न पक्ष में न विपक्ष में : यह राजनीतिक दल रहे महत्वपूर्ण राजनीति घटनाक्रम से दूर
– बीते मंगलवार को विपक्ष के गठबंधन इंडिया और भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की बैठक में 64 दलों ने लिया था हिस्सा, लेकिन गायब रहे कई महत्वपूर्ण राजनीतिक दल
PEN POINT, DEHRADUN : बीता मंगलवार देश की राजनीति के लिए सबसे अहम दिन रहा। एक ओर जहां बंगलुरू में कांग्रेस समेत 26 दलों ने 2024 लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाते हुए नया गठबंधन बनाया और उसे नाम दिया इंडिया यानि इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस। वहीं, दूसरी ओर दिल्ली के पांच सितारा होटल अशोका में भाजपा ने लंबे समय बाद एनडीए के 25वें स्थापना दिवस पर 38 सहयोगी पार्टियों को बुलाकर 2024 के चुनाव के लिए विपक्ष के महागठबंधन के सामने अपनी एनडीए गठबंधन का शक्ति प्रदर्शन किया। बंगलुरू और दिल्ली में 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए जुटे राजनीतिक दलों के इस मजमे में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक दल और उनके चेहरे गायब रहे। दिल्ली में एनडीए की बैठक में उसके कई पुराने व महत्वपूर्ण साथियों के न पहुंचने से सवाल उठे तो साथ ही ऐसे कई दल विपक्ष की बैठक में बंगलुरू भी नहीं पहुंचे जिन्हें विचारधारा के मामले में भाजपा और एनडीए का पश्चिम माना जाता है।
मंगलवार को बंगलुरू में विपक्ष का औपचारिक गठबंधन हुआ तो दिल्ली में भाजपा ने एनडीए पुराने सहयोगियों को फिर याद कर चुनाव से पहले साथ लाने की कोशिश की लेकिन इन दोनों महत्वपूर्ण बैठकों में जो महत्वपूर्ण राजनीतिक दल गायब रहे, उनके बारे में जानते हैं –
1. बहुजन समाज पार्टी – मायावती पर लंबे समय से पर्दे के पीछे से भाजपा को समर्थन देने का आरोप लगता रहा है। हालांकि, मायावती और एनडीए का साथ औपचारिक रूप से सामने न आया हो लेकिन बीते सालों में मायावती ने केंद्र सरकार के प्रति अपना रूख नरम रखा है। चाहे राष्ट्रपति चुनाव के दौरान समर्थन देना हो या फिर कई ऐसे मौकों पर विपक्ष की आलोचना करना जब उनसे अपेक्षा की गई थी कि वह विपक्ष के साथ खड़ी होंगी। बीते सालों में उन्होंने केंद्र सरकार के खिलाफ आलोचना से बचना ही सही समझा है। वहीं, दूसरी ओर मायावती ने एलान कर दिया था कि वह विपक्षी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगी। हालांकि, विपक्ष जब एक जुट होने की तैयारियों में था तो बसपा से उसने संपर्क भी नहीं किया था हालांकि मंगलवार को हुई बैठक के बाद बसपा सुप्रीमो ने एलान किया कि वह लोकसभा चुनाव अकेले ही लड़ेंगी।
2. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पार्टी – असद्दुदीन ओवैसी की भी अब तक किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। हालांकि, मंगलवार को बंगलुरू में हुई विपक्ष की बैठक के बाद ओवैसी विपक्ष के गठबंधन पर खूब बरसे थे। हालांकि, कांग्रेस शुरू से ही ओवैसी से दूरी बनाने की पक्षधर रही है। आमतौर पर कांग्रेस औवसी के एआईएमएमईएम पर वोट कटाउ और भाजपा की बी टीम का आरोप लगाती रही है। ओवैसी ने भी मंगलवार को हुई बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि कांग्रेस हमेशा हर दल को भाजपा की बी टीम समझती है जबकि वह खुद ही इन सबकी जिम्मेदार है।
3. शिरोमणि अकाली दल – पंजाब में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने, सरकार चलाने वाली, एनडीए की प्रमुख घटक रही शिरोमणी अकाली दल का एनडीए की दिल्ली में बैठक से अनुपस्थिति ने भी हैरान किया। हालांकि, पिछले कुछ सालों में जो घटनाक्रम हुए हैं उससे अंदाजा लगाया जा रहा था कि भाजपा शिरोमणी अकाली दल से छुटकारा चाहती है ताकि वह पंजाब में अपने दम पर ही आगे बढ़ सके। पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा का रूख बेहद ठंडा रहा जिसकी वजह से शिरोमणी अकाली दल ने नाराजगी भी जताई। तो उसके बाद विवादित कृषि बिल का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में हुआ तो अकाली दल ने भाजपा से अपना रिश्ता तोड़ना ही बेहतर समझा। कृषि बिल का सबसे ज्यादा असर पंजाब में पड़ा, हालांकि, बाद में केंद्र सरकार ने इसे वापिस ले लिया लेकिन तब तक इसके विरोध में हुए प्रदर्शनों की वजह से कई किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी। विधानसभा चुनाव में भाजपा के ठंडे बर्ताव से नाराज अकाली दल को इस बिल के दौरान हुए विरोध प्रदर्शन से भाजपा से अपनी राह जुदा करने का बहाना भी मिल गया।
4. जनता दल सेक्युलर – कर्नाटक की जनता दल सेक्युलर पार्टी कांग्रेस और भाजपा दोनों के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुकी है। वहीं भाजपा कनार्टक के नेताओं ने एलान भी किया था कि जेडीएस लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में उम्मीद थी कि जेडीएस मंगलवार को दिल्ली में एनडीए की बैठक में शामिल होगी। भाजपा की जेडीएस पर नजर कर्नाटक में उसके मुस्लिम वोट बैंक को लेकर है। जेडीएस का मुस्लिम वोट बैंक में अच्छा खासा दबदबा है जो कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकता है। लेकिन मंगलवार को यह दल एनडीए की बैठक में नहीं पहुंचा तो विपक्ष ने खैर इस दल से पहले से ही किनारा किया हुआ है। ऐसे में कनार्टक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दल की अनुपस्थिति भी खटकती रही।
5. बीजू जनता दल – ओडिशा की राजनीति में पिछले ढाई दशक से सत्तारूढ़ बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक हमेशा से तटस्थ राजनीति की बात कर गुटबंदी से दूर रहने का दावा करते हैं। हालांकि, अतित में बीजेडी ने एनडीए के पक्ष में कई बार अपनी मौजूदगी दिखाई है। बीजेपी को बीजेडी ने कई बार खुलकर समर्थन किया है। लेकिन, एनडीए की बैठक में शामिल न होकर इस दल अपनी तटस्थ नीति का एक बार पालन किया।
6. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी – आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस राज्य में भले बीजेपी के साथ ना हो लेकिन जगनमोहन रेड्डी कई मौक़ों पर केंद्र सरकार की नीतियों का खुला समर्थन करते रहे हैं। साल 2010 में कांग्रेस से अलग हो कर बनाई गई वाईएसआर-कांग्रेस का राजनीतिक विरोध के चलते कांग्रेस वाले गठबंधन के साथ जाने के आसार बिल्कुल नहीं थे ऐसे में माना जा रहा था कि वह अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए एनडीए का हिस्सा बनेंगे लेकिन वह एनडीए की बैठक में भी नहीं पहुंचे।
7. तेलगू देशम पार्टी – चंद्रबाबू नायडू की यह पार्टी विपक्ष और एनडीए के गठबंधन की बैठक से दूर रही। हालांकि, चंद्रबाबू नायडू साल 2018 तक एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन 2019 का चुनाव बीजेपी ने अकेले लड़ टीडीपी को अलग कर दिया। हालांकि, इसके बाद चंद्रबाबू नायडू की भाजपा के शीर्ष नेताओं से मुलाकात का दौर जारी रहा लिहाजा यह माना जा रहा था कि जैसे भाजपा अन्य दलों को वापिस एनडीए का हिस्सा बनाने का अभियान चलाए हुए है चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को भी हिस्सा बनाएगी लेकिन बैठक से चंद्रबाबू का गायब रहना दूसरी कहानी बता रहा है।