इस सर्द मौसम में क्यों धधक रहे हैं उत्तराखंड के जंगल ?
Pen Point, Dehradun : बीती 2 जनवरी को उत्तरकाशी जिले के मंजेली गांव के पास जंगल में लगी आग से एक व्यक्ति बुरी तरह झुलस गया। अन्य ग्रामीणों के साथ जंगल की आग बुझाते हुए यह घटना हुई। घायल को देहरादून के कोरोनेशन अस्पताल में रैफर किया गया है। ग्रामीणों के मुताबिक इस इलाके में बड़े पैमाने पर जंगल जल रहे हैं, जबकि आम तौर ऐसा गर्मियों के दौरान देखने को मिलता है। ऐसा नहीं कि उत्तराखंड का यही इलाका दावानल से जूझ रहा है, बल्कि अन्य पहाड़ी जिलों में भी यही हाल है। इस बार मौसम की बेरूखी और वन महकमे की लापरवाही जंगलों और आम लोगों पर भारी पड़ रही है।
पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक इस सर्द मौसम में उत्तराखंड के जंगल धधक रहे हैं। यह बात चिंताजनक है। हालात ये है कि पूरे देश में उत्तराखंड में जंगल की आग की सबसे ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं। इस बात की तस्दीक केंद्रीय पर्यावरण, वन और जनवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत संचालित भारतीय वन सर्वेक्षण एफएसआई ने की है। जिसके मुताबिक 1 नवंबर 2023 से 1 जनवरी 2024 के बीच उत्तराखंड में 1006 आग लगने की घटनाएं हुई हैं। पिछले साल की तुलना में इसमें भारी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। खास बात ये है कि इससे पहले इन दो महीनों की अवधि में सालों में जंगल की आग की कुल 556 घटनाएं ही हुई थी। ऐसे में हरियाली और वन्य जीवन पर संकट का अंदाजा लगाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि इस अवधि के दौरान उत्तराखंड से ज्यादा आग लगने की घटनाएं हिमांचल प्रदेश में दर्ज की गई हैं। जिनकी संख्या 1115 है।
लेकिन एफएसआई की ओर से जारी आंकड़ों पर गौर करें तो 29 दिसंबर के बाद पिछले सात दिनों में उत्तराखंड में दावानल की घटनाएं हिमांचल से ज्यादा हो गई हैं। इस दौरान उत्तराखंड में 263 घटनाएं दर्ज की गई। जबकि हिमांचल में 213 घटनाएं हुई। अन्य पहाड़ी राज्यों की बात करें तो अरूणांचल प्रदेश में 103 और जम्मू कश्मीर में 78 घटनाएं दर्ज हुई हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में जंगलों में 69 घटनाएं सामने आई हैं। अन्य राज्यों में स्थिति सामान्य है।
हैरत की बात ये है कि उत्तराखंड में लगी जंगलों की आग को लेकर कोई मुस्तैदी भी नजर नहीं आ रही है। वन विभाग के फायर कु्र स्टेशन अलसाए हुए से हैं, जाहिर है कि इस सीजन में आग की घटनाओं के लिये उनकी तैयारी भी नहीं है। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि जनवरी माह में वन संपदा का भारी नुकसान होने के बाद आगे क्या होगा। गर्मियों की शुरूआत में उत्तराखंड के अधिकांश जंगल दावानल की चपेट में आ जाते हैं। यानी इस बार सर्दियों के साथ ही गर्मियों में भी जंगलों और उन पर निर्भर आम लोगों को दावानल से जूझना होगा।
पर्यावरण के लिहाज से देखें तो जंगल में आग लगने की घटनाओं से हरियाली तबाह होती है और नए पनप रही वनस्पतियां भी खत्म हो जाती हैं। वन्य जीवों के प्राकृत आवास जल जाते हैं और कई वन्य जीव इस आग की भेंट चढ़ जाते हैं। इसके अलावा पर्यावरण और पारिस्थितिकीय तंत्र के लिये बेहद जरूरी सूक्ष्मजीवी आग से नष्ट हो जाते हैं। जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन गड़बड़ा जाता है। ऐसे हालात वन्य जीवों और कई उपयोगी वनस्पतियों पर संकट आ जाता है। देश के लिये पर्यावरण को बचाने का नारा देने वाले उत्तराखंड राज्य के लिये यह और भी बड़ा मुद्दा है।