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जानें, क्यों जल रहा है मणिपुर

– मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने के आदेश के बाद से ही मणिपुर में हिंसा जारी

PEN POINT, DEHRADUN : पूर्वोत्तर में स्थित राज्य मणिपुर बीते दो दिनों से जल रहा है। मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने के फैसले से फैली हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया है, राज्य के राज्यपाल की ओर से बीते गुरूवार को ही देखते ही गोली मारने का आदेश भी जारी कर दिया है। राज्य की सबसे बड़ी आबादी मैतेई समुदाय लंबे समय से खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की मांग कर रहा था, जिस पर बीते तीन मई को मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 2013 में जनजाति मंत्रालय की ओर से मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की सिफारिश लागू करने के आदेश दिए थे। इसी आदेश के बाद अन्य जनजातिय समूहों ने राज्य में हिंसा शुरू कर दी।
हालांकि, मणिपुर में यह हिंसा अभी शुरू नहीं हुई है। मणिपुर में बीजेपी सरकार ने फरवरी महीने से संरक्षित इलाकों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया था जिसका व्यापक विरोध हुआ और कई जनजातीय समूह खुलकर हिंसा जैसी घटनाओं पर उतर आए थे लेकिन यह आग बेहद धीमी जल रही है। लेकिन, तूफान तब आया जब तीन मई को मणिपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार 10 साल पुरानी सिफ़ारिश को लागू करे जिसमें गैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी।
मणिपुर के 10 फीसद हिस्से पर गैर-जनजाति मैतेई समुदाय का दबदबा है। जबकि, मैतेई समुदाय की आबादी में हिस्सेदारी 64 फीसदी से भी ज्यादा है वहीं, राज्य की विधानसभा में भी 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं। यानि सरकार में उनकी हिस्सेदारी दो तिहाई से भी ज्यादा है। जबकि, मणिपुर के 90 फीसद पहाड़ी क्षेत्र में प्रदेश की 35 जनजाति समूह निवासरत हैं। फिलहाल मणिपुर में 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है। नगा और कुकी जनजाति मुख्य रूप से ईसाई हैं। जबकि मैतेई समुदाय हिंदू धर्म को मानता है।
वर्तमान व्यवस्था के तहत मैतेई समुदाय राज्य के मैदानी हिस्सा जो कि राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का केवल 10 फीसद हैं तक ही अपनी बसावट कर सकता है। एक अनुबंध के अनुरूप मैतेई समुदाय राज्य के पर्वतीय हिस्सों में न तो खेती कर सकता है न ही वहां बस सकता है। जबकि, जनजातिय समूहों पर यह पाबंदी लागू नहीं है।
खुद को जनजाति में शामिल करने के लिए मैतेई ट्राइब यूनियन की ओर से साल 2013 में हाईकोर्ट मणिपुर में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। मैतेई समूह की ओर सेयाचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में बताया था कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ, उससे पहले मैतेई को मणिपुर हिस्से में जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। याचिका में दलील दी गई थी कि मैतेई को जनजाति का दर्जा इस समुदाय, उसके पूर्वजों की ज़मीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए ज़रूरी है। मैतेई समूह का कहना था कि जनजाति का दर्जा न मिलने से उन्हें पहाड़ों से अलग किया गया है। जबकि, जिस हिस्से में मैतेई रहते हैं वहां जनजातिय समूह बस सकते हैं लिहाजा वह मैदानी हिस्सा तेजी से सिकुड़ रहा है जबकि मैतेई समुदाय के पास अन्य कहीं बसने का विकल्प नहीं है।
इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफ़ारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफ़ारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने मई 2013 में जनजाति मंत्रालय के एक पत्र का हवाला दिया था। 2013 में जनजाति मंत्रालय की ओर से जारी इस पत्र में मणिपुर की सरकार से सामाजिक और आर्थिक सर्वे के साथ जातीय रिपोर्ट के लिए कहा गया था।
लेकिन, तीन मई को जब हाईकोर्ट की ओर से राज्य सरकार को इन सिफारिशों को लागू करने का आदेश दिया गया तो राज्य के जनजाति समूह सड़कों पर उतर आए। भीषण हिंसा शुरू हुई, राज्य में कर्फ्यू लगा दिया गया, राज्यपाल की ओर से प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए।
मणिपुर की जनजाति समूहों का कहना है कि आबादी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले मैतेई समूह राजनीति में सर्वाधिक हिस्सेदारी रखने के साथ ही पढ़ने लिखने में भी आगे हैं लिहाजा उन्हे जनजाति में शामिल करने के बाद अन्य जनजाति समूहों के हित बुरी तरह प्रभावित होंगे तो अन्य जनजाति समूहों के लिए भी उपलब्ध अवसर बेहद कम हो जाएंगे। नौकरियों पर भी मैतेई समुदाय का दबदबा हो जाएगा। तो साथ ही अन्य जनजातिय समूहों को डर है कि जनजाति का दर्जा मिलने के बाद आर्थिक रूप से संपन्न मैतेई समुदाय पहाड़ों पर तेजी से जमीन खरीदने लगेगा और अन्य जनजातिय समूहों को हाशिए पर ला देगा।

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