उप्रेती सिस्टर्स: सोशल मीडिया में लोकगीतों की मिठास घोलती दो बहनें
Pen Point, Dehradun : साल 2021 में जब कोविड का वक्त था और लॉकडाउन के चलते लोग घरों में सिमटे हुए थे। हर ओर ग़म और बेबसी पसरी हुई थी। पूरे देश के साथ ही उत्तराखंड में भी ऐसे ही हालात थे। तभी सोशल मीडिया पर लोकगीत गाती हुई दो बहनें दिखाई देने लगी। बेहद सादगी से मधुर आवाज में दोनों बहनों का गायन लोगों को पसंद आने लगा। उप्रेती सिस्टर्स की शुरूआत कुछ ऐसी ही थी। पिथौरागढ़ में पली बढ़ी ज्योति उप्रेती और नीरजा उप्रेती ने जल्द ही लोगों के दिलों में अपनी जगह बना दी। भोजपुरी, अवधी और बुंदेली लोक संगीत में मालिनी अवस्थी और मैथिली ठाकुर के साथ ही पंजाबी में सुरिंदर कौर जैसी महिला लोकगायिकाओं का बड़ा नाम है। उत्तराखंड के लिए उप्रेती सिस्टर्स इस कमी को पूरा कर रही हैं। लुप्त होते परंपरागत कुमाउंनी और गढ़वाली लोकगीतों से दोनों बहनें लोगों को रूबरू करवा रही हैं। पारंपरिक न्यौली, छपेली, झोड़ा चांचरी, झुमैलो, थड्या, बाजुबंद समेत कई लोकविधाओं से जुड़े गीत उनकी गायकी का हिस्सा हैं। खास तौर पर नई पीढ़ी को इस लोकसंगीत की ताकत का अहसास कराने में दोनों कामयाब हो रही हैं!
उप्रेती सिस्टर्स के सोशल मीडिया और उत्तराखंडी संगीत में छा जाने तक का सफर लंबा है। दूरदर्शन के एक कार्यक्रम में साक्षात्कार में दोनों बहनों ने अपने इस सफर को साझा किया। जिसके मुताबिक बड़ी बहन ज्योति सती को बचपन से संगीत का शौक था। लेकिन उन्होंने पहले पिथौरागढ़ डिग्री कॉलेज से बीएससी किया। उसके बाद देहरादून के भातखंडे संगीत महाविद्यालय से संगीत की विधिवत शिक्षा ली। फिर संगीत अध्यापिका के तौर पर नौकरी शुरू कर दी। इसके साथ उनकी गायकी का सिलसिला भी चलता रहा। उनका विवाह जोशीमठ के सति परिवार में हुआ, उनके पति अरविंद सती संगीत को लेकर पूरी तरह से उन्हें सपोर्ट करते हैं।
छोटी बहन नीरजा सती पेशे से फिजियोथेरेपिस्ट हैं। डॉक्टर होने के साथ उनकी संगीत में रूचि रही है और गायकी की प्रतिभा भी उनमें थी। लिहाजा उन्होंने भी अपने इस शौक को जिंदा रखा और गाने के सिलसिले को थमने नहीं दिया। इस बातचीत में दोनों बहनों ने बताया कि उप्रेती सिस्टर्स किस तरह और किस मकसद के साथ अस्तित्व में आया। प्रयोग के तौर पर की गई शुरूआत को आज बड़ी ख्याति मिल चुकी है। जिससे दोनों बहनें उत्साहित दिखती हैं और अब इस काम को और ज्यादा जोश के साथ आगे बढ़ाने को तैयार हैं।
बातचीत में ज्योति सती उप्रेती ने बताया कि हमारे पास लोकगीतों की सम़द्ध विरासत है। हिंदी फिल्म संगीत भी लोकगीतों से ही समृद्ध हुआ है। हम गांव गांव जाकर पुराने लोगों से इन गीतों को सीखते हैं, समझते हैं और उनका रियाज करते हैं। नए दौर में उत्तराखंडी संगीत के बिगड़ते स्वरूप को लेकर उनका कहना है कि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है। संस्कति खराब नहीं हुई है बल्कि इसका स्वरूप दूषित हो गया है, जबकि इसे ठीक तरीके से सीखकर ही इसका प्रस्तुतिकरण किया जाना चाहिए।