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उर्मी नेगी: बॉलीवुड में डटी रही, आज है पहाड़ की सबसे बड़ी फिल्मकार

इस साल मई का पहला हफ्ता उत्तराखंडी सिनेमा के लिए खास रहा है। बीती 4 मई को पहली गढ़वाली फिल्म जग्वाल को चालीस साल पूरे हुए, तो वहीं नई गढ़वाली फिल्म बथौं, सुबेरो घाम-2 रिलीज भी हुई। उत्तराखंड की जानी मानी अभिनेत्री और फिल्म निर्मात्री उर्मी नेगी इस फिल्म का पहला पार्ट तीन साल पहले लेकर आई थी। फिल्म को मिले बेहतर रिस्पॉन्स को देखते हुए अब उन्होंने इसका सीक्वल बनाया है। जानते हैं पहाड़ की इस सुविख्यात फिल्मकार के बारे में-
PEN POINT: यू ट़यूब चैनल गौं गुठ्यार को दिए इंटरव्यू में उर्मी नेगी बताती हैं- मैं 1982 में पौड़ी से मंुबई गई। महबूब स्टूडियो में पहुंची और हिम्मत के साथ देव साहब की वैनिटी वैन के सामने जाकर खड़ी हो गई।
उस दिन देवसाहब का मूड ठीक नहीं था, उनकी यूनिट के सदस्यों ने कहा कि आज मत मिलो, साहब का मूड बिगड़ा हुआ है। लेकिन मुझे देवसाहब की इमेज पर इतना विश्वास था कि उनके मूड की कोई परवाह नहीं की। इससे पहले कि मैं वैनिटी वैन का दरवाजा खोलती, इससे पहले ही देवसाहब ने गुस्से में दरवाजा खोल दिया। झल्लाते हुए उन्होंने पूछा हू आर यू.. मैंने उनसे इतना ही कहा कि मैं बहुत दूर से आई हूं और आपसे बस दो मिनट बात करना चाहती हूं, क्या मुझे आपकी फिल्म में काम मिलेगा। यह सुनते ही देवसाहब बोल पड़े- अरे तुम तो बहुत ही मीठा बोलती हो। फिर उन्होंने कुछ सोचकर कहा स्वामी दादा तो आधी बन चुकी है कोई खास रोल तो नहीं, लेकिन मेरे साथ रहने वाली एक साध्वी का छोटा सा रोल है, मैंने झट से उस रोल के लिए हामी भर दी।

इस किस्से के बाद उर्मी नेगी का सिनेमा का सफर शुरू हुआ। उत्तराखंडी गीत संगीत और सिनेमा को करीबी से जानने समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र सेमवाल बताते हैं कि उर्मि नेगी उत्तराखंड की एक साहसी फिल्मकार हैं। स्वामी दादा के छोटे से रोल के बाद देव साहब उर्मि को बराबर मशवरा देते रहे। वह देवसाबह को गढ़वाली गीत भी सुनाती थी। देवसाहब ने उन्हें अपनी अगली फिल्म आनंद और आनंद का प्रस्ताव दिया, पर उर्मि नेगी तब तक गढ़वाली फिल्म घरजवैं साइन कर चुकी थी।

उत्तराखंडी सिनेमा को दे रही बड़ा योगदान
सेमवाल के मुताबिक उर्मि नेगी मुंबईया फिल्मों में अपनी जिद और पैशन के दम पर चार दशक से डटी हुई हैं। आग के शोले, धरती की कसम, मान मर्यादा, हत्यारा, हवेली की पीछे, कसम धंधे की जैसी बी ग्रेड फिल्में भले ही उनके खाते में बॉलीवुड की बड़ी कामयाबी ना दिखाते हों, लेकिन उन्होंने अपने दम पर स्नो वे माउंटेन प्रोडक्शन हाउस खड़ा किया। डिस्कवरी व नेशनल जियोग्रॉफिक जैसे चैनलों में वाइसओवर व प्रोडक्शन के अन्य कामों से जूड़े रहने के बाद खुद को आर्थिक रूप से इतना सक्षम बनाया कि उत्तराखंडी फिल्म जगत में वे बड़ा योगदान कर रही हैं।
घरजवैं व कौथीग फिल्मों में यादगार अभिनय करने के बाद उर्मि नेगी प्रोडक्शन के क्षेत्र में उतरी और सबसे पहले फ्योंली फिल्म बनाई। नब्बे के दशक में बनी इस फिल्म के लिए उन्होंने गढ़वाली गानों कों मशहूर बालीवुड सिंगर्स की आवाज दी। कुमार शानू, उदित नारायण, अनुराधा पौडवाल, कविता कृष्णमूर्ति और अनुपमा देशपांडे जैसे गायक उस समय अत्यधिक व्यस्त थे। इसके बावजूद उर्मि ने उन्हें अपनी गढ़वाली फिल्म में गाने के लिए मनाया। बड़ गायक थे लिहाजा उन्होंने इन गानों को बखूबी निभाया भी।

मुंबई में अपने करियर के साथ उन्होंने उत्तराखंडी सिनेमा के लिए कुछ कर गुजरने की ललक से सुबेरा घाम बनाई। इस तरह घरजवैं से शुरू हुआ उनका सफर बथौं तक पहुंच गया है और इस तरह वे उत्तराखंडी सिनेमा की सबसे बड़ी फिल्मकार के तौर पर भी स्थापित हो गई हैं।

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