राम नवमी पर हिंदु मुस्लिम एकता से घबराए अंग्रेजों ने दिया था जलियावाला बांग कांड को अंजाम
जलियावाला बाग कांड दुनिया का अंग्रेजी हुकूमत द्वारा किया गया सबसे बड़ा हिंसक हत्याकांड
PEN POINT, DEHRADUN : आज जलियावाला बाग कांड को हुए 124 साल होने को। बैशाखी से पूर्व जलियावाला बाग में जमा हजारों लोगां पर जनरल डायर के आदेश पर डेढ़ हजार से ज्यादा गोलियां बरसाई गई, लाशों के ढेर लग गए, हजारों लोग मारे गए। यह एक ऐसा हत्याकांड था जिसने पूरे देश को ही नहीं बल्कि दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। जलियावाला बाग कांड की कहानियां हमेशा से हमें झकझोरती रही है। लेकिन, क्या आपको मालूम है कि जलियावाला बाग कांड जैसा जघन्य हत्याकांड के पीछे अंग्रेजों की वह झल्लाहट थी जो उन्हें 4 दिन पहले रामनवमी के मौके पर हिंदू और मुस्लिमों को एक साथ उस धार्मिक जुलूस में चलते हुए देखकर हुई थी। हिंदू मुस्लिम एकता का वह रूप देखकर अंग्रेज इस हद तक बौखला गए कि उन्होंने जलियावाला बांग में हजारों हत्याएं कर दी।
अंग्रेजी शासन से आजादी के खिलाफ देश भर में आंदोलन हो रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध की जीत से अहंकार के नशे में चूर इंग्लैंड ने मार्च महीने में भारत में आजादी के आंदोलनें पर लगाम लगाने और आंदोलनकारियों के दमन के लिए रॉलेट एक्ट लागू कर दिया। फरवरी 1919 में जैसे ही बिल पेश किया गया था उसका व्यापक विरोध देशभर में होने लगा था। क्योंकि, पंजाब साल 1913 में लाल हरकिशन लाल के पिपुल्स बैंक के डूबने के कारण बदहाल हो चुका था। लोग अपनी कमाई, जमा पूंजी गंवा चुके थे, महंगाई चरम पर थी। ऐसे रॉलेट बिल ने महंगाई और महामारी से जूझ रहे पंजाब प्रांत के लोगों के गुस्से को चरम पर पहुंचा दिया। रॉलेट बिल के विरोध में पंजाब सबसे आगे था।
फरवरी साल 1919 के अंत में जब रॉलेट (अराजक व क्रांतिकारी अपराध अधिनियम) बिल आया तो उसका व्यापक विरोध हुआ। रॉलेट एक्ट के खिलाफ हुआ आंदोलन भारत का पहला अखिल भारतीय आंदोलन था और इसी आंदोलन ने महात्मा गांधी को पूरे देश में प्रसिद्धि दिलाई थी। महात्मा गांधी हाल ही में दक्षिण अफ्रीका से नस्लविरोधी आंदोलन को पूरा कर देश लौटे थे। इसके बाद ही महात्मा गांधी ने एक सत्याग्रह सभा का गठन किया और ख़ुद पूरे देश के दौरे पर निकल गए ताकि लोगों को एकजुट कर सकें। हालांकि गांधी कभी भी पंजाब का दौरा नहीं कर सके। वो पंजाब प्रांत में प्रवेश करने ही जा रहे थे लेकिन इसके ठीक पहले नौ अप्रैल को उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और वापस भेज दिया गया।
देश के अधिकांश शहरों में 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया। हालांकि इस हड़ताल का सबसे ज़्यादा असर पंजाब के ही अमृतसर, लाहौर, गुजरांवाला और जालंधर शहर में देखने को मिला। लाहौर और अमृतसर में हुई जन-सभाओं में तो पच्चीस से तीस हज़ार तक लोग शामिल हुए।
9 अप्रैल को राम नवमी के दिन लोगों ने एक मार्च निकाल। राम नवमी के मौक़े पर निकले इस मार्च में हिंदू तो थे ही मुस्लिम भी शामिल हुए। रामनवमी के दिन अंग्रेजी हुकूमत और रॉलेट एक्ट के खिलाफ हिंदू मुस्लिमों का एक साथ शांतिपूर्वक मार्च ने अंग्रेजों की चिंता बढ़ा दी। अंग्रेजी हुकूमत के लिए दोनों समुदाय का साथ आना एक बड़े झटके जैसा था और उस पर किसी हिंदू त्यौहार पर।
इस हिंदू मुस्लिम मार्च से झल्लाए पंजाब के गवर्नर डायर ने उसी दिन अमृतसर के लोकप्रिय नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन को अमृतसर से निर्वासित करने का फ़ैसला किया और ठीक उसी दिन गांधी को भी पंजाब में घुसने नहीं दिया गया और पलवल वापस भेज दिया गया।
अपने नेताओं के निर्वासन की ख़बर ने अमृतसर के लोगों को गुस्से से भर दिया। क़रीब पचास हज़ार की संख्या में लोग जुटे और 10 अप्रैल को अपने नेताओं की रिहाई की मांग करते हुए उन्होंने सिविल लाइन्स तक मार्च निकाला। इस मार्च के दौरान सैनिकों से उनकी मुठभेड़ भी हुई। पथराव और गोलीबारी हुई जिसमें कई लोगों की मौत भी हो गई।
ठीक उसी दिन जालंधर के ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर को आदेश दिया गया कि वो इन हिंसक घटनाओं को संभालने के लिए फ़ौरन अमृतसर पहुंचें।
13 अप्रैल यानि जलियावाला बाग कांड के दिन लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, जलियावाला बाग में करीब 25 से 30 हजार लोग एकत्र थे। उसी दौरान वहां पहुंचकर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद लोगों पर गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया। बिना किसी पूर्व चेतावनी ये गोलीबारी क़रीब दस मिनट तक बिना एक पल भी रूके बिना चलती रही। जनरल डायर के आदेश के बाद सैनिकों ने क़रीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं। लाशों के ढेर लग चुके थे, कुछ लोग वहां मौजूद कुएं में कूद गए। आधिकारिक आंकड़ों में वहां 379 लोगों की मौत हुई लेकिन अनाधिकारिक तौर पर बताया जाता है कि एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई.