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जंगल छोड़ देहरादून की गलियों में क्यों घूम रहे हैं गुलदार ?

Pen Point, Dehradun : देहरादून शहर में इन दिनों गुलदार का खौफ पसरा हुआ है। इस शातिर शिकारी जानवर को शहर में कई जगह चहलकदमी करते हुए देखा गया है। जिसके कारण शहर की हलचल भरी अधिकांश गलियां शाम ढलते ही वीरान हो रही है। जिसकी वजह ये है कि पिछले बीस दिनों में दो बच्‍चे गुलदार के झपट्टे से घायल हो चुके हैं। कहा जा रहा है कि यहां एक नहीं बल्कि चार पांच गुलदार घूम रहे हैं। लेकिन वन विभाग के हाथ अभी तक खाली हैं। गुलदार को पकड़ने की हर कोशिश अब तक नाकाम साबित हुई है। हालांकि वन महकमा उसके मूवमेंट पर नजर रखे हुई और शहर में कई जगह ट्रैप कमरे भी लगाए गए हैं।

महौल पर नजर डालें तो शहर मंें चौबीसों घंटे खुले रहने वाले पैट्रोल पंप और दुकानें इन दिनों रात को बंद नजर आ रहे हैं। जिसका कारण गुलदार का डर बताया जा रहा है। रात को सवारियों के विभिन्न जगहों पर उपलब्ध रहने वाले टैंपो चालक भी गुलदार के डर से दूर की सवारियों को ले जाने में आनाकानी कर रहे हैं। इसी तरह शहर की बहुत सी गतिविधियों पर गुलदार का असर देखा जा रहा है।

सवाल ये उठता है कि आखिर अचानक शहर में हर ओर गुलदार क्‍यों दिखने लगा है। इससे पहले शहर से बाहर जंगल से सटी बस्तियों में कई बार इसे देखा जा चुका है। लेकिन शहर के बीच घनी आबादी वाले इलाकों में इसकी मौजूदगी हैरत भरी है। विभिन्‍न अध्‍ययन बताते हैं कि उत्‍तराखंड के जंगलों में जिसका सबसे बड़ा कारण मौसम में बदलाव और जंगल की हरियाली नष्‍ट होने को माना जा रहा है।

विशेषज्ञों के मुताबिक बीते कुछ सालों में उत्तराखंड में गुलदार की संख्या तेजी से बढ़ी है। लेकिन जंगलों की पारिस्थितिकी में हो रहे बड़े बदलावों ने इन्हें मानव बस्तियों का रूख करने को मजबूर किया है। इस बार मौसम की बेरूखी के चलते बारिश और बर्फबारी नहीं हुई है। जिसके चलते जंगलों में जलस्रोत और हरियाली सूख गई है। जिसके कारण गुलदार को जंगल में ही शिकार नहीं मिल पा रहा है।

तेजी से विलुप्त होती स्थानीय घास प्रजातियां और विदेशी प्रजातियों की बढ़ोत्तरी भी वन्य जीवों के व्यवहार में आ रहे बदलाव के लिये जिम्मेदार है। बाहर से आए आक्रामक पौधे तेजी से देसी घास की प्रजातियों की जगह ले रहे हैं, जिससे जानवरों के पसंदीदा भोजन की उपब्लधता में कमी आ रही है। उत्तराखंड समेत देश के कई राज्यों में जंगल इसससे प्रभावित हैं।

जाहिर है कि भोजन की उपलब्धता में कमी केवल शाकाहारी जानवरों तक ही सीमित नहीं है। विभिन्न शोध बताते हैं कि वनस्पति पर दबाव बढ़ने के कारण चारे की कमी हो सकती है, नतीजतन, शाकाहारी जानवरों की आबादी में गिरावट आती है। लंबे समय में शाकाहारी जानवरों की आबादी में इस तरह की गिरावट से बाघ और तेंदुए जैसे उनके प्रमुख शिकारी जानवरों की संख्या भी कम होगी। वन महकमे के एक बड़े अधिकारी के मुताबिक तेंदुए जैसे बड़े स्तनधारी भोजन की तलाश में मानव बस्तियों में प्रवेश कर रहे हैं। उनके आवास स्थलों को नुकसान, वनस्पति में बदलाव और आबादी में वृद्धि का नतीजा मानव से उनके संघर्ष के रूप में देखने को मिलता है।

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