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सवाल : सरकारों की उपेक्षा या सिस्‍टम की लापरवाही का शिकार हुआ पौड़ी?

– जो रौनक और स्वरुप इस पहाड़ी शहर का यूपी कालीन सरकारों के दौर में हुआ करता था, वह पूरी तरह ख़त्म हो चुका है। जी हाँ ! हम बात कर रहे हैं “पौड़ी” की…

विपिन कंडारी, PEN POINT : उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अक्‍सर राज्य के अलग अलग क्षेत्रों के भ्रमण पर जाते रहते हैं। वहां वे आम लोगों से मिलने की कोशिश करते दिखाए जाते हैं। इस बार गढ़वाल मंडल मुख्यालय और राज्य आंदोलन की अग्रणी धरती गढ़वाल जिले के मुख्‍यालय पौड़ी को उन्‍होंने अपने प्रवास का ठिकाना बनाया। पौड़ी क्रांति, स्वतंत्रता आंदोलन, राज्य आंदोलन, सामाजिक आंदोलनों, राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास की अग्रणी भूमि रही है। इसका देश की आजादी से लेकर उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन जब जनता के त्याग, बलिदानों और हर मुमकिन कोशिशों के बाद अलग राज्य बना, तो यह शहर और जनपद अपनी ही सरकारों और सत्ता के शिखर तक पहुंचाए अपने ही पाल्यों की अनदेखी का शिकार होता गया।

कहने को तो यहाँ मंडल मुख्यालय है, लेकिन जो रौनक और स्वरुप इस पहाड़ी शहर का यूपी कालीन सरकारों के दौर में हुआ करता था, वह पूरी तरह ख़त्म हो चुका है। अलग राज्य बनने की  जो कीमत पौड़ी ने चुकाई है, उसकी भरपाई करना अब किसी सरकार के बूते की बात नहीं लगती। यूपी, उत्तराखंड और देश को कई मुख्यमत्री और मंत्री इस जिले ने  दिए, लेकिन किसी ने पौड़ी की उपेक्षा को कम करने की दिशा में गंभीरता नहीं दिखाई।

वोटों की फसल भरपूर काटी

गौरतलब है कि भगत सिंह कोश्यारी, नारायण दत्त तिवारी से लेकर आज पुष्कर सिंह धामी तक सारे मुख्यमंत्रियों ने इस जिले से वोटों की फसल तो चुनावों में खूब कटवाई, लेकिन उसके बाद पौड़ी के प्रति बरती जा रही उदासीनता को दूर करने के लिए कोई मजबूत योजना नहीं बनाई। यहाँ विकास के लिए जिन योजनाओं की समय समय पर घोषणाएँ की गयी, उनमें से ज्यादा पर काम नहीं हो पाया। ऐसा ही हाल जिले के तमाम सुदूर वर्ती क्षेत्रों में है। पिछले कार्यकाल में जिले भर में पर्यटन के नक़्शे पर उतारने के लिए जाने क्या क्या घोषणएं की गयी, लेकिन उन पर सिबाय चुनावी शिगूफे छोड़ने के अलावा कोई काम नहीं हुआ। पौड़ी जिलें में पांच नई झीलें बनाने की बात चुनाव से पहले लगातार की गयी, लेकिन धरातल पर किसी पर भी कुछ होता नहीं दिखाई दिया। कोटद्वार से कॉर्बेट में पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने को लेकर सालों से दावे किये जा रहे हैं।  सच्चाई कितनी है यह वहां के स्थानीय लोगों से जानी जा सकती हैं।

पलायन को मजबूर होते लोग

इस जिलें में पलायन की दर सबसे अधिक है। गाँव के गाँव इस जिले में पलायन से खाली हो रहे हैं। लोग रोजगार की तलाश और बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य को देखते हुए पहाड़ छोड़ रहे हैं। इन मुद्दों पर ये बाते लगातार होती रही हैं। सरकार ने इसके लिए बाकायदा एक आयोग भी बनाया लेकिन आज फिर जब सीएम पुष्कर सिंह धामी पौड़ी पहुंचे हैं, तो इसी मुद्दे पर लोगों से और छात्रों से चर्चा करते दिखे।

कब धरातल पर उतरेंगी योजनाएं

जानना ये जरूरी है  कि इसमें आज नया क्या जानने और सुनने को लोगों को मिला। हर मंच पर हर अखबार में सब जगह ये चर्चा सालों से हो रही है। पौड़ी में म्यूजियम बनाने का ऐलान कितनी बार हो चुका है। शहर के मुख्य बस अड्डे तक का काम बीते एक दशक से भी ज्यादा वक्त से पूरा नहीं हो पाया है। इस शहर में पेयजल की समस्या कभी ख़त्म और कम होने का नाम नहीं लेती। शहर की सीवर लाइन के प्रोजेक्ट की फाइलें शासन में दशकों से धुल फांक रहीं है। पौड़ी और पाबौ तक प्रेम नगर से सड़क को सुरंग के जरिये जोड़ने के सब्जबाग भी दशकों से दिखाए जा रहे हैं।

घोषणाएं सुनने के आदि हो चुके लोग

कहने को तो, आज भी सीएम धामी ने पौड़ी में अफसरों के साथ एक बड़ी बैठक की जिसमें पौड़ी को पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिये पर्यटन सम्भावनाओं को जिले में बढाने पर जोर दिया। इसके लिये कल्कट्रैट भवन को नया लूक देने शहर में म्यूजियम बनाने और साहासिक खेलो से जिले की दशा बदलने पर जोर देने का दावा किया। यहाँ के लोग ऐसे दावे और घोषणाएँ सुनने के आदि हो चुके हैं। ये शहर लम्बे समय से कूडा निस्तारण के एक अदद व्यस्था के लिए जूझ रहा है। वहीँ आयदिन ये शहर ट्रैफिक जाम की समस्या से घिरा रहता है। इस पहाड़ी शहर को रोपवे की सौगात देने की बड़ी घोषणा हुई पर अब तक उस दिशा क्या हुआ ? सबके सामने है। जिला मुख्यालय से लेकर मंडल और शासन तक बैठकों में ये सब बातें बरसों से सामने आ रही हैं।

प्रभारी मंत्री के अलावा महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री जनपद की विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से निर्वाचित विधायक आये दिन इन लोक जरूरतों से रूबरू होते रहते हैं। सियासत और सत्तसीन औपचारिकताओं का ये सिलसिला धरातल पर कब उतरेगा, इस पर कोई उम्मीद की किरण यहाँ के जनमानस को कभी दिखाई देगी भी कि नहीं ? या यूँही प्रस्ताव बना कर शासन को भेजने के निर्देश देकर यहाँ से चलते बनने की ये रवायत यूहीं बनी रहेगी।

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