उर्दू थोपने की सनक ने पैदा किया बांग्लादेश को
-आज बांग्लादेश का 52वां स्वतंत्रता दिवस, विभाजन के अगले साले ही जिन्ना की उर्दू थोपने की घोषणा के बाद शुरू हो गया था विरोध
PEN POINT DEHRADUN : आज बांग्लादेश अपना 52वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। 1947 की 15 अगस्त को जब भारत का विभाजन हुआ और मुसलमानों ने अपना पृथक देश मांगा तो बांग्लादेश का हिस्सा भी पाकिस्तान के साथ भारत से अलग होकर पूर्वी पाकिस्तान बना। विभाजन की विभिषिका पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदुओं और वापस लौटने वाले मुस्लिमों ने भी झेली। उत्तरी भारत और पाकिस्तान की तरह पूर्वी पाकिस्तान भी दंगों की आग में जल उठा लिहाजा मरहम पट्टी में विभाजन के अगले छह महीने गुजर गये।
अब 21 फ़रवरी 1948 को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ढाका पहुंचे। हालांकि, वह दो दिन पहले से ही ढाका में डेरा डाले हुए थे लेकिन 21 फरवरी को ढाका के रेसकोर्स मैदान में वह एक जनसभा को संबोधित करने के लिए अवतरित हुए। पूरा मैदान लोगों की भीड़ से भरा हुआ था, अलग मुल्क का सपना देखकर उसे हकीकत में बदलने वाला वह शख्स आज लोगों के सामने था। खैर, जिन्ना का भाषण शुरू हुआ और उन्होंने एलान किया कि पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा उर्दू होगी और जो इससे अलग तरीके से सोचते हैं वे मुसलमानों के लिए बने मुल्क में दुश्मन हैं।
जिन्ना को उम्मीद थी कि इस एलान के बाद ढाका में जमा लोग उनका समर्थन तालियों की तड़तड़ाहट से करेंगे। लेकिन, बांग्ला बोलने ओढ़ने वाले पूर्वी पाकिस्तानियों के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था, पूरे रेसकोर्स मैदान में खुसपुसाहट परस गई। जिन्ना का यह आदेश ही आगे चलकर पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश के बनने की वजह बनी। या यूं कहें कि भारत का विभाजन करवाने के बाद जिन्ना ने इस बयान के बाद पाकिस्तान के विभाजन की भी नींव रख दी।
जिन्ना की घोषणा से बांग्लाभाषी जनता में निराशा और ग़ुस्से की लहर दौड़ गई। वे ठगा-सा महसूस करने लगे. वे असहाय थे। उन्होंने अलग मुस्लिम राष्ट्र का हिस्सा बनने का तो फ़ैसला किया था पर वे अपनी बांग्ला संस्कृति और भाषा से दूर जाने के लिए भी किसी भी क़ीमत पर तैयार नहीं थे।
पाकिस्तान के गवर्नर जनरल जिन्ना रेसकोर्स में उनके एलान से पसरे सन्नाटे को भी नहीं भांप पाए और फिर दो दिन बाद ढाका विश्वविद्यालय कैंपस में आयोजित एक कार्यक्रम में फिर से उन्होंने उर्दू को ही पाकिस्तान बनाने की बात दोहराई। अपनी बात मनवाने के लिए इस हद तक कठोर हो गये थे कि उसी दिन एक रेडियो कार्यक्रम में भी उन्होंने यही बात तो दोहराई साथ ही कह डाला कि इस मसले पर किसी भी तरह की बहस की गुंजाइश नहीं है।
जिन्ना के वापस कराची लौटते ही पूर्वी पाकिस्तान उर्दू थोपने के खिलाफ उबल पड़ा। इसी उबाल ने आखिरकार पाकिस्तान के विभाजन को पक्का कर दिया।
छात्रों की मौत से उबल उठा पूर्वी पाकिस्तान
21 फरवरी 1952 को ढाका यूनिवर्सिटी कैंपस में उर्दू के खिलाफ छात्रों का प्रदर्शन जारी था। तभी वहां हथियारों के साथ सुरक्षाकर्मी पहुंचे और उन्होंने प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में 12 छात्रों की मौत हो गई। दुनियाभर में इस घटना की तीखी आलोचना हुई लेकिन पाकिस्तानी हुकूमत ने इस घटना पर कोई दुख नहीं जताया उल्टा खामोश रहकर इसका मूक समर्थन किया। लोगों ने छात्रों की मौत की याद में घटनास्थल पर स्मारक बनवाया, लेकिन उसे ध्वस्त कर दिया गया। इस घटना की याद में बाद में संयुक्त राष्ट्र ने 21 फ़रवरी को मातृभाषा दिवस के तौर पर मनाने का फ़ैसला किया।
उर्दू थोपने के इस सनक ने एक अलग बांग्लाभाषी मुल्क का संघर्ष शुरू किया। करीब 15 लाख लोगों की मौतों के बाद आखिरकार 26 मार्च 1971 को भारत के सहयोग से पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना।
जिस उर्दू की जिद ने पाकिस्तान को तोड़ा, उसे कुल 8 फीसदी आबादी की बोलती है
उर्दू को इकलौती भाषा बनाने की जिद ने बांग्लादेश की नींव रखी लेकिन पाकिस्तान में उस भाषा को कुल 8 फीसदी लोग ही पाकिस्तान में बोलते हैं। पाकिस्तान की बड़ी आबादी पंजाबी बोलती है। 48 फीसदी आबादी की जबान पंजाबी है जबकि 12 फीसदी सिंधी भाषा बोलते हैं। वहीं 10 फीसदी सराइकी और 8 फीसदी पश्तो जुबान बोलते हैं। पाकिस्तान की आबादी का कुल 3 फीसदी आबादी बलोची जबान बोलती है। हालांकि, पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा उर्दू के साथ अंग्रेजी है।
स्रोत – इंडिया ऑफ्टर गांधी व गूगल।
प्रस्तुति – पंकज कुशवाल।