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उत्तराखंड फुटबॉल : पदाधिकारी ने प्रशासनिक प्रमुख के लिए बेटे के नाम की सिफारिश की

Pen Point, Dehradun :  फुटबॉल के नाम पर अजीबो गरीब खेल करने के शगल में माहिर उत्तराखंड फुटबॉल ऐसोसिएशन में एक और कारनामा सामने आया है। खेल के बेहतर प्रबंधन के लिए अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ की ओर से राज्य संघ को आर्थिक रूप से सहयोग किया जाता है। लेकिन उत्तराखंड में यह कदम सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा है। राज्य संघ से जुडे़ लोग ही इसका नाजायज फायदा उठा रहे हैं, हालिया मामले में उत्तराखंड राज्य फुटबॉल एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने अपने बेटे को उत्तराखंड में प्रशासनिक प्रमुख बनाने की सिफारिश की है। वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में प्रशासनिक प्रमुख को 35,000 रुपये प्रति माह मिलेंगे। जो कि साफ तौर पर हितों के टकराव का मामला है।

सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मिली एक जानकारी में यह बात सामने आई है। वरिष्ठ पत्रकार राजू गुसांई ने इस बाबत अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ से, उत्तराखंड राज्य फुटबॉल एसोसिएशन द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ की प्रतियां प्राप्त की हैं। कहा जा सकता है कि इस मामले में अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ भी दोषी है क्योंकि उन्होंने राज्य फुटबॉल संघ को उम्मीदवारों की सिफारिश करने के लिए खुली छूट दी है।

राज्य में फुटबॉल के बेहतर प्रबंधन के मद्देनजर अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ वेतनभोगी कर्मचारियों- तकनीकी समन्वयक, प्रशासनिक प्रमुख, कार्यालय सहायक, चपरासी और किराए के कार्यालय स्थान को रखने के लिए धन उपलब्ध कराएगा। इसकी आड़ में राज्य फुटबॉल संघ के एक पदाधिकारी ने अपने घर के एक कमरे को कार्यालय के रूप में उपयोग करने और एआईएफएफ से 12,000 रुपये मासिक प्राप्त करने की अपनी योजना को अंतिम रूप दिया है। उन्होंने तकनीकी समन्वयक के रूप में एक फुटबॉल अकादमी के व्यक्ति के नाम की भी सिफारिश की है (प्रति माह 30,000 रुपये प्राप्त करने वाले)। बताया जाता है कि यह शीर्ष पदाधिकारी फुटबॉल एसोसिएशन से जुड़ा हुआ है। यह हितों के टकराव का एक और मामला है।

उत्तराखंड राज्य फुटबॉल संघ द्वारा अनुशंसित तकनीकी समन्वयक और प्रशासनिक प्रमुख के दोनों नाम अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के मानदंडों को पूरा करने में विफल है। टेक्निकल कॉर्डिनेटर के लिए अनुशंसित व्यक्ति ने एआईएफएफ-डी लाइसेंस कोर्स किया है, जबकि पात्रता एएफसी-बी लाइसेंस है।

प्रशासनिक प्रमुख की पात्रता पर नजर डालें तो इसके लिये उम्मीदवार के पास स्नातक की डिग्री (खेल प्रबंधन को प्राथमिकता), राज्य संघ/पेशेवर क्लब/एआईएफएफ के साथ काम करने का तीन साल का अनुभव होना चाहिए। लेकिन जिस व्यक्ति की अनुशंसा की गई है वह युवा है और अपना पारिवारिक व्यवसाय संभालता है। अतीत में वह किसी भी तरह से किसी भी पेशेवर क्लब से जुड़ा नहीं था।

अभी हाल ही में उत्तराखंड राज्य फुटबॉल एसोसिएशन द्वारा महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज के खिलाड़ियों से दोगुनी सीआरएस फीस वसूलने का मामला सामने आया था। इस मामले ने साफ तौर पर उत्तराखंड फुटबॉल की दयनीय स्थिति को उजागर किया। ये कोई पहला मामला नहीं था। पूर्व में उत्तराखंड फुटबॉल एसोसिएशन ने रेफरी के लिए फर्जी आरआईएन टेस्ट आयोजित किए थे। उन्होंने पिछले साल एक नकली राज्य फुटसल चौंपियनशिप की भी मेजबानी की थी। यही नहीं, पिछले 23 वर्षों से किसी राज्य लीग की मेजबानी भी नहीं की है।

राजू गसांई के मुताबिक इन सब मामलों से जाहिर है कि उत्तराखंड राज्य फुटबॉल संघ में कोई पारदर्शिता नहीं है। किसी पेशेवर को चुनने के बजाय, वे अपने परिवार के सदस्यों और करीबी दोस्तों को भर्ती करने के इच्छुक हैं। अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के वित्तीय सहायता सहायता कार्यक्रम का उद्देश्य देश में फुटबॉल के बेहतर प्रबंधन में राज्य संघों की मदद करना है। उत्तराखंड राज्य फुटबॉल संघ के लिए यह पैसा कमाने का मौका बनकर आया है।

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