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इज़रायल-हमास की जंग लंबी हुई तो भारत की तेल आपूर्ति पर क्या असर पड़ेगा?

Pen Point (Opinion) : इजरायल और हमास के बीच की जंग भारत के लिये कई तरह की चिंता का सबब बनी हुई है। जिसमें सबसे बड़ी चिंता तेल आपूर्ति की है। इस जंग से तेल उत्पादन में अस्थिरता आई है और दुनिया में तेल की कीमतों पर असर पड़ा है। जहां तक भारत की बात है तो यहां जरूरत का 85 प्रतिशत तेल आयात किया जाता है। यह बात इसलिये भी अहम है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है।

पर्यावरण पत्रिका डाउन टु अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जरूरत का करीब 60 प्रतिशत तेल मिडिल ईस्ट से आता है। यानी उस इलाके में कोई भी उथल पुथल भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधा असर डालेगी। हालांकि भारत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने तेल पर निर्भरता कम करने की दिशा में कई कदम उठा चुकी है। जिन्हें काफी सराहना भी मिली लेकिन ऊर्जा नवीकरण के ये सभी कदम अभी शुरूआती दौर में हैं। यही वजह है कि अब भी तेन यानी जीवाश्म ईंधन पर भारत बहुत अधिक निर्भर है। भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरियों का लगभग 70 प्रतिशत तेल आयात टर्म कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से होता है जबकि बाकी स्पॉट खरीद होती है।

फिलहाल तेल के आपूर्तिकर्ताओं के साथ भारत के अनुबंध की अवधि कायम है। कहा जा सकता है कि यदि आपूर्तिकर्ताओं के साथ भारत के अनुबंध की अवधि के बाद भी युद्ध जारी नहीं रहता है, तो सब कुछ ठीक हो जाना चाहिए। लेकिन अगर गाजा संघर्ष रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह लंबा खिंचता है, तो भारत को आयात विकल्प पैदा करने की आवश्यकता हो सकती है।

ऐसे हालात में ऊर्जा संकट पैदा होने पर आपूर्ति को सुरक्षित बनाये रखने की कई देशों की अपनी योजनाएं हैं। जो खास रणनीतिक पर आधारित हैं। भारत 2017 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के सहयोगी सदस्य के रूप में शामिल हुआ है। इस ऐजेंसी के सभी सदस्यो को एक आपातकालीन तेल भंडार बनाए रखना जरूरी है, जिसे किसी भी अचानक आए तेल संकट की स्थिति में कीमतों को स्थिर करने के लिए जारी किया जा सकता है।

डीटीई की रिपोर्ट के अनुसार भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार में केवल 9.5 दिनों के लिए पर्याप्त कच्चे तेल की आपूर्ति है। दूसरी ओर, निजी कंपनियों की संचयी आरक्षित क्षमता 64.5 दिनों की है। अमेरिका के पास दुनिया की सबसे बड़ी आरक्षित क्षमता 727 मिलियन बैरल है, जो लगभग 60 दिनों की आपूर्ति के बराबर है। चीन के पास 475 मिलियन बैरल और जापान के पास 324 मिलियन बैरल हैं।

सितंबर 2023 में नई दिल्ली में जी20 बैठक में, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा विकसित करने के लिए भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी और इटली के बीच एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए, जो सऊदी से होकर गुजरेगा। अरब से इज़राइल में हाइफ़ा बंदरगाह और आगे ग्रीस तक। यह प्रस्तावित नेटवर्क क्षेत्रीय ऊर्जा सुरक्षा को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में अंतर्निहित परिवर्तनशीलता के कारण, भारत की बिजली की विशाल और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सौर, पवन और अन्य पर पूर्ण विश्वसनीयता दूर की कौड़ी लगती है।

नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करके ऊर्जा परिवर्तन को भारत में अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों और संबंधित महत्वपूर्ण कच्चे माल (जैसे दुर्लभ पृथ्वी खनिज) के लिए चीन पर भारत की निर्भरता प्रमुख है। इसके अलावा, नवीकरणीय प्रौद्योगिकी और संबंधित कच्चे माल का बाजार बहुत केंद्रित है जिससे भू-राजनीतिक मुद्दों के मामले में गंभीर ऊर्जा सुरक्षा खतरे पैदा हो सकते हैं।

हालाँकि, हरित हाइड्रोजन और सीमा पार बिजली व्यापार (सीबीईटी) पर ध्यान केंद्रित करने से उन मुद्दों का समाधान हो सकता है। जबकि हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, सीबीईटी पहले से ही बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ हो रहा है।

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