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गणतंत्र दिवस : जानिये कैसे हालात में तैयार हुआ था देश का संविधान

Pen Point, Dehradun : 395 धाराओं और 8 अनुच्‍छेदों वाला भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है। इसे बनाने में तीन साल का वक्‍त लगा।  के बाद इसके निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई थी और 1949 तक यह काम चला। संविधान सभा की 11 सत्रों में हुई बैठकों में कुल मिलाकर 165 दिनों तक इसके मसौदे पर बिंदुवार चर्चा और बहसें हुई। इस पूरी प्रक्रिया को 11 गहन और विस्‍तृत अंकों में छापा गया, जिसमें कई अंक 1000 पन्‍नों से ज्‍यादा हैं। खास बात ये है कि यह संविधान उस वक्‍त लिखा जा रहा था जब पूरा देश कई समस्‍याओं से जूझ रहा था। पहली

9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई थी। पूरे देश में स्‍वराज को लेकर उम्‍मीदों की फिजाएं थीं। इंडिया आफ्टर गांधी में रामचंद्र गुहा लिखते हैं- नेहरू और पटेल जैसे कांग्रेस के अग्रणी नेता अगली कतारों में बैठे। लेकिन ये दिखाने के लिये कि यह सभा महज एक कांग्रेसी बैठक भर नही है, विरोधी पक्ष के नेताओं जैसे बंगाल से शरत बोस को भी उसी कतार में साथ साथ बिठाया गया। एक राष्‍ट्रवादी अखबार ने लिखा कि गांधी टोपी और नेहरू जैकेटों से भरी सभा में ‘नौ महिला सदस्‍य भी मौजूद थीं’ जो उस सभा को सतरंगी बना रही थी।

ब्रिटिश भारत से चुनकर आए सदस्‍यों के अलावा इस सभा में रजवाड़े भी शामिल थे, जो धीरे धीरे भारतीय संघ में शामिल हो रहे थे। अपनी चर्चित किताब में गुहा लिखते हैं- संविधान सभा के बयासी फीसदी सदस्‍य कांग्रेसी थे। हालांकि कांग्रेस खुद भी एक छतरी के समान थी जिसके नीचे विभिन्‍न विचारों वाले लोग शामिल थे। उनमें कुछ नास्तिक थे तो कुछ धर्म निरपेक्ष, कुछ तकनीकी तौर पर कांग्रेस के सदस्‍य थे लेकिन आध्‍यात्मिक तौर पर उनका जुड़ाव आरएसएस या हिंदू महासभा से था। कुछ अपने आर्थिक दर्शन में समाजवादी थे तो कुछ जमींदार वर्ग के समर्थक।

हालांकि कांग्रेस के अलावा इसमें देश के विभिन्‍न वर्गों के लोगों को प्रतिनिधित्‍व दिया गया। उस दौर में विंस्‍टन चर्चिल की यह टिप्‍पणी ने संविधान सभा के विस्‍तार की वजह बनी- ‘कांग्रेस भारत की आम जनता का प्रतिनिधित्‍व नहीं करती थी, बल्कि यह कुछ सक्रिय, संगठित और तेज तर्रार अल्‍पसंख्‍यकों की प्रवक्‍ता थी, जिन्‍होंने ताकत धोखाधड़ी या कूटनीति की बदौलत सत्‍ता हथिया ली थी ओर आगे बढ़कर उस विशाल जनसमुदाय के नाम पर उस सत्‍ता का इस्‍तेमाल कर रहे थे जिनसे उनका सार्थक संपर्क कब का टूट चुका था’।

ऐसी आलोचनाओं के बाद संविधान सभा की प्रक्रिया को और जनापेक्षी बनाया गया और जनता से सुझाव मांगे गए। जिसके जवाब में सैकड़ों सुझाव संविधान सभा को प्राप्‍त हुए। इस प्रक्रिया में देश भर से ऐसी मांगें आई कि संविधान सभा को विभिन्‍न वर्गों की मांगों का अंदाजा लग गया। उल्‍लेखनीय है कि इन सुझावों से संविधान सभा के सदस्‍यों को यह अहसास हो गया था कि जिन लोगों के लिये वह काम कर रहे हैं, उनकी स्थिति कैसी है। मसलन, निचली जातियों ने खुद पर हो रहे अत्‍याचारों और आरक्षण की मांग की थी, भाषाई अल्‍पसंख्‍यकों ने अपनी मातृ भाषा की पहचान और उसमें अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता की मांग उठाई, इसी तरह अखिल भारतीय वर्णाश्रम स्‍वराज संघ ने नाम की एक संस्‍था ने संविधान को हिंदू धर्मग्रंथों के आधार पर बनाए जाने की मांग की।

कुल मिलाकर संविधान निर्माण के दौर में देश असमंजस और बेचैनी भरी विविधता के हालात से जूझ रहा था। इस दौरान देश में खाद्यान की कमी थी, देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में सामंती विद्रोह और सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। वहीं देश विभाजन के बाद दुनिया की सबसे बड़े पलायन की त्रासदी से जूझ रहा था, जिसमें शरणार्थियों के पुनर्वास की बड़ी चुनौती मुंह बाए खड़ी थी।

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