बारात लेकर दुल्हन पहुंची दूल्हे के घर, गांव में जमकर हुआ जश्न
PEN POINT, DEHRADUN : समुद्रतल से करीब 1800 मीटर की उंचाई पर है गोठाड़ गांव। देहरादून जिले के जौनसार बावर का यह गांव इलाके के अन्य गांवों की तरह अपनी परंपराओं और संस्कृति से गहरा जुड़ा हुआ है। गांव के बीच सुख समृद्धि और सुरक्षा का आश्वासन सा देता मंदिर मौजूद है। शाम ढल चुकी है और मई के महीने भी यहां की हवा में सर्दियों जैसी ठंडक है। अंधेरा घिरते ही गांव बिजली के बल्ब टिमटिमाने लगे हैं। यहां बाहर चहल पहल से ही लग रहा है कि गांव में शादी के उत्सव का माहौल है। Pen Point की टीम शामियाने की ओर बढ़ी, जहां खूब सारे लोग नजर आ रहे है। शामियाने के भीतर दूल्हा और दुल्हन सामने स्टेज पर बैठे हैं। मेहमान, नाते रिश्तेदार फोटो खिंचवा रहे हैं। तीन ओर कुर्सियों की कतार में लोग बैठे हैं। वहीं कुछ बड़े और वरिष्ठ लोग जमीन पर गोल घेरे में भी बैठे हैं। उनके सामने खाने पीने की चीजें परोसी जा रही हैं। सभी लोग बड़े आराम से इस खातिरदारी का आनंद उठा रहे हैं। दरअसल, ये लोग बाराती हैं, लेकिन खास बात ये है कि बारात दूल्हा नहीं बल्कि दुल्हन लेकर आई है।
जी हां.. यह अनूठी परंपरा जौनसार के कई इलाकों में आज भी कायम है। गोठाड़ गांव में दीपा देवी और स्वर्गीय रूपराम सजवाण के बेटे आशीष की शादी भी इसी पंरपरा से हो रही है। जिसे जोझोड़ा विवाह कहा जाता है। एक दिन पहले रविवार सात मई को आशीष के घर से दो लोग इसी इलाके के लेल्टा गांव में भगत सिंह चौहान के यहां गए थे। अगली सुबह कुछ रस्मों के बाद भगत सिंह चौहान की बेटी ममता दुल्हन बनकर बारातियों के साथ अपने गांव से गोठार के लिए रवाना हुई।
मेहमानों की खातिरदारी के लिए भोज तैयार करने का काम भी चल रहा है। कुछ घरों में चुल्हे में महिलाएं रोटियां बना रही हैं। वहीं कुछ लोग खुले में बड़े चूल्हों पर चावल के साथ ही दाल, मीट और पूरियां तल रहे हैं। इन सभी लोगों को सुंवार या रूसुंवार कहा जाता है। जिसका अर्थ रसोईया समझा जा सकता है।
आशीष के चाचा दिवान सिंह बताते हैं कि जोझोड़े विवाह की परंपरा जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में पीढ़ियों से चली आ रही है। परिवार का बड़ा बेटा चाहे कितने ही बड़े पद पर क्यों न हो, उसे इसी रस्म से शादी करनी होती है। ऐसे समारोह में पूरी खत या पट्टी के लोगों को मेहमान के तौर बुलाया जाता है। ऐसे ब्याह कर आने वाली महिलाओं को रैणिया कहा जाता है और उनका विशेष सम्मान होता है और उनके लिए खास भोज का आयोजन किया जाता है। जिसे रैणीया जिमाना भी कहा जाता है।
दीवान सिंह से बात हो ही रही थी कि मंदिर के पास से ढोल और दमाउं की थाप और कैसियो की धुन सुनाई देने लगी। मदमस्त युवाओं की टोली एक दुसरे की कमर पकड़े हुए एक समान पदगति से नृत्य करते हुए आगे बढ़ रही थी। कुछ ही दूरी पर शामियाने के पास पहुंचकर यह टोली कदम मिलाते हुए गोल घेरे में घूमने लगे। जिसमें सबसे आगे डांगरी यानी फरसा लेकर एक आदमी पूरे नृत्य को लीड कर रहा था। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह डांगरी नृत्य है। करीब आधे घंटे के नृत्य के बाद हमें खाना परोसा गया।
क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप कवि ने बताया कि आज आशीष की बहिन अंशिका की भी शादी है। दैसियो गांव से उसकी बारात आई है। यह बात और चौंकाने वाली थी। उन्होंने बताया कि क्षेत्र में ऐसे विवाह का चलन पहले से रहा है। यह परंपरा इतनी बेहतर है कि इसमें परिवार फिजूलखर्ची से बच जाता है। यहां शादी में सभी लोग हाथ बंटाकर हर रस्म और काम को संपन्न करवा देते हैं।
दहेज की बात करें तो जौनसार बावर में यह कुप्रथा जड़ नहीं जमा सकी। यहां परंपरानुसार दहेज के नाम पर मात्र पांच वस्तुएं काठ का संदूक, बिस्तर, बंठा, परात व थाली देने का रिवाज है। स्थानीय भाषा में इसे पाइंता कहते हैं। समय की कमी और कच्ची और पथरीली सड़क से वापसी होनी थी। लिहाजा हमने लौटने का निर्णय लिया। लेकिन एक अनूठे विवाह में शामिल होने का यह अनुभव काफी रोमांचक रहा।