने वाली थीं, लेकिन गुप्तचरों से इसकी सूचना अंग्रेजों को हो गई। अदालत में बम धमाके की घटना को कल्पना अंजाम देती उससे पहले ही वह गिरफ्तार कर ली गई। लेकिन, पर्याप्त सबूत न मिलने पर उन्हें रिहा कर दिया गया। उन्हें रिहा तो कर दिया गया था लेकिन उन पर ब्रिटिश प्रशासन की पैनी नजर थी। उनके घर पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया। कल्पना वेश बदलने और पुलिस को चकमा देने में माहिर थीं। वो घर से भागने में कामयाब रहीं और सूर्य सेन से जाकर मिलीं। अगले दो साल तक छिपकर अंग्रेजों से लोहा लेती रहीं। दो साल बाद अंग्रेजों को सूर्यसेन के ठिकाने का पता लग गया। 16 फरवरी 1933 को पुलिस ने सूर्यसेन को गिरफ्तार कर लिया लेकिन कल्पना अपने कुछ साथियों के साथ फिर से अंग्रेजों को चकमा देने में कामयाब रहीं और भाग गई।
गांधी जी से मुलाकात
कल्पना अग्रेजों के साथ कई मुठभेड़ के दौरान भागने में कामयाब रही थीं। लेकिन मई 1933 को कल्पना और अग्रेज़ीं सेना का आमना सामना हुआ। कल्पना चारों ओर से घिर चुकी थीं। लेकिन कल्पना आसानी से हार मानने वाली नहीं थी वह अंग्रेजों से डटकर लड़ी। लेकिन, चारों तरफ घिरने और गोलियां खत्म होने के चलते उन्हें गिरफ्तार होना पड़ा। उनकी मुलाकात मिदनापुर जेल में महात्मा गांधी से भी हुई। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘चटगांव शस्त्रागार हमला’ में इस बात का जिक्र किया है। ‘जेल में मुझसे गांधी मिलने आए. वे मेरी क्रांतिकारी गतिविधियों से नाराज थे. लेकिन उन्होंने कहा कि मैं फिर भी तुम्हारी रिहाई की कोशिश करूंगा.“
कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी
1939 में कल्पना जेल से रिहा हो गईं. वो अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद सियासत में कदम रखा। वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गईं। जेल में रहते हुए उनकी कई कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाकात हुई थी। 1943 को पार्टी के महासचिव पूरन चंद जोशी के साथ शादी कर ली। इसी साल बंगाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कल्पना को अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन वह चुनावी रण नहीं जीत सकी। कुछ मतभेदों के चलते इनके पति और इन्होने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया। साल 1979 में कल्पना दत्त की बहादुरी और आजादी में दिए गए योगदान को देखते हुए ‘वीर महिला’ के खि़ताब से सम्मानित किया गया। आज के ही दिन 8 फरवरी 1995 को उन्होंने आखिरी सांस ली।