दिनकर ने क्यों कहा था सुमित्रानंदन पंत को “नारी बनने को बेचैन कवि”?
-प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की आज है जयंती, अल्मोड़ा जिले के कौसानी से निकलकर हिंदी साहित्य में दिया महान योगदान
Pen point, Dehradun : उत्तराखंड की धरती ने हिंदी साहित्य को एक से बढ़कर एक रचनाकार दिये हैं। महाकवि सुमित्रा नंदन पंत भी उनमें से एक हैं। अल्मोड़ा जिले के कौसानी में चाय बागान के एकाउंटेंट पं. गंगादत्त के घर 20 मई 1900 में उनका जन्म हुआ। चार भाईयों और चार बहिनों में पंत सबसे छोटे थे। पहले उनका नाम गोसांई दत्त था, लेकिन हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए उन्हें जब अल्मोड़ा भेजा गया तो नाम बदलकर सुमित्रानंदन लिखवाया गया। पंत उन गिने चुने कवियों में हैं जिन्हें छायावादी काव्य का आधार स्तंभ होने के साथ ही प्रगतिवादी काव्य के प्रर्वतक भी माना जाता है।
प्रकृति के इस चितेरे कवि के रचनाकर्म पर काफी कुछ लिखा गया है। लेकिन उनके समकालीन साहित्यकारों ने उनके व्यक्तित्व पर भी खूब लिखा है। उनके गुणों और रूप रंग को विद्वानों ने अपने तरीके से परखा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर उनके व्यक्तित्व को कुछ ऐसे बयां करते हैं- छोटा हल्का शरीर, चेहरे पर सौम्य शांति, जो सचमुच ही देवताओं की शांति है, और सिर पर घने लहराते बाल जो सुंदर से सुंदर रमणी को और सुंदर बना सकते हैं। पंत जी का कोट, पंत जी की पतलून, यहां तक कि उनका कुर्ता भी ऐसे काट का होता है, जिससे नारी जाति के प्रति उनके असीम आदर की सूचना मिलती है। जिससे यह साफ जाहिर होता है कि यह पुरुष नारीत्व पर आसक्त नहीं, स्वयं नारी बन जाने को बेचैन है। यह नारित्व पंत जी के मात्र काव्य में ही नहीं, उनके व्यक्तित्व और स्वभाव में भी समाविष्ट है। ये अत्यंत मितभाषी मनुष्य हैं, उनकी वाणी अत्यंत मधुर और भंगिमा नारी की भंगिमा है।
डा.हरिवंश रायत बच्चन ने उनके बारे में लिखा है- वीणापाणी के हिंदी उपासकों में यदि किसी ऐसे व्यक्ति की खोज की जाए जो नख से शिख तक रूचिकर प्रतीत होता है। तो शायद ही किसी को मतभेद हो दृष्टि श्री सुमित्रानंदन पंत पर ही ठहरेगी। लंबे बाल, उभरा हुआ नाक नक्श, नर्म नर्म आंखें, सहज ही गंभीर मुद्रा पर मनहूस नहीं।
सन् 1931 में आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी सुमित्रानंदन पंत की वेशभूषा पर लिखते हैं- उनकी वेशभूषा अप टु डेट विलायती ढंग की थी। सूट पहले हुए थे, उनके बाल करीने से सजे हुए- बॉब शैली में संवारे गए थे, तेल न लगा होने के कारण वे कुछ रूखे और छितराये हुए थेा उनका मुख दिप्तमान था, वह दीप्ति पुरूषोचित न थी। रंग काफी निखरा हुआ गैर ही कहा जा सकता था।
महाकवि के संतुलित स्वभाव पर अमृतराय ने लिखा है- पंत जी के यहां उद्दाम कुछ भी नहीं है, जो नर्मी, जो नजाकत, जो कोमलता या सुकुमारता उनकी कविवता की विशेषता है, वही बिल्कुल वही उनके चरित्र की विशेषता है। यही कोमलता उनको हर तरह के अतिवाद से बचाती है और उन्हें संतुलन और संयम की ओर ले जाती है।
सुमित्रानंदन पंत के बारे में अज्ञेय ने लिखा है- वास्तव में पंत जी का व्यक्तित्व एक ऊंचे ही स्त पर सम-गति से चलता रहता है। इसीलिए उसका दूसरों पर प्रभाव उद्दात, सूक्ष्म और प्रीतिकर ही होता है, किंतु झकझोर जाने वाला नहीं। पंत जी की शालीनता का एक अंश कदाचित उनकी आद्यात भीरूता भी है।
नेपोलियन से मिली लंबे बाल की प्रेरणा
हिंदी के शोधार्थी और सुमित्रानंदन पंत के व्यक्तित्व पर शोध कर चुके चंद्रकांत तिवारी के अनुसार सुमित्रानंदन ने बाल्यकाल में नेपोलियन बोनापार्ट का चित्र देखा था। जिससे वे काफी प्रभावित हुए। खास तौर पर उसके लंबे बालों से पंत जी का बाल सुलभ कौतुहल बढ़ा और उन्होंने अपने बाल भी लंबे कर लिये। फिर उन्होंने इसे अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लिया।
हाईस्कूल में फेल हो गए थे पंत
साहित्य को लकर अनुराग सुमित्रानंद पंत को बचपन से ही था। लेकिन वे विज्ञान विषय पढ़ रहे थे। यही वजह है कि गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा में दसवीं में वे हिंदी और अंग्रेजी में उन्होंने सर्वोच्च अंक हासिल किये। लेकिन गणित में फेल हो गए। 1918 में उन्हें अपने मंझले भाई के साथ बनारस भेजा गया। जहां उन्होंने जयनारायण हाईस्कूल में दाखिला लिया। वहीं उन्हेांने दसवीं पास की।
(संकलन- डा.पीडी बड़थ्वाल हिंदी अकादमी उत्तराखंड द्वारा प्रकाशित, केदार-मानस, सुमित्रानंदन पंत विशेषांक)