राम मंदिर: क्या भाजपा छू पाएगी दीवारों पर चस्पा 400 के माइलस्टोन को ?
Pen Point, Dehradun : राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के भव्य आयोजन को सियासी नजरिये से देखें तो भाजपा को इससे बड़ा फायदा मिलने जा रहा है। 22 जनवरी को हुए इस कार्यक्रम के बीच देश भर में दीवारों पर अब की बार चौ सौ पार का नारा चस्पा हो चुका था। ये सिर्फ भाजपा के उत्साही कार्यकर्ताओं का काम नहीं बल्कि पार्टी की रणनीति का हिस्सा है। जिसके जरिए भारतीय लोकसभा चुनाव के इतिहास में सर्वाधिक सीटें जीतने का दावा किया जा रहा है। भाजपा इस आंकड़े तक या इसके कितने पास पहुंचेगी यह देखना बाकी है। लेकिन इतना तय है कि एक बार फिर राम के नाम पर भाजपा चुनावी माहौल तैयार कर चुकी है। अपने वोटरों को एकजुट करने के साथ ही इस भावनात्मक मुद्दे से पार्टी नए वोटरों को जोड़ने में भी कामयाब होती दिख रही है।
हालांकि चार सौ पार के आंकड़े को छूना भाजपा के लिये कितना आसान या कठिन है, सियासी गलियारों में इस पर बहस शुरू हो चुकी है। भारत में आम चुनावों के इतिहास पर नजर डालें तो पहले चुनावों में कांग्रेस को 401 में से 371 यानी 92 फीसदी सीटें हासिल हुई थी। कांग्रेस को दूसरी सबसे बड़ी जीत 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में मिली। जिसमें पार्टी को 543 में से 415 सीटें मिली। 76 फीसदी सीटों के इस रिकार्ड के बाद कोई भी पार्टी चार सौ के आंकड़े को नहीं छू सकी।
भाजपा के सफर पर नजर डालें तो 2014 में मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने 282 सीटें हासिल की। सहयोगी दलों के साथ मिलकर 303 सीटों के साथ भाजपा सत्ता शीर्ष पर पहुंच गई। इसके बाद 2019 के चुनावों में भाजपा को 303 सीटों के साथ बड़ी जीत हासिल हुई। एनडीए गठबंधन के साथ 353 सीटों के साथ उसकी फिर से सत्ता में वापसी हुई।
चार सीटों के माइल स्टोन को छूने के लिये भाजपा को दक्षिण भारत का तिलिस्म तोड़ना होगा। पार्टी की राह में कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्य बाधक बन सकते हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि तमिलनाडु की 38 सीटों में भाजपा को 1 सीट पर ही जीत हासिल हुई थी। तेलंगाना की 17 में से 4 और केरल की 20 में से एक भी सीट नहीं मिल सकी। हालांकि कर्नाटक में भाजपा 22 सीटें जीतने में कामयाब रही लेकिन पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के कारण इस राज्य में भाजपा के लिये पिछला प्रदर्शन दोहराना किसी चुनौती से कम नहीं है। हालांकि आ्रध्र प्रदेश में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिल सकी लेकिन वहां एनडीए गठबंधन की पार्टियों की जीत भाजपा को राहत देने वाली रही।
ये आंकड़े बताते हैं कि हिंदी राज्यों में बड़ी जीत के साथ ही भाजपा को दक्षिण के राज्यों में भी अपने प्रदर्शन को सुधारना होगा। तभी वह चार सौ के आंकड़े को छू सकती है। यह भी दीगर है कि आने वाले लोकसभा चुनाव के लिये भाजपा ड्राईविंग सीट पर आ गई है। कांग्र्रेस या विपक्षी गठबंधन इस रेस में काफी पीछे छूटते दिख रहे हैं। कहा जा सकता है कि फिलहाल भाजपा का मुकाबला भाजपा से ही नजर आ रहा है।