पड़ोसी राज्य के मुकाबले रोज एक हजार टन ज्यादा कचरा पैदा कर रहे हम
– राज्य में हर दिन हो रहा 14 सौ टन से ज्यादा कचरा, प्रबंधन के नाम पर प्रगति शून्य
PEN POINT, DEHRADUN : हिमालयी राज्य उत्तराखंड में कचरे के पहाड़ भी राज्य की साख पर बट्टा लगा रहे हैं। कचरा प्रबंधन की उचित व्यवस्था न होने और ठोस अपशिष्ठ के प्रबंधन पर काम न करने की वजह से राज्य में कचरे के पहाड़ दिनों दिन ऊंचे होते जा रहे हैं। वहीं, राज्य अपने पड़ोसी राज्य हिमाचल के मुकाबले हर दिन तीन गुने से ज्यादा ठोस अपशिष्ठ पैदा कर रहा है जबकि इसके प्रबंधन की व्यवस्थाओं में शून्य है वहीं हिमाचल प्रदेश हर दिन पैदा होने वाले ठोस अपशिष्ठ का करीब 20 फीसदी संसोधित कर रहा है।
बीते दिनों आपने भी उत्तरकाशी शहर के बीचों बीच कचरे के पहाड़ से गंगा नदी में गिरते कचरे की फोटो और वीडियो भी सोशल मीडिया में जरूर देखी होगी। गंगोत्री धाम के इस प्रमुख पड़ाव में पिछले कई सालों से पूरे शहर भर का कचरा शहर के बीचों बीच गंगा नदी के तट पर डंप किया जा रहा है। लिहाजा, कचरा लगातार गंगा नदी में गिरकर नदी को भी दूषित कर रहा है तो साथ ही गर्मियों के दौरान कचरे से उठने वाली बू शहर भर के लोगों के लिए जी का जंजाल बनी हुई है। लेकिन, करीब सात से आठ सालों के दौरान उत्तरकाशी नगर पालिका एक अदद ट्रैचिंग ग्राउंड का तक निर्माण नहीं करवा सकी हालांकि ट्रैचिंग ग्राउंड के नाम पर करोड़ों रूपए की लागत के निर्माण कार्य जरूर करवाए गए हैं। वहीं करीब 11 साल पहले नगर पालिका उत्तरकाशी की ओर से कचरे को छांटने के लिए करोड़ों की लागत की मशीने भी लगवाई गई थी जिसका उद्देश्य कचरे का उचित प्रबंधन कर कचरे को पालिका की आय का हिस्सा भी बनाना था लेकिन अब वह मशीनें कहां जंक खा रही है इस बात से नगर पालिका भी अनजान है।
यह कहानी सिर्फ उत्तरकाशी नगर पालिका की ही नहीं है। उत्तराखंड के सभी नगर पालिकाओं और नगर पंचायत कचरे प्रबंधन में फिसड्डी साबित हुए हैं। इसकी तस्दीक बीते साल हुए स्वच्छ सर्वेक्षण के आंकड़े भी करते हैं जिसमें राज्य का एक शहर भी स्वच्छता की सूची में शामिल तो नहीं हो सका लेकिन राज्य के कुछ नगर क्षेत्र देश के सबसे ज्यादा गंदे शहरों में जरूर शामिल हुए। राज्य की राजधानी देहरादून तक देश के सबसे साफ सुथरे शहरों में करीब 360 नंबर पर रही यानि की स्वच्छता के मामले में हालत बेहद खराब।
डेढ़ करोड़ की आबादी और 53483 वर्ग किमी में फैला उत्तराखंड अपने पड़ोसी राज्य 80 लाख की आबादी और 55,673 वर्ग किमी में फैले हिमाचल प्रदेश के मुकाबले रोज 11 सौ टन ज्यादा कचरा पैदा कर रहा है। जहां उत्तराखंड में हर रोज 14 सौ टन कचरा पैदा होता है वहीं पड़ोसी राज्य में साढ़े तीन सौ टन कचरा पैदा होता है। दोनों हिमालयी राज्य देश के प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं तो दोनों की भौगोलिक परिस्थितियां भी समान है। लेकिन, आबादी में हिमाचल प्रदेश के दोगुना उत्तराखंड कचरा पैदा करने में भी पांच चार गुना आगे है। उत्तराखंड में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बकायदा नियमावली भी बनी हुई है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन 2016 के तहत नियमों के तहत राज्य के प्रत्येक नगर निकाय को कूड़ा निस्तारण की पुख्ता व्यवस्था करने के साथ ही कूड़े के रिसाइकिल, कूड़े को अलग अलग कर जैविक अजैविक को छांटने संबंधी प्रावधान है इसके लिए राज्य सरकार नगर निकायों को भारी भरकम बजट भी देती है लेकिन नगर निकायों के हाल यह है कि कूड़ा प्रबंधन को लेकर हाईकोर्ट तक भी बीते साल फटकार लगा चुका है लेकिन उसके बावजूद भी राज्य में रोज पैदा होने वाले कचरे के प्रबंधन को लेकर न तो निकाय न ही सरकार अपने स्तर पर कोई कदम उठाने की कोशिश करती दिख रही है। लिहाजा, नगर नगर में कचरे के पहाड़ आम लोगों के सेहत के लिए तो खतरा बन ही रहे हैं बल्कि देश विदेश से यहां घूमने को पहुंच रहे पर्यटकों के सामने राज्य की साख को भी बट्टा लगा रहे हैं।