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राजा रवि वर्मा : भगवान को इंसानी शक्ल सूरत देने वाला महान चित्रकार

PENPOINT : बाघ की खाल लपेटे शिवजी, गोल मटोल कान्‍हा, नीले रंग के कृष्‍ण या फिर कांजीवरम साड़ी और खूब सारे गहने धारण किए लक्ष्‍मी जी हों, ऐसी तस्‍वीरें हर हिंदू घर में रखी और पूजी जाती हैं।    हमारे देवी देवता और पौराणिक चरित्र इंसान रूप में कैसे दिखते थे, ये कल्‍पना करते हुए राजा रवि वर्मा ने ही सबसे पहले उन्‍हें चित्रों में उकेरा था। जिन्‍हें फादर ऑफ मॉडर्न इंडियन आर्ट कहा जाता है। आज भी इनमें से अधिकांश देवी देवताओं के चित्र इस महान चित्रकार के ही बनाए हुए हैं। उनकी कला का कैनवास इतना फैला हुआ था कि उसे एक लेख में समाहित नहीं किया जा सकता। लेकिन यहां पेश हैं उनकी कुछ पेंटिंग्‍स जो उनके रचनाकर्म पर काफी कुछ बताती हैं-

राजा रवि वर्मा का जन्‍म 29 अप्रैल 1848 को केरल के त्रिवेंद्रम में हुआ था। जाहिर है कि तब आजकी तरह बाजार में पेंटिंग के 'Pen Pointलिए रंग नहीं मिलते थे। चित्रकार पौधों और फूलों से ही रंग तैयार करते थे। बचपन से ही रवि वर्मा के चित्रकारी के जूनून को देखते हुए आयिल्‍यम तिरुनान महाराज ने त्रिवेंद्रम में ही चित्रकला का प्रशिक्षण लेने की सलाह दी। इस तरह शाही पैलेस में रहकर वे इटालियन पुनर्जागरण शैली में चित्रकला सीखने लगे। यहां तमिलनाडु के कलाकरों से उनकी कला शैली और तकनीकी को सीखा।1868 में त्रिवेंद्र पैलेस में डच चित्रकार थियोडोर जेंसन पहुंचे। रवि वर्मा ने उनसे पश्चिमी शैली की चित्रकला और ऑयल पेंटिंग तकनीक सीखी। आगे चलकर उनके चित्रों को पश्चिमी और भारतीय चित्रकला का फ्यूजन कहा गया। उनकी पेंटिंग “मुल्ल्प्पू चूडिया नायर स्त्री” से वे मशहूर हुए, जिससे उन्हें 1873 में चेन्नई में आयोजित चित्र प्रदर्शनी में प्रथम पुरस्कार भी मिला। इस पेंटिंग को ऑस्ट्रिया

'Pen Pointके विएना में आयोजित एक अन्य प्रदर्शनी में पुरस्कृत भी किया गया। 1876 में उनकी पेंटिंग ‘शकुंतला’ को चेन्नई में आयोजित एक प्रदर्शनी में पुरस्कृत किया गया।'Pen Point'Pen Point

130 साल बाद बिकी द्रौपदी चीरहरण की पेंटिंग

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बीते साल राजा रवि वर्मा की पेंटिंग 21 करोड़ रुपए में बिकी। यह पेंटिंग 130 साल पुरानी है। जिसे उन्‍होंने तत्‍कालीन बड़ौदा राज्‍य के लिए बनाए जा रहे भव्‍य महल के लिए चित्रकारी करते हुए बनाई थी। की इस उत्कृष्ट पेंटिंग में दुशासन को महाभारत में महल में कौरवों और पांडवों से घिरी द्रौपदी की साड़ी उतारने के प्रयास को दिखाया गया है। पेंटिंग की बोली 15 करोड़ रुपये से 20 करोड़ रुपये के बीच आंकी गई थी।

पहली बार जब 1893 राजा रवि वर्मा के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई थ, तब चित्र प्रदर्शनी को देखने का का अधिकार केवल धनाड्य और गणमान्‍य लोगों को ही था। लेकिन देवी देवताओं और ऐतिहासिक और पौराणिक महत्‍व के जीवंत चित्रों के चलते राजा रवि वर्मा लोकप्रिय होते गए। अपनी कला के माध्‍यम से वे लोकप्रिय हुए और जन सामान्‍य में चित्रकला को लेकर एक नई सोच और रुचि बनी।

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