राज्यों के पुनर्गठन में श्रीरामलू का किरदार और उनकी मौत की कहानी
Pen Point. Dehradun : भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश राज्य की मांग को लेकर श्रीरामलू ने भूख हड़ताल पर जान दे दी थी। ऐसा क्यों हुआ यह जानने से पहले एक नजर राज्यों केे पुनर्गठन के फैसले तक पहुंचने वाली प्रक्रिया पर डालना जरूरी है। भारत के इतिहास में नवंबर का महीना कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण रहा है। इस महीने की पहली तारीख को दशकों पहले देश के कई राज्यों की भाषा के आधार स्थापना की गयी। लेकिन यह इतना आसान काम नहीं था। धर्म के आधार पर देश के बंटवारे के बाद कांग्रेस के सामने भाषा के आधार पर राज्यों का गठन करने की चुनौती थी। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत बल्लभ भाई पटेल और सी राजगोपालाचारी जैसे बड़े नेता भी भाषा के आधार पर राज्यों का गठन नहीं चाहते थे। इसके पीछे यह दलील थी कि देश जब तक अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, तब तक विभेदकारी नीतियों से बचा जाए। राज्यों के पुनर्गठन किस आधार पर हो, इसके लिये न्यायविदों और नौकरशाहों की तीन सदस्यीय समिति बनाई गई। इस समिति ने माना कि भाषायी राज्यों के लिये लोगों में मन में बड़ी मजबूत अपील है, किंतु देश कई तरह से अव्यवस्थित है, लिहाजा भाषा के आधार पर राज्यों का गठन फिलहाल टालना उचित होगा। समिति के मुताबिक वो कोई भी चीज जिससे राष्ट्रवाद की भावना बढ़ती है उसे बढ़ावा दिया जाए और जो इसकी राह में बाधक है उसे खारिज किया जाना चाहिए।
समिति के इस फैसले से संविधान सभा में एक बड़े वर्ग ने नाखुशी जाहिर कि। मराठी, गुजराती, तेलुगु, कन्नड़ आदि बोलने वााले सदस्यों ने अपने इलाके की जनता की भावनाओं का इजहार किया। इसके साथ ही भाषा के आधार पर राज्यों के गठन का मुद्दा जोर पकड़ने लगा। इसमें सबसे आक्रामक आंदोलन आंध्र प्रदेश की मांग को लेकर तेलुगु भाषी लोगों का था। इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब इंडिया आफ्टर गांधी में लिखते हैं- आंध्र के आंदोलनकारियों को दो लोगों से नफरत थी। एक प्रधानमंत्री दूसरे मद्रास के मुख्यमंत्री सी. राज गोपालाचारी से। दोनों ने सार्वजनिक रूप से कह दिया था कि वे एक अलग आंध्र प्रदेश के विचार को सही नहीं मानते। इस रूख से तेलुगु भाषियों में आक्रोश बढ़ गया।
आंध्र प्रदेश की मांग को लेकर 19 अक्टूबर 1952 को मद्रास में पोट्टी श्रीरामलू नाम के शख्स ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। उसे लाखों तेलुगुभाषी लोगों का जबर्दस्त समर्थन मिल रहा था। श्रीरामलू का जनम 1901 में मद्रास में हुआ था। वह पहले रेलवे में नौकरी करते थे और सेनीटिरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई किये हुए थे। 1928 में एक दुर्घटना में अपनी पत्नी और नवजात बच्चे को वह खो चुके थे। उसके बद गांधी जी के नमक सत्याग्रह में शामिल होने के लिये रेलवे की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। आंध्र के मुद्दे पर अनशन को श्रीरामलू मांग पूरी होने तक जारी रखना चाहते थे। दिन बीत रहे थे और श्रीरामलू को तेलुगु भाषियों का समर्थन बढ़ता जा रहा था।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नेहरू शुरूआत में इसे अनदेखा करते रहे, लेकिन जब दक्षिण से भारी विरोध की सूचनाएं मिलने लगी तो उन्हें इस मामले को संजीदगी से लेना पड़ा। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। 15 दिसंबर 1952 को अनशन करते हुए श्रीरामलू की मौत हो गई। जिससे तेलुगु भाषी लोगों में कोहराम मच गया और आंदोलन उग्र हो गया, जिसने हिंसक रूप ले लिया था। सड़कें जाम कर दी गई, रेलगाड़ियां रोकी गई और सरकारी संपत्तियों में तोड़फोड़ की गई। वहीं पुलिस की कार्रवाई में कई आंदोलनकारी मारे गए। बेकाबू हो रहे आंदोलन को देखते हुए प्रधानमंत्री ने मजबूर होकर हथियार डाल दिये। श्रीरामलू की मौत के दो दिन बाद उन्होंने बयान जारी किया कि हम आंध्र प्रदेश राज्य के गठन के लिये तैयार हैं।
अगले कुछ महीनों में इसे भाषायी आधार पर गठित होने वाले राजयों की सूचाी में शामिल कर दिया गया। इसके बाद 1 नवंबर 1956 में जन्मे राज्यों में कर्नाटक, केरल, राजस्थान और मध्य प्रदेश शामिल हैं। पश्चिम बंगाल का नए क्षेत्रों के साथ पुनर्गठन भी 1 नवंबर 1956 में ही किया गया। इनके अलावा इसी महीने की इसी तारीख को वर्ष 1966 में पंजाब और हरियाणा राज्य अस्तित्व में आए।
इसके अलावा नवम्बर का महीना राज्यों की स्थापना को लेकर बेहद अहम हो जाता है। इस महीने उत्तराखंड और झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के लोगों के दशकों से संजोए गए अलग प्रदेश के सपने को भी साकार किया गया। क्योंकि वर्ष 2000 में इसी महीने की पहली तारीख को छत्तीसगढ़ भारतीय गणतंत्र को छब्बीसवां राज्य, 9 नवंबर को उत्तराखण्ड 27वां और 15 नवम्बर को झारखण्ड 28वां राज्य बनाया गया