तो बदरीनाथ नहीं तपोवन में दर्शन देंगे बदरी विशाल
मान्यताओं के अनुसार भगवान नृसिंह की प्रतिमा की एक भुजा हर दिन हो रही है पतली, जिस दिन पतली होकर गिर गई बदरीनाथ जाने के रास्ते हो जाएंगे बंद
PEN POINT, DEHRADUN : बीते महीनों से भगवान बदरी विशाल के शीतकालीन प्रवास जोशीमठ भूधंसाव की वजह से चर्चाओं में है। शहर के वजूद पर खतरा मंडरा रहा है और सामरिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस शहर में सैकड़ों परिवारों को राहत शिविरों में दिन गुजारने पड़ रहे हैं। जोशीमठ देश दुनिया के करोड़ों हिंदुओं का एक पवित्र धार्मिक स्थल है। जोशीमठ स्थित भगवान नृसिंह का मंदिर एक प्रमुख धार्मिक तीर्थ स्थल है। इस मंदिर में भगवान नृसिंह की मूर्ति की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। इस मूर्ति का एक हाथ लगातार पतला होता जा रहा हैं। इस मूर्ति के एक हाथ के पतले होने के पीछे कई मान्यताएं हैं, जिसके बारे में धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। तथा करीब सौ साल पहले ब्रिटिश गजेटियर प्रकाशित करने वाले एचजी वाल्टन ने भी अपने गजेटियर में इस बात का उल्लेख किया है।
करीब एक हजार साल पुराना यह मंदिर भगवान बदरी विशाल का शीतकालीन प्रवास है। सर्दियों की शुरूआत में जब बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं तो भगवान बदरी विशाल इस मंदिर में आकर विराजते हैं।यह भगवान बद्रीनाथ की शीतकालीन गद्दी है। मान्यता है कि जोशीमठ के नृसिंह भगवान के दर्शन किए बिना भगवान बदरीनाथ की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती। इसलिए इस मंदिर को नृसिंह बदरी भी कहा जाता है।
भगवान नृसिंह के इस मंदिर को लेकर कई तरह के मत हैं लेकिन राजतरंगिणी ग्रंथ में बताया गया है कि इस मंदिर को आठवीं सदी में बनाया गया था। कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था। वहीं एक मत यह भी है कि पांडवों ने इस मंदिर की नींव रखी थी। साथ ही एक अन्य मत के अनुसार, नृसिंह भगवान की मूर्ति की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी क्योंकि भगवान नृसिंह को वह अपना इष्टदेव मानते थे। इस मंदिर में आदिगुरु शंकराचार्य की गद्दी भी है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी।
नृसिंह बदरी मंदिर में भगवान की मूर्ति करीब 10 इंच की है और यह शालिग्राम पत्थर से बनी है। मंदिर में भगवान नृसिंह की मूर्ति एक कमल पर विराजमान है। भगवान नृसिंह के अलावा मंदिर में बद्रीनारायण, कुबेर, उद्धव की मूर्तियां भी विराजमान हैं। वहीं भगवान नृसिंह के दायीं तरफ राम, सीता, हनुमानजी और गरुड़ की मूर्तियां भी स्थापित है और दायीं ओर कालिका माता की प्रतिमा स्थापित है।
केदारखंड में लिखा है नृसिंह के पतले हाथ का राज
मंदिर में स्थित भगवान नृसिंह की प्रतिमा की दायें हाथ की भुजा पतली है और यह हर साल धीरे-धीरे पतली होती जा रही है। केदारखंड के सनत कुमार संहिता में बताया गया है कि एक दिन भगवान नृसिंह का यह हाथ टूट कर गिर जाएगा। जिस दिन यह घटना होगी, नर और नारायण नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे और भगवान बदरीनाथ तक जाने वाले मार्ग को गायब कर देंगे। उसके बाद से तपोवन क्षेत्र में भविष्य बदरी मंदिर में बदरीनाथ के दर्शन होंगे।
क्या लिखा है वाल्टसन ने गजेटियर में
अंग्रेजी हुकूमत में आईसीएस अधिकारी रहे एचजी वाल्टन ब्रिटिश गढ़वाल गजेटियर में लिखते हैं कि जोशीमठ को लेकर एक कहानी प्रचलित है कि यहां बासदेओ राजा का शासन था। एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए वन में गए हुए थे। इसी समय भगवान नृसिंह के अवतार में भगवान विष्णु ने एक आम आदमी का रूप धारण कर राजमहल में पहुंचकर महारानी से भोजन मांगा। बसुदेओ राजा की पत्नी ने आम आदमी के रूप में आए भगवान नृसिंह को पर्याप्त भोजन कराया। भोजन करने के बाद वह आदमी राजा के बिस्तर पर लेट गया। जंगल से शिकार कर लौटे राजा ने अपने बिस्तर पर किसी गैर मर्द को लेटा देखा तो गुस्से से आग बबूला राजा ने उस आदमी की भुजा पर तलवार से वार कर दिया लेकिन राजा देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि भुजा से खून की बजाए दूध बह रहा है। राजा ने पत्नी को बुलाया तो पत्नी ने कहा जरूर यह भगवान होंगे। वह आदमी भगवान नृसिंह रूप में बदल गया। राजा क्षमा याचना करने लगा तो भगवान नृसिंह ने कहा कि तुमने जो अपराध किया है उसका दंड यह है कि तुम अपने परिवार के साथ जोशीमठ छोड़ दो और कत्यूर में जाकर बस जाओ। साथ ही भगवान ने कहा कि तुम्हारे प्रहार के प्रभाव से मंदिर में जो मेरी मूर्ति है उसकी एक बाजू पतली होती जाएगी और जिस दिन वह पतली होकर गिर जाएगी उस दिन राजवंश का अंत हो जाएगा। और माना जाता है कि जिस दिन यह भुजा पतली होकर गिर गई तो उसी दिन बदरीनाथ जाने का रास्ता बंद हो जाएगा और तपोवन में नया बदरी दर्शन देने लगेगा।