सुषमा स्वराज : विदेश मंत्री जो बन गई भारत की सुपर मॉम
– भारत की लोकप्रिय नेता सुषमा स्वराज की आज 71वीं जयंती, 25 साल की उम्र में मंत्री बन बनाया रेकार्ड
– भाजपा में वाजपेयी के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता, विदेश मंत्री बनकर वात्सल्य की आदर्श बनी
PEN POINT, देहरादून। वाशिंगटन पोस्ट 2014 में भाजपा के उभार के बाद भारत के बारे में सकारात्मक रिपोर्टिंग नहीं करता। दुनिया भर में प्रसिद्ध इस अखबार में कुछ छपता तो वह नीतियों और नेताओं की आलोचना ही होती। लेकिन अचानक 2016 में एक अभूतपूर्व घटना घटी। भारत के दक्षिणपंथी विचारधारी की प्रतिनिधि सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री को इस अखबार ने ‘सुपर मॉम’ का खिताब दे दिया। अमेरिका के बेहद प्रसिद्ध अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को लेकर एक लेख लिखा जिसमें उन्हें सुपर मॉम का शीर्षक देकर विदेश मंत्री के रूप में उनके वात्सल्य को लेकर एक मार्मिक लेख लिखा था। वह दौर था जब विदेश में फंसे लोग सिर्फ एक ट्वीट के जरिए सुषमा स्वराज से मदद पाते। वह दौर था जब सुषमा स्वराज पाकिस्तान की एक बेटी के उपचार के लिए तत्काल व्यवस्था करती और ट्वीट करती कि बेटियां साझी होती है वह किसी देश के दायरे में बंधी नहीं होती।
सुषमा स्वराज अगर आज जीवित होती तो अपना 71वां जन्मदिन मना रही होती। महज 25 साल की उम्र में मंत्री बनने से लेकर विदेश मंत्री बनने तक उन्होंने दुनिया भर में ख्याति प्राप्त की। अपने अजीब-ओ-गरीब बयानों से लेकर अपने काम की प्रसिद्धी के साथ संसद में आकर्षण का केंद्र रही। सुषमा स्वराज के हिस्से सबसे कम उम्र में कैबिनेट मंत्री बनने का भी रेकार्ड है। सिल्क की साड़ी पर मर्दों वाली हाफ जैकेट पहनने वाली सुषमा स्वराज का क़द पाँच फ़िट या इससे कुछ ही अधिक रहा होगा, लेकिन उनका राजनीतिक क़द उससे कहीं बड़ा था।
राजनीतिक शुरुआत और विवाह
1977 में जब सिर्फ़ 25 साल की उम्र में वो हरियाणा में देवी लाल मंत्रिमंडल में श्रम और रोज़गार मंत्री बनीं तो बहुत कम लोगों ने सोचा था कि आने वाले कुछ दशकों में उनकी गिनती भारत के चुनिंदा राजनेताओं में होगी। 1973 में सुषमा स्वराज ने सुप्रीम कोर्ट के वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। वहीं उनकी मुलाक़ात स्वराज कौशल से हुई जिनसे उन्होंने 1975 में विवाह किया। दोनों ने मिलकर उस समय भूमिगत चल रहे समाजवादी नेता जॉर्ज फ़र्नान्डिस का मुक़दमा लड़ा। 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह सत्ता में आए तो उन्होंने स्वराज कौशल को मिज़ोरम का राज्यपाल बनाया। वो उस समय राज्यपाल के पद पर काम करने वाले सबसे कम उम्र के शख़्स थे।
सोनिया गांधी के खिलाफ़ बेल्लारी में उम्मीदवार
1999 में जब सोनिया गाँधी ने कर्नाटक में बेल्लारी से चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया तो भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें उनके खिलाफ उतारा। एक समय एकतरफ़ा लग रहे मुक़ाबले को सुषमा ने अपनी प्रचार शैली से बहुत क़रीबी बना दिया। उन्होंने बहुत कम समय में कन्नड़ सीख कर बेल्लारी के मतदाताओं का मन जीत लिया था। हालांकि, उन्हें जीत तो नहीं मिली लेकिन वह भाजपा की राजनीति में अपना कद उंचा कर गई। जब 2004 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो उन्होंने ये बयान देकर सब को चौंका दिया कि अगर सोनिया गाँधी देश की प्रधानमंत्री बनती हैं तो वो अपना सिर मुंडवा लेंगी और ताउम्र ज़मीन पर सोएंगी। उनके इस बयान की काफ़ी आलोचना भी हुई लेकिन जल्द ही उन्होंने ये कटुता भुला दी और संसद के गलियारों में उन्हें कई बार सोनिया गाँधी का हाथ अपने हाथों में लेकर बतियाते देखा गया।
विदेश मंत्री के रूप में सर्वाधिक ख्याति
साल 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो सुषमा को उनके मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। वो कुछ समय के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रहीं।
साल 2009 में उन्हें लालकृष्ण आडवाणी की जगह लोकसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया। लेकिन सुषमा ने सबसे अधिक नाम तब कमाया जब उन्हें भारत का विदेश मंत्री बनाया गया।
यहाँ कूटनीति के साथ-साथ उनका मानवीय पक्ष भी उभर कर आय़ा। उन्होंने सऊदी अरब, यमन, दक्षिणी सूडान, इराक़ और यूक्रेन में फंसे हज़ारों भारतीय मज़दूरों के भारत लौटने में उनकी मदद की और एक महिला का पासपोर्ट खो जाने के बाद उसे तुरंत एक पासपोर्ट उपलब्ध कराया ताकि वो अपने हनीमून पर जा सके। विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज ने ऐसी प्रथा स्थापित कि आप बस एक ट्वीट के जरिए अपनी समस्या विदेश मंत्री को बताए
बेहतरीन वक्ता
सुषमा स्वराज को अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी के सबसे उत्कृष्ट वक्ताओं में माना जाता था। हिंदी और अंग्रेज़ी पर समान अधिकार रखने वाली सुषमा स्वराज को उनकी वाक्पटुता के लिए जाना जाता था। साल 2016 में उनके गुर्दों का प्रत्यारोपण हुआ था। 2019 के लोकसभा चुनाव से काफ़ी पहले उन्होंने ये कह कर सनसनी फैली दी थी कि वो ये चुनाव नहीं लड़ेंगी, क्योंकि उनकी सेहत इसकी अनुमति नहीं देती।
चुनाव होने के बाद उन्होंने न सिर्फ़ उन सभी कयासों को विराम लगा दिया जिसमें उनके राज्यसभा में जाने या किसी राज्य का राज्यपाल बनने की बात कही गई थी। बल्कि अपना पद छोड़ने के कुछ दिनों के भीतर ही अपना सरकारी आवास ख़ाली कर निजी मकान में रहने का उन्होंने फ़ैसला किया। लेकिन, 6 अगस्त 2019 को उनका निधन हो गया। भाजपा दोबार भारी बहुमत से दिल्ली की सत्ता तो कब्जा चुकी थी लेकिन सुषमा स्वराज के जाने से पैदा हुए शून्य को भरने के लिए पार्टी अब तक उनका कोई विकल्प नहीं खोज सकी है।