किस्सा: जब नरेंद्र मोदी ने की थी इस्तीफे की पेशकश
-गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी थे नरेंद्र मोदी से नाराज, उन्हें गुजरात मुख्यमंत्री पद से चाहते थे हटाना
– हटाए जाने से पहले ही एक नाटकीय घटनाक्रम में खुद ही इस्तीफे की पेशकश कर बदल दिए राजनीतिक स्थितियां, इसके बाद बन गए मोदी सबसे मजबूत भाजपा नेता
PEN POINT, DEHRADUN : मणिपुर हिंसा को रोकने में असफल होने के आरोप लगने के बाद बीते 30 जून को मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इस्तीफा देने का फैसला लेते हुए अपने समर्थकों संग राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने निकल पड़े थे लेकिन उनकी एक समर्थक ने उनके हाथ से इस्तीफा छीनकर फाड़ दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री ने इस्तीफा देने का फैसला वापिस ले लिया। विपक्ष ने इसे राजनीतिक ड्रामा करार दिया तो इस किस्से से करीब 21 साल पहले ऐसी ही हिंसा की आग में झुलस रहे एक राज्य के मुख्यमंत्री के इस्तीफा देने की पेशकश के किस्से की भी याद ताजा हो गई।
किस्सा है साल 2002 का, तब गुजरात के मुख्यमंत्री और उस वक्त गुजरात दंगों की वजह से देश दुनिया की मीडिया की सुर्खियों में रहने वाले नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात दंगों के बाद इस्तीफे की पेशकश की थी, भाजपा कार्यसमिति के सामने की गई इस पेशकश का इंतजार यूं तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कर रहा था लेकिन ऐसा कुछ क्या हुआ कि तत्कालीन प्रधानमंत्री समेत भाजपा के वरिष्ठ नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों के चाहने के बावजूद भी यह इस्तीफा स्वीकार नहीं हो सका।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हो चुका था। 27 फरवरी 2002 की सुबह को गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से साबरमती एक्सप्रेस निकली। इसके स्लीपर कोच एस6 में कारसेवक बैठे थे जिनकी मंजिल अयोध्या थी। अहमदाबाद से 127 किमी दूर गोधरा स्टेशन पर ट्रैन रूकी तो कोच मुस्लिमों के एक दल ने एस6 कोच के दरवाजे बाहर से बंद कर कोच के अंदर ज्वलनशील पदार्थ फेंक आग लगा दी। गोधरा कांड के नाम से जाना जाने वाले इस घटना में कोच में बैठे 59 लोगों की आग से जलकर मौत हो गई।
घटना की सूचना तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली तो वह हेलीकॉप्टर से गोधरा पहुंचे, मृतकजनों के परिजन भी सूचना मिलने पर गोधरा पहुंच चुके थे लेकिन नरेंद्र मोदी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। उन्होंने वह शव मृतकों के परिजनों को न सौंप कर विश्व हिंदू परिषद को सौंप दिए और योजना बनाई गई यह सब शव पूरे राज्य भर में घुमाए जाएंगे। इससे पहले इससे मिलता जुलता फैसला करगिल युद्ध के दौरान युद्ध में शहीद जवानों के शवों को जगह जगह घुमाने के प्रधानमंत्री वाजपेयी के फैसले जैसा था। लेकिन, इसका मकसद दूसरा था। 28 फरवरी को भाजपा, आरएसएस और विहिप ने गोधरा कांड के खिलाफ पूरे राज्य में बंद का आह्वान किया। हालांकि, दंगों की जांच के लिए बनी एक समिति के सामने भाजपा के एक नेता ने बयान दिया था कि गोधरा कांड की उस रात को गांधीनगर आकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह साफ कर दिया था कि अगले हिंदुओं की ओर से जवाबी कार्रवाई होगी और पुलिस को हिंदुओं के रास्ते में नहीं आना होगा। हालांकि, बाद में अलग अलग आयोगों की जांच रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों में क्लिन चीट दी गई। लेकिन, 2002 में हालात अलग थे। 28 फरवरी को बंद के दौरान ही हिंदू संगठनों ने गुलबर्ग सोसाएटी में हमला कर दिया, उसके बाद गुजरात में दंगों का एक भीषण दौर शुरू हुआ। गुजरात मुस्लिम विरोधी दंगे तेजी से 151 शहरों, 993 गांवों तक फैल गए जिसमें 1272 लोग मारे गए जिनलमें 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे इन दंगों में 228 लोग लापता बताए गए। दंगों की वजह से लगभग 1 लाख मुस्लिम और 40 हजार हिंदुओं को विस्थापित होना पड़ा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इन भीषण दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ही दोषी बताना शुरू कर दिया था। केंद्र मंे गठबंधन के बूते भाजपा की सरकार थी लेकिन विपक्ष समेत गठनबंधन के साथी भी इन दंगों को लेकर भाजपा को घेरने लगे थे। ज्यादातर की प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मांग थी कि वह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बर्खाश्त कर दे।
गुजरात दंगों को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी नरेंद्र मोदी की ही दोषी मानने लगे थे लेकिन नरेंद्र मोदी के साथ तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण वाजपेयी खड़े थे।
दंगों के बाद 28 मार्च 2002 को प्रधानमंत्री ने नरेंद्र मोदी को दिल्ली में एक बैठक के लिए बुलाया लेकिन यहां नरेंद्र मोदी एक जनमत सर्वेक्षण के साथ पहुंचे और दावा किया कि अगर गुजरात में अभी समय से पूर्व चुनाव करवाएं जाए तो भाजपा को सीटों का फायदा हो सकता है, आडवाणी जहां इससे सहमत थे वहीं वाजपेयी के लिए यह किसी वज्रपात सरीखा था। उन्होंने नरेंद्र मोदी के तुरंत चुनाव करवाने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद 4 अप्रैल 2002 को वाजपेयी खुद गांधीनगर गए और दंगा प्रभावित क्षेत्रों का भ्रमण कर दंगा प्रभावित कैंपों में गए।
गांधीनगर से निकलने के बाद जब वाजपेयी वापिस दिल्ली के लिए उड़ान भर रहे थे उससे पहले एयरपोर्ट ही उन्होंने गुजरात दंगों को अपना वह प्रसिद्ध बयान दिया था जिसमें उन्हांेने कहा था कि मेरे पास मुख्यमंत्री के लिए एक ही संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करें।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तय कर चुके थे कि वह नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटा लेंगे लेकिन उससे पहले वह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की सहमति भी चाहते थे लेकिन गांधीनगर से लौटने के बाद उन्हें एक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए सिंगापुर निकलना पड़ा। 11 अप्रैल को सिंगापुर से लौटने के बाद 12 और 13 अप्रैल 2002 को गोवा में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह तय किया गया था कि नरेंद्र मोदी को हटाया जाए। लेकिन, यहीं नरेंद्र मोदी ने पूरा खेल पलट दिया।
गुजरात में गोधरा कांड की प्रतिक्रिया के रूप में हिंदुओं द्वारा मुस्लिमों पर हुए हमलों को लेकर भाजपा के ज्यादातर नेता नरेंद्र मोदी के साथ थे, उनकी माने तो यह बहुत जरूरी था अन्यथा मुस्लिमों के हौसले और बुलंद होते।
गोवा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 12 अप्रैल को शुरू हुई, मंच पर प्रधानमंत्री वाजपेयी, गृह मंत्री आडवाणी के अलावा भाजपा पार्टी अध्यक्ष जना कृष्णमूर्ति बैठे थे। बैठक में निर्णय लिया गया कि गुजरात दंगों पर चर्चा अगले दिन यानि 13 अप्रैल को होगी, पार्टी अध्यक्ष ने कार्यकारिणी को संबोधित किया। इसके बाद यूं तो गृहमंत्री आडवाणी ने संबोधित करना था लेकिन नाटकीय घटनाक्रम में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा अध्यक्ष के भाषण के तुरंत बाद मंच पर आए और एक गुजरात में हुई प्रतिक्रिया पर एक लंबा भाषण देते हुआ एलान किया कि मैंने निर्णय ले लिया है कि मेरी वजह से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए इसलिए मैं मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे रहा हूं।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 250 सदस्यों में से ज्यादातर ने खड़े होकर नारेबाजी शुरू कर अपना समर्थन नरेंद्र मोदी को दिया और उन्हें इस्तीफा वापिस लेने की मांग करने लगी। पूरा सभागार ‘मोदी-मोदी’ नारों से गुंजने लगा।
वाजपेयी के लिए यह गहरा झटका जैसा था, सब कुछ नरेंद्र मोदी की लिखी स्क्रिप्ट के अनुसार हो रहा था। वाजपेयी ने फैसला अगले दिन के लिए सुरक्षित रखा लेकिन रात भर में ही नरेंद्र मोदी के समर्थन में राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बड़ा पक्ष खड़ा हो गया। खुद आडवाणी इस पूरी स्क्रिप्ट में नरेंद्र मोदी की मदद कर रहे थे, यह भेद जब वाजपेयी के सामने खुला फिर उन्होंने मोदी का इस्तीफा लेने का फैसला टाल दिया। वहीं, प्रधानमंत्री को झुकाने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में और भाजपा के नेता के रूप में तब 51 वर्षीय नरेंद्र मोदी की निडरता बढ़ गई थी। हालांकि, राष्ट्रीय फलक पर छाने के लिए उन्होंने अगला एक दशक लिया लेकिन गोवा में लिखी इस स्क्रिप्ट के अनुसार इस्तीफा देने के नाटक ने उनका कद भाजपा में बहुत मजबूत कर दिया था।
(PANKAJ KUSHWAL)