तो कार चुराने का शौक चढ़ गया था संजय गांधी को
-इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी पर थे अपने दोस्तों के साथ कार चोरी कर रात भर दिल्ली की सड़कों पर कार दौड़ाने का शौक पूरा करने के आरोप
PEN POINT, DEHRADUN : सन 1964 के शुरूआती दिनों की बात है, उस दौर में बेहद गिने चुने लोगों के पास कार हुआ करती थी। दिल्ली में उन दिनों हर दिन अखबारों में कार चोरी की खबरें प्रकाशित हो रही थी। मई 1964 में अंग्रेजी अखबार टाइम्स आफ इंडिया ने लिखा कि हालांकि पुलिस ने आधिकारिक रूप से तो नहीं बताया लेकिन पुलिस को कार चोरी के पीछे किसी ‘टीनएज गैंग’ यानि किशोरों के किसी मंडली पर शक है, जो कार चलाने के शौक के चलते कार चुराते हैं जब तक कार में डीजल रहता है वह उसे दिल्ली की सड़कों पर दौड़ाते हैं और जहां डीजल खत्म हो जाए वहां कार खड़ी कर जाते हैं। पुलिस ने अखबार को बताया कि यह कथित किशोरों का दल जो इन कार चोरी की घटनाओं में शामिल है दिल्ली के संभ्रांत घरानों, प्रभावशाली व्यक्तियों के परिवारों से संबंध रखते हैं। यह खबरें तीन मूर्ति भवन में बैठी एक महिला को सबसे ज्यादा परेशान कर रही थी, वह महिला थी इंदिरा गांधी। देश के पहले प्रधानमंत्री की बेटी जो अपने पिता के साथ ही तब के प्रधानमंत्री निवास तीन मूर्ति भवन में अपने बेटे राजीव व संजय के साथ रहा करती थी। राजीव गांधी तो दून स्कूल से पढ़ाई पूरी कर आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया था लेकिन संजय गांधी दिल्ली में ही था और इंदिरा गांधी के नजदीकी लोग उन्हें कई दिनों से संजय गांधी और उसकी संगत, मित्र मंडली को लेकर आगाह कर रहे थे।
खैर, 16 मई को एक सेना के उच्च अधिकारी के आवास निजामुद्दीन ईस्ट से उनकी बिल्कुल नई महंगी फिएट कार आधी रात को चोरी हो गई, गाड़ी आर्मी अफसर के घर से पेट्रोल पंप की ओर ले जाई गई जहां बिना पैसे दिए ही गाड़ी में 20 लीटर डीजल भरवाया गया। कार पूरी रात भर तब तक दिल्ली की सड़कों पर घूमती रही जब तक उसका ईंधन खत्म न हो गया, बाद में उसे पालम एयरपोर्ट के पास छोड़ दिया गया और वहां से कुछ मोटर साइकिल चुराई गई, लेकिन इस दौरान इस चोरी में शामिल एक युवक बुरी तरह घायल हो गया, जिसे बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती करवाया गया। बेहोश घायल किशोर की पहचान संजय गांधी के बेहद नजदीकी दोस्त के रूप में हुई।
हालांकि, पुलिस ने अगली सुबह 17 मई को फौज के अफसर की वह महंगी नई गाड़ी पालम एयरपोर्ट के पास बरामद कर कार स्वामी को सौंप दी। गाड़ी को सही सलामत पाकर सेना के अफसर की जान में जान आई लेकिन वह उत्सुक था कि इस चोरी के पीछे कौन है। करीब महीने भर बाद उसने थाने में जाकर पता लगाने की कोशिश की कि आखिर इस चोरी के पीछे कौन था, पुलिस ने बताया कि अब तक जांच चल रही है लेकिन एक पुलिसकर्मी ने सेना के अफसर को बताया कि इस चोरी के पीछे दिल्ली के सबसे बड़े लोगों का बेटा शामिल है। हालांकि, यह पुलिसकर्मी का इशारा इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की ओर था और ज्यादातर लोगों को समझ भी आ गया था लेकिन ज्यादातर अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से प्र्रकाशित तो किया लेकिन संजय गांधी का नाम लिखने की हिम्मत नहीं जुटा सके और लिखा कि कार चोरी की घटनाओं के बीचे बेहद प्रभावशाली लोगों के बच्चे शामिल है लेकिन, करेंट अखबार के संपादक दोसू करका ने इसे पहले पन्ने की खबर बनाते हुए साफ तौर पर लिख दिया कि कार चोरी की घटनाओं के पीछे इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी प्रमुख रूप से शामिल है। साथ ही उन्होंने इंदिरा गांधी को भी चुनौती दे डाली कि वह वह साबित करे कि संजय गांधी इन कार चोरी मामलों में शामिल नहीं था। हालांकि, इस पूरे मामले के सामने आने के बाद भी इंदिरा गांधी ने पूरे मामले में चुप्पी साधे रखी। हालांकि, संजय गांधी का दावा था कि वह घटना के दिन कश्मीर में कहीं ट्रैकिंग पर गए थे और उनका 16 मई की रात को हुई कार चोरी में कोई हाथ नहीं है। उन्होंने अपनी मां इंदिरा गांधी से भी गुजारिश की थी वह इस संबंध में एक बयान जारी करे लेकिन इंदिरा गांधी ने खामोशी अख्तियार किए रखी।
संजय गांधी, भारतीय राजनीति में बेहद कम मौजूदगी के बावजूद भी कभी न भुलाए जाने वाला राजनीतिक चरित्र रहे हैं। आपातकाल के लिए जितना दोष तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिया जाता है तो उससे ज्यादा दोष इंदिरा गांधी के छोटे बेटे और तब सरकार का हिस्सा न होकर भी सरकार चला रहे संजय गांधी के हिस्से आता है। यूं तो संजय गांधी को एक आदर्श राजनीतिज्ञ के तौर पर शायद ही कभी इतिहास ने याद किया हो या भविष्य में याद किया जाएगा लेकिन बेहद कम उम्र के बावजूद वह एक दौर में भारतीय राजनीति में सबसे प्रासंगिक व्यक्ति जरूर थे।
बचपन से नाना के रूप में देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का लाड प्यार मिला, तो युवावस्था में प्रधानमंत्री के रूप में अपनी मां इंदिरा गांधी के सलाहकार, तख्त के वारिस के रूप में पहचान मिली। लेकिन, इन सबके अलावा संजय गांधी के किशोरावस्था के दौरान बचपन से मिले लाड़ प्यार के चलते एक बिगड़ैल रईसजादे के रूप में भी पहचान मिली। दून स्कूल में अनमने ढंग से कुछ साल गुजारने के बाद जब संजय गांधी वापिस दिल्ली लौटे तो उन्हें फिर से अपने मन की करने की छूट मिल गई। बचपन से ही मशीनों से प्यार करने वाले संजय गांधी को लेकर एक किस्सा खूब प्रचलित रहा है। वह है कि देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद जहां उनके बड़े भाई राजीव गांधी उच्च शिक्षा के लिए विदेश के प्रतिष्ठ विश्वविद्यालय चले गए वहीं संजय ने पढ़ाई से तौबा कर अपने जैसे दोस्तों का एक ग्रुप जरूर बना लिया है। हालांकि, शौकिया तौर पर कार चुराकर रात भर दिल्ली की सड़कों पर कार चलाने के आरोप, मशीनों से प्यार, शौकिया पायलेट संजय गांधी के हिस्से देश को किफायती, स्वदेश में निर्मित पहली कार देने की उपलब्धि भी जाती है। मारूती कार को देश की कार बनाने का उनका सपना और उस सपने को पूरे करने को लेकर कई अनसुने, प्रचलित किस्से हैं।
(स्रोत – प्रख्यात पत्रकार, लेखक विनोद मेहता की संजय गांधी की जीवनी ‘The Sanjay Story’ से। )
Author – Pankaj Kushwal