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रेल लाइन से खांकरा में दरारें, क्या करें ? कहाँ जाएं प्रभावित ? कोई सुध नहीं ले रहा !

PEN POINT, RUDRAPRAYAG : रूद्रप्रयाग में रेल लाइन निर्माण से अब कई गाँवों का अस्तित्व खतरें में पड़ गया है। रेल लाइन निर्माण से पूरी तरह से उजड़ चुके मरोड़ा गाँव के बाद अब खांकरा गाँव में भी ग्रामीणों के घरों में दरारें पड़नी शुरू हो गई हैं पढ़िए ये रिपोर्ट :-

बुजुर्ग सावत्री देवी रोती बिलखती अपनी परेशानी बता रही है कि अगर उसका घर उजड़ा तो आगे का जीवन कैसे और कहाँ कटेगा। उनकी बूढ़ी आँखों से लगातार आंसुओं से उनकी परेशानी को समझना बड़ा कठिन है। वे कहती हैं कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उम्र के आखिरी पड़ाव में पहुँचने पर उन्हें विकास की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। खांकरा निवासी इस वृद्धा का कहना है कि रेल परियोजना के लिए खांकरा में बनाई जा रही सुरंग से उनके आवासीय भवन को खतरा पैदा हो गया है। उनके घर के नजदीक से गुजर रही परियोजना की संकरी सड़क पर एक तीखा मोड़ है। जिससे वाहन गुजरते समय पूरे घर में कंपन होती है। सुरंंग निर्माण के चलते वृद्ध महिला के आवासीय भवन पर दरारें पड़ गई हैं। अपनी जानमाल की सुरक्षा को लेकर चिंतित महिला कहती है उनका पति और बेटा फौज में देश के लिए शहीद हो गए हैं और उन्हें प्रशासन उनके घर को दबाकर मारना चाहता है। जिला प्रशासन व आरवीएनएल को कई बार पत्र भेजकर अन्यत्र विस्थापन करने की मांग की है लेकिन कोई सुन नहीं रहा है। साथ में रह रही उनकी नातिन ने कहा घर कभी भी टूट सकता है पर कोई सुध लेने को तैयार नहीं।

'Pen Point

वहीँ एक घर के बेटी अंजलि ने बताया कि ऐसा नहीं है कि सावत्री देवी पहली महिला है जिसके घर में दरारें आई हैं बल्कि खांकरा गाँव के अधिसंख्या मकानों में दरारें आई हुई हैं। ग्रामीण कहते हैं प्रशासन और रेलवे को बोलते बोलते अब थक गये हैं। बुद्धि बलभ मंमगाई
और मीना देवी ने बताया कि वे राज्य सरकार और उसका शासन प्रशासन भी परियोजना अधिकारीयों के साथ खड़े हैं लेकिन यहाँ परेशां ग्रामीणों कि कोई सुध लेने वाला नहीं है। उनके लिए एक विकास विनाश का कारण बन गया है। उनकी मांग है कि अगर उन्हने न्याय न मिला तो वे परियोजना का काम रोकने के लिए मजबूर होंगे।

दरअसल रेल लाइन निर्माण का पहाड़ो विरोध नहीं है लेकिन इन निर्माण कार्यों में जिस तरह से कार्य दायीं कम्पनियां अनिमितायें बरत रही हैं उसने पहाड़ के कई गाँवों को संकट में धकेल दिया है। जबकि कईं गाँव आने वाले समय में खतरे के मुहाने पर खड़े हैं।। जरूरत इस बात की है कि इन परियोजनाओं के निर्माण पहाड़ की संवेदनशीलता को देखते हुए किया जाय और प्रभावित परिवारों का समुचित विस्थापन और पुनर्वास किया जाय।

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