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टॉपोग्राफी ऑफ टेरर: जहां अपने गुनाहों के लिए दुनिया से माफी मांग रहे हैं जर्मन लोग

PEN POINT : दूसरे विश्‍वयुद्ध की तबाही का सिलसिला आज ही के दिन 30 अप्रैल 1945 को थमा। जब हिटलर ने एक बंकर में खुद को गोली मार दी थी। हार तय होने का अहसास होने पर उसने यह कदम उठाया था। हिटलर के अवसान के साथ ही जर्मन लोगो के दिमाग से नफरत का नशा उतरने लगा। नाजी नस्‍ल को मालूम हो गया कि खुद को श्रेष्‍ठ मानने की संकीर्णता का अंजाम कितना भयावह हो सकता है।

वक्‍त बीता और जंग की गर्द के साथ जर्मनों की सोच भी साफ हुई। अब वहां एक ऐसा म्‍यूजियम है जिसमें जर्मन लोग पूरी दुनिया से बाकयदा माफी मांग रहे हैं। बर्लिन के बाहरी इलाके स्‍प्री में यह एक ओपन म्‍यूजियम है। यहां जंग से तबाही की तस्‍वीरें चस्‍पा हैं, तो साथ ही अमन का पैगाम भी दिया जा रहा है। जिसे टोपॅाग्राफी ऑफ टेरर कहा जाता है। इसके बारे में ट्रैवल राइटर अनुराधा बेनीवाल अपनी मशहूर किताब आजादी मेरा ब्रांड में तफसील से बताती हैं। वे लिखती हैं-

यहां खुले बीहड़ से मैदान में लाइन से फोटो और पोस्‍टर लगे हैं। यह म्‍यूजियम देखे का कम और पढ़ने का ज्‍यादा है। मैं तीन घंटे तक सब पढ़ती रही। पहली बार में मुझे अपने ही पढ़े पर यकीन नहीं आया। फिर दुबारा पढ़ती हूं। यह जर्मनी ने अपने बारे में लिखा है। मैं जर्मनी में ही हूं ना?और यह म्‍यूजियम इन्‍हीं की जमीन पर बना है? नहीं नहीं.. ये अपनी ही बुराई कैसे कर सकते हैं ? सिर्फ बुराई ही नहीं खुद को गालियां दे रहे हैं! जर्मनों ने कितने यहूदियों को मारा। कितने डेथ कैंप लगाए उन्‍होंने बच्‍चे बूढ़े यहां तक कि पूरे गांव के गांव खत्‍म कर दिया। यहूदियों को देश से बाहर निकाल दिया और दूसरे देशों में घुसकर उन्‍हें मारा। यह सब बातें तो यहां दर्ज है ही। अपने देश के नाज़ी सैनिकों की फोटो लगाई है और उन्‍हें कसाईयों की उपाधि दी है। कैसे कैसे किस किस ने यहूदियों की हत्‍याओं को अंजाम दिया है। सबका कच्‍चा चिट्ठा है। सिर्फ हिटलर को ही हत्‍यारा नहीं बताया गया है, उसके सैनिक और पूरा देश कैसे उन हत्‍याओं में शामिल हो गया, यह सब लिखा है यहां और कहीं लुका छिपा के नहीं, पूरे उजाले में सबके सामने।

बाकी सब म्‍यूजियम की एंट्री फीस है, इसकी तो वह भी नहीं है। सब आओ, सब जानो सब सीखो।

एक जगह पर हिटलर का आदेश चस्‍पा किया गया है, जिसका हिंद तर्जुमा है कि- जो भी यहां रहता है सबको खत्‍म कर दो, कैदी नहीं चाहिए। वारसा को इस तरह मिट्टी में मिला दो कि पूरा यूरोप देखे और डरे

बिना किसी लाग लपेट के, बिना कोई जस्टिफिकेशन दिये, सीधे सीधे लिखा था कि, हमने यह सब किया। हम हत्‍यारे थे। हिटलर हमारा नेता था था और हम सब उसकी सुनते थे। सीधा लिखा है कि पढ़ने वाला बेचैन हो जाए। अपनी बुरी करतूतों को सिर्फ मानना ही नहीं पूरी दुनिया को बताना। अपनी आने वाली पीढ़ी को बताना कि कहीं कोई भूल ना जाए, कहीं भूलकर भी फिर ऐसी भूल ना हो जाए। अगर ऐसे कोई माफी मांगे तो कोई कैसे ना माफ करे।

पहले विश्‍वयुद्ध का सिपाही था हिटलर

20 अप्रैल 1889 को ऑस्ट्रिया के वॉन गांव के एक घर में एक बच्‍चा पैदा होता है। जिसे नाम दिया गया ऐडॉल्‍फ हिटलर। गरीब परिवार से होने के कारण उसकी स्‍कूली पढ़ाई जल्‍द ही छूट गई। सत्रह साल की उम्र में वह रोजगार के लिए घर से बाहर निकलता है। इधर उधर भटका। तभी दुनिया पर पहले विश्‍वयुद्ध के काले बादल मंडराने लगे। जर्मन सेना ने भर्ती की मुहिम शुरू की तो एडॉल्‍फ हिटलर भी बतौर सिपाही भर्ती हो गया। वह गजब का लड़ाकू निकला और सेना में अवार्ड पा गया। युद्ध में जर्मनी की हार हुई। लेकिन हिटलर का सफर अभी बाकी था।

दूसरे विश्‍वयुद्ध का प्रमुख कारण बना हिटलर

सेना छोड़ने के बाद वह राजनीति में सक्रिय हो गया। तेज तर्रार लड़ाका होने के साथ हिटलर नफरती फितरत का भी था। युद्ध में जर्मनी आर्थिक रूप से कमजोर हो गया था। हिटलर ने 1918 में सेना छोड़ने के बाद एक नाजी दल का गठ‍न किया। उसने लोगों के बीच विशाल जर्मन साम्राज्‍य और भूमि सुधार जैसे लोक लुभावनी बातें रखी। इसके लिए उसने नाजी श्रेष्‍ठता के भाव को प्रमुख हथियार बनाया। जर्मनी के लोग उस पर भरोसा करते चले गए और एक दिन वह जर्मनी का तानाशाह बन बैठा। फिर जो कुछ हुआ उससे दुनिया वाकिफ है। पहले विश्‍व युद्ध में रोजगार के लिए सेना में भर्ती हुए हिटलर ने दुनिया को दूसरे विश्‍वयुद्ध में झोंक दिया।

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