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आज : जब पहाड़ की बेटी खड़ी थी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर

– आज के ही दिन 39 साल पहले बछेंद्री पाल ने फतेह की दुनिया की सबसे ऊंची चोटी, अपने साथियों के साथ एवरेस्ट पर फहराया तिरंगा
– एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला के रूप में मिली उपलब्धि
PEN POINT, DEHRADUN : 23 मई 1984 का दिन था, दोपहर के 1 बजे दुनिया की सबसे ऊंची चोंटी एवरेस्ट पर एक भारतीय दल ने कदम रखा, यह पल इतिहास में दर्ज होने वाला था, क्योंकि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर खड़े दल में एक महिला भी शामिल थी जिसके हिस्से एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला का रिकार्ड आने वाला था। अपने 30वें जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले 29 साल की बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट की चोंटी पर कदम रख तिरंगा फहराया तो भारत की पहली एवरेस्ट विजेता महिला होने की उपलब्धि उनके हिस्से आ चुकी थी। आज का ही वह ऐतिहासिक दिन है जब बछेंद्री पाल ने आसमान छू लिया था।
मार्च 1984 को दिल्ली से 11 पुरूष और 6 महिला पर्वतारोही नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंचे। अभियान था 8848 मीटर ऊंची एवरेस्ट चोटी पर आरोहण। इस दल में 29 वर्षीय एक लड़की भी शामिल थी बछेंद्री पाल। 24 मई 1954 को उत्तरकाशी जनपद के नाकुरी गांव में जन्मी बछेंद्री पाल के पिता का नाम किशनपाल सिंह और मां का नाम हंसा देवी था। बछेंद्री उनके पांच बच्चों में से एक थीं। बछेंद्री पाल के पिता किशन पाल सिंह भारत चीन युद्ध से पहले तक तिब्बत के साथ व्यापार करने वाले भोटिया समुदाय से संबंध रखते थे। चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण से पहले तक वह हर साल खच्चरों पर अनाज लादकर तिब्बत बेच आते थे और वहां से नमक, जड़ी बूटी, ऊन के सामान लेकर आते थे। भारत चीन युद्ध के बाद यह व्यापार पूरी तरह से बंद हो गया। तो वह स्थानीय स्तर पर ही काम काज करने लगे।
बछेंद्री पाल बपचन से ही पढ़ाई और खेलकूद में आगे थी। एक किस्सा बताया जाता है कि 12 साल की उम्र में बछेंद्री पाल अपने दोस्तों के साथ 13 हजार फीट की ऊंचाई पर आसानी से चढ़ गई थीं। हालांकि, जिस गांव में बछेंद्री पाल रहती थी वहां आम महिलाओं ने रोजाना ही पहाड़ों पर चढ़ना उतरना आम जिंदगी का हिस्सा था। मवेशियों के लिए चारा जुटाना हो या खाना पकाने को जलवान लकड़ियां एकत्र करनी हो महिलाएं रोजाना ही समुद्रतल से कई हजार फीट की ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर चढ़ती उतरती हैं। बछेंद्री पाल की रोजमर्रा की जिंदगी का भी यह हिस्सा था। आर्थिक तंगी के बीच बछेंद्री पाल ने मैट्रिक पास किया और फिर स्नातक किया। वह अपने गांव में ग्रेजुएशन करने वाली पहली महिला थीं। स्नातक की डिग्री लेने के बाद बछेंद्री ने संस्कृत से परास्नातक किया। फिर बीएड किया। उनका सपना पर्वतारोही बनने का था, हालांकि उनके परिवार यह नहीं चाहता था। इसके बावजूद बछेंद्री पाल ने उत्तरकाशी में पर्वतारोहण का कोर्स करवाने वाले नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में पर्वतारोहण कोर्स के लिए दाखिला लिया।पर्वतारोहण में रूचि जागने लगी तो भारत की ओर से एवरेस्ट अभियान के लिए बनाए जा रहे दल में बछेंद्री पाल को भी शामिल कर लिया गया।
मार्च 1984 को यह दल काठूमांडू पहुंचा और उसके बाद शुरू हुआ अगले तीन महीने तक एवरेस्ट पर फतेह करने की तैयारी। और 23 मई 1984 को अपने अन्य दो साथियों के साथ आखिरकार दोपहर के 1 बजकर 7 मिनट पर बछेंद्री पाल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर थी और ऐसी उपलब्धि पाने वाली पहली भारतीय महिला बनी।

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