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OSCAR : जब ऑस्कर पुरस्कार खुद चलकर भारत आया

1992 में भारतीय सिनेता के युगपुरूष सत्यजीत रे को कोलकाता आकर ऑस्कर समिति ने दिया था ऑस्कर पुरस्कार
PEN POINT, DEHRADUN : इन दिनों तेलुगू फिल्म आरआरआर के गाने नाटू नाटू को ऑस्कर पुरस्कार मिलने के बाद देश खुशी से झूम रहा है। हालांकि, कुछ रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि इस पुरस्कार के लिए फिल्म के निर्देशकों को करोड़ों रूपये चुकाने पड़े लेकिन फिल्मी दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार भारतीय फिल्म के एक गीत को मिलना एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन, क्या आपको पता है आज से करीब 31 साल पहले आज के ही दिन ऑस्कर पुरस्कार खुद भारत की झोली में आकर गिरा था। मशहूर निर्देशक सत्यजीत रे को उनके निर्देशन के लिए ऑस्कर कमेटी ने लाइफ टाइम अचीवमेंट ऑस्कर पुरस्कार दिया था।
2 मई 1921 को कलकत्ता में जन्में सत्यजीत रे को दुनिया के दस श्रेष्ठ फिल्मकारों में गिना जाता है। 1955 में पाथेर पांचाली फिल्म के साथ उन्होंने फिल्म निर्माण की दुनिया में कदम रखा। पहली ही फिल्म पाथेर पांचाली और अपू त्रयी की तीनों फिल्मों को दुनिया भर के फिल्म पुरस्कारों में सैकड़ों पुरस्कार मिले। शिल्प के लिहाज से दुनिया की सर्वश्रेष्ठ फिल्में बनाने वाले सत्यजीत रे ने कभी अपनी फिल्मों को ऑस्कर अवार्ड के लिए नहीं भेजा। जबकि, हमेशा से ही ऑस्कर अवार्ड पाना दुनिया के हर फिल्म निर्देशक, अभिनेता का सपना रहता है।  स्वयं ऑस्कर अवॉर्ड 1992 में चल कर कोलकाता आया और विश्व सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान के लिए सत्यजीत रे को मानद ऑस्कर अवॉर्ड से अलंकृत किया। सत्यीजत रे बीमार थे जिस कारण वह पुरस्कार लेने नहीं जा सके और उनका सम्मान करते हुए ऑस्कर समिति ने खुद कोलकाता आकर उन्हें यह सम्मान सौंपा । इस आयोजन की फिल्म बनाई गई और उसे ऑस्कर सेरेमनी में प्रदर्शित कर पूरी दुनिया को दिखाया गया। इसी साल उन्हें 1992 में कला के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1984 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया। कुल 37 फिल्में बनाने वाले सत्यजीत रे की यादगार फिल्मों में पाथेर पांचाली, अपराजितो, अपूर संसार और चारूलता आदि का नाम लिया जा सकता है।
1957 में फिल्म ‘मदर इंडिया’ पहली भारतीय फिल्म थी, जिसे ऑस्कर की विदेशी भाषा की फिल्म की श्रेणी में नामित किया गया था। लेकिन पुरस्कार पाने में सफल नहीं हो सकी थी। इसके बाद कई फिल्मों को ऑस्कर के लिए भेजा गया लेकिन पुरस्कार पाने में सफल नहीं हो सकी।
1992 में ही ऑस्कर पुरस्कार और भारत रत्न पाने वाले भारतीय सिनेमा के युगपुरूष के रूप में पहचान पाने वाले सत्यजीत रे ने अपने 71वें जन्मदिन से 9 दिन पहले 23 अप्रैल 1992 को लंबी बीमारी के बाद शरीर त्याग दिया।

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