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कैंसर के इलाज में कारगर है उत्तराखंड में पाया जाने वाला यह पेड़

PEN POINT, DEHRADUN : उत्तराखंड अपनी जैव विविधता और वेशकीमती जड़ी बूटियों के लिए विश्व विख्यात है। यहाँ असंख्य बहुउपयोगी औषधीय पेड़-पौधे पाए जाते हैं। हिमालय का यह क्षेत्र पादप संपदा से संपन्न है। यहाँ तक कि दुनिया की सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी कैंसर में बेहद उपयोगी साबित हुई औषधियों के लिए उपयोगी मानी जा रही प्रजातियों के पेड़ पौधे और जड़ी बूटियाँ यहाँ उपलब्ध हैं। दुनिया के कई देशों में आयुर्वेद उद्योग इस पर बड़े पैमाने पर काम कर रहा है। यही वजह है इसकी तस्करी बढ़ गयी है। इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि थुनेर अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में प्राकृतिक रूप से ही पाया जाता है। इसे कृषि उपज के रूप में बसावट वाली जगहों पर नहीं उगाया जा सकता है। हालाँकि इसकी नर्सरी लगाकर इसके पौधे विक्री के रूप में आर्थिकी से जोड़ने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। जिसके कुछ प्रयास किए भी जा रहे हैं।

क्या है थुनेर की उपयोगिता : थूनेर की छाल का स्वाद कुछ कड़वा, तीखा, ठंडा होता है। इसे कफ, पित्त और वात को कम करने वाला, मोटापा कम करने वाला, सुगन्धित,कमजोरी को दूर करने वाला और शरीर में ऊर्जा प्रदान करने में कारगर माना जाता है। आयुर्वेद के जानकार तो इसे बूखार, पेट के कीड़े मारने के लिए, कुष्ठ रोग और यहाँ तक कि तेज प्यास, जलन में आराम देने में भी महत्वपूर्ण मानते हैं। इसकी पत्तियों का उपयोग ग्रीन टी के रूप में भी किया जा रहा है। लेकिन थोड़ी ज्यादा कडवी होने के कारण कम लोग ही  इसका इस्तेमाल करते हैं। इसकी पत्तियों से तेल भी निकलता है जिसमें एंटी ऑक्सीडेंट एलिमेंट पाए जाते हैं।

थुनेर को अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, जिसमें बिरमी और थुनो नाम शामिल हैं। छाल के अलावा इसके फल और फूल का प्रयोग दवाइयों के तौर पर किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कई आधुनिक प्रयोगों और परीक्षणों के आधार पर इसे कैंसर में बेहद उपयोगी माना गया है। यह मूलत पूरे मध्य एवं दक्षिणी यूरोप, उत्तरी अफ्रिका एवं उत्तरी अमेरिका में पाया जाता है। यह विश्व में उत्तरी एवं शीतोष्णकटिबंधीय पूर्वी एशिया म्यान्मार के ऊपरी भागों से शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में भारत के उत्तराखण्ड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, मणिपुर तथा तमिलनाडू आदि में 1800-3500 मी की ऊँचाई तक के क्षेत्रों में पाया जाता है।

थुनेर का बाटनिकल नाम टैक्सस बकाटा है। उत्तराखंड में इसे थुनेर, उर्दू में जरनब, कश्मीरी में टैक्सस, अरबी भाषा में टालिस्फार, बंगाली में बिर्मी, तालिश पात्रा, भाडा गेटेला, चीनी भाषा में जू शान, अंग्रेजी में यू, फ्रेंच में इफ कॉम्यून, जर्मन में ईब, ईफे, इबेनबॉम, कांटेलबॉम, टैक्सबॉम, गुजराती में गेठेला बार्मी, हिंदी में तालिश पात्र, तालिश पत्ता के नाम से जाना जाता है।

'Pen Point

जड़ी बूटी टी शोध संस्थान के सीनियर साइंटिस्ट डॉ ए.के भंडारी बताते हैं थुनेर का वृक्ष स्लो ग्रोविंग पेड़ है। इसकी ऊंचाई 30 मी तक होती है। यह सदाबहारी श्रेणी वृक्ष होता है। इसका तना अत्यधिक मोटा और देवदार की तरह दिखने वाला और आकृति का होता है। यह सख्त कठोर और लगभग 50 सेमी गोलाई और चौड़े-फैले हुए होता है। इसकी शाखाएं सीधी तथा चारों ओर फैली हुई होती हैं। थुनेर की छाल पतली, कोमल, लाल या भूरे रंग की तथा पपड़ी जैसी होती है। इसके पत्ते अनेक, सघन रूप में व्यवस्थित, लघु वृंतयुक्त करीब 0.8-3.8 सेमी लम्बे, चपटे, ऊपर की ओर गहरे हरे रंग और चमकीले, आधा भाग पीला-भूरा रंग के अथवा लाल रंग के, कड़े तथा सूखने पर एक शानदार खशबू युक्त होते हैं। इसके फल 8 मिमी लम्बे, अण्डाकार, मांसल चमकीले लाल रंग के और बीज छोटे अण्डाकार, हरे रंग के बेहद सख्त होते हैं। इस पर फूल और फल मार्च-मई से सितम्बर-अक्टूबर तक लगते हैं।

कुमाऊं विश्विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ अजय रावत बताते हैं कि Taxus baccata टेक्सस बक्काटा यानी थुनेर में टैक्सोल नामक बेहद ख़ास तत्व पाया जाता है, इसका प्रयोग आयुर्वेद में कैंसर चिकित्सा में किया जा रहा है। इसके इसी गुण के कारण इस पेड़ के लिए ख़तरा पैदा हो गया है। सबसे पहले साल 1991 में रिसर्च में यह बात सामने आई कि इसकी छाल से निकलने वाला रसायन ‘टैक्सॉल’ ब्रेस्ट कैंसर में जीवनरक्षक साबित हो सकता है। आयुर्वेद इंडस्ट्री में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका इस्तेमाल बढ़ने से इसके वृक्षों पर संकट पैदा हो गया है। ऐसे में औषधि प्रयोग के साथ इसके संरक्षण को बढ़ावा देने की कोशिशें जारी हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आफ नेचर एंड नेचरल रिर्सोसेज (आईयूसीएन) के बाद वर्ल्ड कंजर्वेशन यूनियन(डब्ल्यूसीयू) ने इसे रेड लिस्ट में शामिल किया है। इंडियन काउंसिल फॉर फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजूकेशन(आईसीएफआरई) ने भी इस पेड़ को खतरे की श्रेणी में बताया है। भारतीय वन परिषद का कहना है कि इसे बचाने के लिए ठोस कदम न उठाए गए तो यह इतिहास बन जाएगा।

उत्तराखंड के सीमांत उत्तरकाशी में सबसे बड़ा थुनेर (टैक्सस बकैटा) का जंगल सुक्की गांव में है। गांव में खेतों के मध्य 2.6 हेक्टेयर क्षेत्र में थुनेर के 700 से अधिक पेड़ है। इन्हें ग्रामीण न केवल संरक्षित करते हैं, बल्कि गांव की पुश्तैनी धरोहर मानकर पूजते भी हैं। यही वजह है कि संरक्षित प्रजाति में शामिल होने के बावजूद यहां थुनेर का जंगल गुलजार है। इसके अलावा अल्मोड़ा के जागेश्वर, पिथोरागढ़ के मुनस्यारी में यह पाया जाता है।

इसके अलावा उत्तराखण्ड वन विभाग थुनेर को लेकर लाभकारी बनाने के लिए इस पर शोध कर रहा है। वहीं नर्सरियों में इसकी पौध तैयार कर ऊंचाई वाले इलाकों इसके क्षेत्र को बढाने की दिशा में भी कदम उठाए जा रहे हैं।

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