विश्व जल दिवस पर विशेष : गर्मियों में हलक तर करने को बहाना पड़ेगा खूब पसीना
– प्रदेश में गर्मियों की दस्तक के साथ पेयजल संकट की आहट भी, सर्दियों में कम बर्फवारी बारिश से पेयजल स्रोत भी सूखे
– ऐसे में गर्मियों के दौरान रोजमर्रा की जरूरतों के पानी जुटाने को करनी पड़ सकती है खूब मशक्कत
PEN POINT DEHRADUN : उत्तराखंड गंगा यमुना समेत प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है लेकिन प्रदेश की बड़ी आबादी को हर साल गर्मियों के दौरान पीने का पानी जुटाने को खूब मशक्कत करनी पड़ती है। इस साल गर्मियों में हलक तर करने के लिए लोगों को ज्यादा पसीना बहाना पड़ेगा। इसकी तस्दीक जल संस्थान की रिपोर्ट कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य के साढ़े चार हजार से ज्यादा पेयजल स्रोत सूखने की कगार पर हैं तो इसमें से दस फीसद के करीब तो 75 फीसदी तक सूख भी चुके हैं।
प्रदेश में गर्मियां दस्तक दे चुकी है तो इसके साथ ही पेयजल संकट ने भी आहट देनी शुरू कर दी है। राज्य में हाल ही में जल संस्थान की ओर से जारी रिपोर्ट के आंकड़ों की माने तो इस साल गर्मियों में हलक तर करने के लिए लोगां को खूब मशक्कत करनी होगी।
गर्मियों की दस्तक के साथ ही उत्तराखंड में भीषण जल संकट के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। प्रदेश के 4624 गदेरे और झरनों में तेजी से पानी की कमी आने लगी है। इनमें से 461 पेयजल स्रोत तो ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से ज्यादा पानी कम हो गया है। पानी कम होने वाली स्रोतों में पौड़ी सबसे पहले स्थान पर है। जल संस्थान की ग्रीष्मकाल में पेयजल स्रोतों की ताजा रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। जल संस्थान ने गर्मियों के दौरान होने वाले पेयजल संकट को देखते हुए हाल ही में प्रदेश के सभी प्रमुख जल स्रोतों का प्राथमिक अध्ययन करवाया तो नतीजों ने जल संस्थान के पेशानी पर बल ला दिया। इनमें से 10 फीसदी (461) पेयजल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 75 प्रतिशत से अधिक पानी सूख चुका है। अब इनसे इतना कम पानी आ रहा है कि आपूर्ति मुश्किल हो चुकी है। वहीं, 28 फीसदी(1290) पेयजल स्त्रोत ऐसे हैं, जिनमें 51 से 75 प्रतिशत तक पानी सूख चुका है। इनसे जुड़ी आबादी के लिए भी पेयजल संकट पैदा होने लगा है। जबकि 62 फीसदी (2873) पेयजल स्त्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी खत्म हो चुका है।
जिलेवार पेयजल स्रोत
देहरादून में 142 पेयजल स्रोत हैं जिनमें से 43 स्रोतों में 76 फीसदी से अधिक पानी सूख चुका है जबकि 62 स्रोतों में 51 से 75 फीसदी पानी कम हो चुका है वहीं सिर्फ 37 स्रोत ही ऐसे हैं जिनमें 50 फीसदी पानी कम हुआ है। सर्वाधिक पेयजल संकट झेलने वाले पौड़ी जिले के कुल 645 स्रोतों में 161 स्रोतों में 76 फीसदी से अधिक पानी सूख चुका है तो 111 स्रोतों में 51 से 75 फीसदी पानी की कमी आई है जबकि 373 स्रोत के पानी में आधे की कमी आई है। चमोली जिले में 436 पेयजल स्रोतों में 36 स्रोत 76 फीसदी से अधिक सूख चुके हैं। रूद्रप्रयाग के 313 स्रोतों में से 05 स्रोत 76 फीसदी से अधिक सूख चुके हैं। तो नई टिहरी के 627 स्रोतों में से 77 स्रोत पूरी तरह सूखने की कगार पर हैं तो उत्तरकाशी के 415 स्रोतों में से 63 स्रोत 76 फीसदी से ज्यादा सूख चुके हैं। नैनीताल के 459 स्रोतों में से 36 सूखने की कगार पर हैं तो अल्मोड़ा के 570 स्रोतों में से 13, पिथौरागढ़ के 542 स्रोतों में से 25, चंपावत के 277 स्रोतों में से 1 और बागेश्वर के 198 स्रोतों में से 01 स्रोत में पानी 76 फीसदी से अधिक सूख चुका है।
शहरी ज्यादा खर्च रहे पानी
प्रदेश के नगरीय क्षेत्र निवासी ग्रामीण क्षेत्र निवासियों के मुकाबले हर दिन लगभग दोगुना पानी खर्च करते हैं। राज्य के ग्रामीण इलाकों में जहां प्रतिदिन औसतन प्रति व्यक्ति 70 लीटर पानी खर्च करता है वहीं नगरीय क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 135 लीटर के करीब पानी खर्च करता है।
पर्यटन नगरी के हाल बेहाल
गर्मियों के दौरान पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर मसूरी को पानी के संकट से खूब जूझना पड़ता है। जब मैदान तपने लगते हैं तो देश भर से पर्यटक मसूरी पहुंचने लगते हैं। मसूरी पेयजल संकट से लंबे समय से जूझ रहा है ऐसे में पर्यटकों की भीड़ के चलते यहां पानी की मांग में भी जबरदस्त उछाल आ जाता है। गर्मियों के दौरान ही मसूरी में जब पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है तो यहां हर दिन 1 करोड़ 40 लाख लीटर पानी की जरूरत पड़ती है लेकिन पेयजल संस्थान पूरी कोशिश करने के बाद भी यहां मांग का आधा यानि 70 लाख लीटर के करीब ही पानी उपलब्ध करवा पाता है। हालांकि, गैर पर्यटन सीजन में मसूरी में पानी की मांग 70 लाख लीटर प्रति दिन तक ही रहती है।