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पहाड़ का Tree Man : 50 लाख से अधिक वृक्षारोपण कर एक पूरी घाटी को बदल दिया

– आज वृक्ष मानव के नाम से प्रसिद्ध विश्वेश्वर दत्त सकलानी की 101वीं जयंती, चार हजार करोड़ रूपए से अधिक की पर्यावरणीय सेवा वाला जंगल किया तैयार
PEN POINT, DEHRADUN : 8 साल की उम्र में पहला पौधा जमीन पर रोपा, उसे बढ़ते वृक्ष का रूप लेते देखा तो इस धुन जागी कि पूरी जिंदगी ही जंगलों को पनपाने, वृक्षारोपण को समर्पित कर दी। आजादी के आंदोलन में भी हिस्सा लिया। लेकिन, ताउम्र 50 लाख से अधिक वृक्षारोपण कर एक पूरी घाटी को ही हरे भरे जंगलों से जीवनदान दे दिया। आज वृक्ष मानव ‘ट्री मेन’ के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता सैनानी विश्वेश्वर दत्त सकलानी की 101वीं जयंती है। पर्यावरण संरक्षण का जुनून ऐसा था कि जिंदगी के आखिरी दशकों में जब आंखों की रोशनी तक चली गई तो भी जंगलों पनपाने, उगाने में जुटे रहे।
टिहरी गढवाल के पुजार गांव में जन्मे विश्वेश्वर द्त्त सकलानी का जन्म 2 जून 1922 को हुआ था। उनकी पहली पत्नी से एक बेटी और दूसरी पत्नी से 4 बेटे और 4 बेटियां हुई। देहरादून सीमा से शुरू होने वाली टिहरी जिले की सकलाना पट्टी आज मीठे पानी के जलस्रोतों के लिए प्रसिद्ध है तो बांज के हरे भरे जंगलों की बदौलत यह इलाका पशुपालन के लिए भी मशहूर है। विशाल जंगलों की बदौलत इस इलाके में खेती किसानी इतनी समृद्ध है कि सीजनल सब्जियों के उत्पादन के समय सकलाना पट्टी से हर दिनों दर्जनों मालवाहक गाड़ियां सब्जियां लेकर देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश की सब्जी मंडियों तक पहुंचती है। इस समृद्धि की गाथा के पीछे सबसे बड़ा कारक है यहां बारह महीनों हरा भरा रहने वाला विशाल जंगल और जिसके जन्मदाता है विश्वेश्वर दत्त सकलानी।
उनकी पत्नी शारदा देवी का देहांत हुआ। 11 जनवरी 1948 को उनके बडे भाई नागेंद्र सकलानी टिहरी रियासत के खिलाफ विद्रोह में शहीद हो गई तो 11 जनवरी 1956 को उनकी पहली पत्नी शारदा देवी का देहांत हो गया। इन घटनाओं ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया लेकिन दोनों घटनाओं ने उन्हें पेड़ों से जोड़ दिया। उनका लगाव वृक्षारोपण और जंगलों के संरक्षण की प्रति बढ़ने लगा।
जीवन के 97 वसंत देखकर दुनिया से अलविदा कहने वाले विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने जिंदगी के आठ दशक जंगलों और पेड़ों को दिए। वह हर दिन जंगलों में खाली जगहों पर गढ्डे खोदते, वृक्ष रोपते और खाद पानी की व्यवस्था करते। लगातार मिट्टी से जुड़े इस काम से उनके आंखों की तकलीफ बढ़ने लगी तो चिकित्सकों ने मिट्टी और धूल से दूर रहने की सलाह दी। लेकिन, अपनी धुन के पक्के सकलानी ने अपनी जिंदगी ही पर्यावरण संरक्षण के नाम कर दी थी तो डॉक्टर की सलाह के बाद भी वह इस काम में जुटे रहे लिहाजा जिंदगी के आखिरी दशकों में धीरे धीरे आंखों की रोशनी भी जाती रही। 2007 में आंखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई।
लेकिन तब तक वह कभी बंजर और खाली वन भूमि वाले सकलाना क्षेत्र के 12 हेक्टेयर से भी अधिक इलाके को बांज, बुरांश समेत कई अन्य चौड़ी पत्ती के वृक्षों से हरा भरा कर चुके थे। वन विभाग ने साल 2004 में एक सर्वे से यह पुष्टि की कि सकलानी की ओर से 50 लाख से अधिक वृक्षारोपण किया गया था। उस दौरान उनके द्वारा पर्यावरण में दिए गए सहयोग की कीमत चार हजार करोड़ रूपए से अधिक आंकी गई थी। 2019 में वनों को समर्पित यह ट्री मेन दुनिया को अलविदा कह गया।

बेटी के विवाह में आए मेहमानों से करवाया वृक्षारोपण
साल 1985 में उनकी बेटी के विवाह का कार्यक्रम था लेकिन कन्यादान से पले सकलानी गायब हो गए, ग्रामीणों को पता था कि वह कहां होंगे, खोजते खोजते ग्रामीण जंगल में पहुंचे तो सकलानी उस वक्त वृक्षारोपण कर रहे थे। उन्हें बेटी के कन्यादान समेत अन्य रस्मों के लिए वापिस लाया गया, बेटी की विदाई से पहले सकलानी ने विवाह में आए प्रत्येक मेहमान से वृक्षारोपण करवाया उसके बाद ही बेटी को ससुराल के लिए विदा किया।

जब वृक्षारोपण करने पर दर्ज हुआ मुकदमा
जंगलों को हरा भरा करने और विभिन्न प्रजातियों के वृक्षों को रोपने के काम में जुटे विश्वेश्वर दत्त सकलानी के लिए पर्यावरण संरक्षण ही एक बार मुसीबत बन गया था। जंगलों में वृक्षारोपण करने के उनके अभियान से वन विभाग भी बौखला उठा और उन पर मुकदमा दर्ज कर दिया। साल 1987 में वन विभाग में वन भूमि पर बिना अनुमति के वृक्षारोपण का आरोप लगाकर उन पर मुकदमा दर्ज कर दिया। हालांकि, बाद में न्यायालय की ओर से इस मामले मंे वन विभाग को फटकार लगाते हुए सकलानी के उपर लगे आरोपों को हटा दिया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि वृक्षारोपण करना कोई अपराध नहीं है।

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